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Mahakumbh: क्यों होता है साधु-संन्यासियों के लिए महाकुंभ जरूरी? जानिए यहां

महाकुंभ 12 वर्षों बाद प्रयागराज के संगम तट पर लगा हुआ है, ऐसे में अमृत स्नान के लिए साधु-संतों का जमावड़ा लगा हुआ है। अब सवाल उठता है कि आखिर साधु-संन्यासियों के लिए महाकुंभ इतना जरूरी क्यों रहता है?

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jan 21, 2025 7:37 IST, Updated : Jan 21, 2025 8:19 IST
Mahakumbh 2025
Image Source : PTI महाकुंभ

महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को होना है, जिसकी तैयारियां शुरू हैं। महाकुंभ 26 फरवरी तक चलना है। संगम तट पर नागा साधुओं के 13 अखाड़े अपना शिविर लगाकर प्रभु की भक्ति में लीन है। यही नागा साधु अमृत स्नान के दिन सबसे पहले स्नान करते हैं। महाकुंभ का हिंदू धर्म में एक अलग ही महत्व है। कारण है कि यह 12 वर्षों के बाद आता है। साथ ही महाकुंभ देश में महज 4 स्थानों पर ही लगता है जिनमें उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयागराज शामिल है।

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नागा साधुओं के पहले स्नान को धर्म और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। अमृत स्नान में सबसे पहले 13 अखाड़ों के नागा, साधु संत, आचार्य, महामंडलेश्वर, महिला नागा साधु स्नान करते हैं। इसके बाद भक्तों की बारी आती है। कुंभ की परंपरा के मुताबिक, खास तिथियों को ही अमृत स्नान होता है। देश भर के साधु-संत इस महाकुंभ में पहुंचते हैं और पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, महाकुंभ में अमृत स्नान (शाही स्नान) करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और तन-मन की अशुद्धियां दूर हो जाती हैं।

क्यों है साधु-संन्यासियों के लिए महाकुंभ जरूरी?

शास्त्रों की मानें तो महाकुंभ साधु, संन्यासियों के लिए काफी महत्वपूर्ण स्नान माना गया है। माना जाता है कि अमृत स्नान करने मात्र से 1000 अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद साधु-संत प्रभु का ध्यान लगाते हैं। यही कारण है कि साधु-संत विश्व कल्याण और अपने मोक्ष के लिए महाकुंभ जरूर जाते हैं।

कब-कब है अमृत स्नान

महाकुंभ में पहला अमृत स्नान 14 जनवरी को पूरा हो चुका है, अब दूसरे अमृत स्नान की बारी है जो 29 जनवरी को होगा। इसके बार 3 फरवरी को तीसरा अमृत स्नान होगा। इसके बाद माघी पूर्णिमा का स्नान 12 फरवरी और महाशिवरात्रि को (26 फरवरी) को स्नान होगा।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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