Tuesday, March 19, 2024
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पंजाब का नया 'सरदार', चरणजीत सिंह चन्नी को कैसे मिली कमान, इनसाइड स्टोरी

सूत्रों के मुताबिक कैप्टन को हटाने की रणनीति प्रशांत किशोर से मिल फीड बैक के बाद बनी। प्रशांत किशोर ने ही कैप्टन के खिलाफ जबर्दस्त एंटी इनकंबेंसी की बात कही। मजे़ की बात ये कि प्रशांत किशोर कैप्टन के ही सलाहकार थे।

Sailesh Chandra Written by: Sailesh Chandra @chandra_sailesh
Updated on: September 19, 2021 21:14 IST
Punjab's new 'Sardar', how Charanjit Singh Channi became CM, inside story- India TV Hindi
Image Source : TWITTER/@CHARANJITCHANNI पंजाब के नए सरदार अब चरणजीत सिंह चन्नी होंगे।

नई दिल्ली: पंजाब के नए सरदार अब चरणजीत सिंह चन्नी होंगे। जी हां, कैप्टन अमरिंदर को बेदखल किए जाने के बाद अब सीएम की कुर्सी चरणजीत सिंह चन्नी को सौंपी गयी है। कांग्रेस ने बड़ी रणनीति के साथ ये फैसला किया, मगर इसके पीछे की पूरी कहानी क्या थी? चन्‍नी को चुनने के पीछे कांग्रेस की सोची-समझी स्‍ट्रैटेजी है। इस फैसले से दलित भी संतुष्ट होंगे और सरदारों को भी संतुष्ट किया जा सकेगा। दलित वोटों पर हर पार्टी ने दांव लगा रखा है। अकाली दल हालांकि बहुत संकट में है लेकिन उसने तो बाकायद बहुजन समाज पार्टी से इसी वोट बैंक के लिए मायावती से समझौता किया। चन्नी का चुनाव इस मायने में ब्रह्मास्त्र भी साबित हो सकता है।

जिन सुखजिंदर सिंह रंधावा का नाम पहले चल रहा था, उनको अब डिप्टी सीएम बनाए जाने की खबर है। वो इस फैसले के बाद जब सामने आए तो कहा कि चन्नी उनके छोटे भाई हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जाते-जाते एक चेतावनी दी थी जिसका सीधा मतलब था कि अगर उनके मन का सीएम नहीं बना तो वो ताकत आजमाइश से पीछे नहीं हटेंगे। इस स्थिति में कांग्रेस को वो फ्लोर टेस्ट तक करा देंगे। हाशिए पर पड़े कैप्टन की चेतावनी कितनी असरदार थी पता नही लेकिन कैप्टन ने चन्नी को उनके चुनाव पर बधाई दी। दलित को सीएम बनाने का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी।

दरअसल कैप्टन अब अगर पार्टी के खिलाफ़ जाते तो हारी हुई लड़ाई लड़ते। चुनावी साल में कोई विधायक उनके साथ जाकर अपना प्रॉस्पेक्ट नहीं खरबा करता। उम्र के आठवें दशक में चल रहे कैप्टन से आलाकमान का इशारा समझने में भी देर हुई। दरअसल अब वो बहुत कमजोर ग्राउंड पर थे। सालों बाद कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब जैसे सूबे में एक क्षेत्रीय क्षत्रप के आगे अपनी ताकत आजमायी है। साढ़े नौ साल के सीएम कैप्टन अमरिंदर आखिरकार बेदखल हुए। मगर बड़ा सवाल ये है कि पंजाब में ये बदलाव कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा या नुकसानदेह। 

सूत्रों के मुताबिक कैप्टन को हटाने की रणनीति प्रशांत किशोर से मिल फीड बैक के बाद बनी। प्रशांत किशोर ने ही कैप्टन के खिलाफ जबर्दस्त एंटी इनकंबेंसी की बात कही। मजे़ की बात ये कि प्रशांत किशोर कैप्टन के ही सलाहकार थे जिसे उन्होंने कैबिनेट रैंक दे रखी थी। बाद में इस पर उन्हें सफाई तक देनी पड़ी थी। हाल ही में प्रशांत किशोर ने सीएम के सलाहकार का पद छोड़ दिया। इस बीच प्रशांत किशोर की करीबी गांधी परिवार से बढ़ गयी।

जितनी हलचल चंडीगढ़ में देखी जा रही थी उससे कम दिल्ली में नहीं थी। पंजाब से सुखजिंदर रंधावा का नाम चला तो राहुल गांधी का काफिला तुगलक लेने के उनके घर से निकल कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ की ओर चल पड़ा। बाद में वहां के सी वेणुगोपाल और अंबिका सोनी को भी बैठक में शामिल किया गया। अंत में चन्नी के नाम पर फाइनल मुहर दिल्ली से ही लगनी थी। 

अब बड़ी चुनौती नवजोत सिंह सिद्धू के ही सामने है। कांग्रेस अब चुनाव किसके चेहरे पर लड़ेगी सिद्धू या चन्नी? कांग्रेस अगर पावर में आती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा? ये वो सवाल हैं जो कांग्रेस के सामने आने वाले वक्त में मुश्किल खड़ी करेंगे। कैप्टन अमरिंदर जब चन्नी को खुशी से बधाई देते हैं तो इस एंगल को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता। इस बधाई वाले ट्वीट में उन्होंने सीमा की सुरक्षा का मसला फिर उठाया। ध्यान रहे कि सिद्धू पर वो प्रो पाकिस्तानी होने और इमरान खान से दोस्ती के इल्जाम लगा चुके हैं। कैप्टन के इस इल्जाम पर बीजेपी ने अचानक कांग्रेस के प्रथम परिवार को आड़े हाथों ले लिया। 

हालांकि अब चुनाव में बस 6 महीने का ही वक्त बचा है। वैसे पंजाब की पॉलिटिक्‍स में कहा जाता है कि जो मालवा जीत लेता है, वही सरकार बना लेता है। पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में 69 सीटें मालवा में ही हैं। 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने क्षेत्र में 40 सीटें जीती थीं। दूसरे अहम क्षेत्र माझा और दोआब को माना जाता है। माझा में 25 विधानसभा सीटें हैं तो दोआब में 23 विधानसभा सीटें आती हैं। मालवा क्षेत्र में 7 लोकसभा सीटें आती हैं। डेरा का सबसे ज्यादा प्रभाव भी मालवा में ही है। एक अनुमान के अनुसार, क्षेत्र के 13 जिलों में करीब 35 लाख डेरा प्रेमी हैं। उसमें भी खास बात यह है कि दलित सिख ही इनमें ज्‍यादा जाते हैं। यही बात चन्‍नी को फेवरेबल बना देती है।

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