Sunday, December 14, 2025
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कौन हैं पंकज चौधरी? यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष के सामने क्या चुनौतियां होंगी, जानें सबकुछ

पंकज चौधरी कैसे सियासत में इस मकाम तक पहुंचे और यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष के तौर पर उनके सामने क्या जिम्मेदारियां होंगी? इस लेख के माध्यम से हम ये समझने की कोशिश करेंगे।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published : Dec 14, 2025 09:25 am IST, Updated : Dec 14, 2025 09:28 am IST
Pankaj chuodhary, BJP- India TV Hindi
Image Source : PTI पंकज चौधरी, बीजेपी नेता

उत्तर प्रदेश में आज बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएगा। नए प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पंकज चौधरी के नाम का औपचारिक ऐलान होना बाकी रह गया है। इससे पहले शनिवार को उन्होंने लखनऊ स्थित बीजेपी दफ्तर में पार्टी की यूपी ईकाई के अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। किसी अन्य के पर्चा दाखिल नहीं होने की वजह से उनका इस पद के लिए निर्विरोध चुना जाना पक्का हो गया। अब आज उनके नाम की औपचारिक घोषणा हो जाएगी। इस लेख में हम ये जानेंगे कि पंकज चौधरी कौन हैं? कैसे सियासत में वे इस मकाम तक पहुंचे और नए अध्यक्ष के तौर पर उनके सामने क्या जिम्मेदारियां होंगी।

पंकज चौधरी का सियासी सफर

पंकज चौधरी गोरखपुर के रहने वाले हैं। उनका जन्म 20 नवंबर 1964 को हुआ था। उन्होंने ग्रैजुएशन गोरखपुर यूनिवर्सिटी से की। राजनीति में आने से पूर्व भी उनका पारिवारिक और सामाजिक आधार मजबूत रहा है। 

1989 से शुरू हुआ सियासी सफर

पंकज चौधरी ने राजनीति की शुरुआत 1989 से की थी। गोरखपुर नगर निगम पार्षद से शुरू हुई उनकी सियासी पारी की शुरुआत हुई। वर्ष 1990 में वे बीजेपी की जिला कार्यसमिति के मेंबर बने। इसी साल वे उप महापौर भी बन गए। 

1991 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीते

पार्टी ने उनपर भरोसा जताते हुए 1991 के लोकसभा चुनाव में टिकट दिया। पंकज चौधरी यह चुनाव जीत गए और लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें जनता का भरपूर समर्थन हासिल हुआ और वे निर्वाचित होकर संसद पहुंचे। 

1999 के लोकसभा चुनाव में उन्हें झटका लगा। वे चुनाव हार गए। लेकिन 2004 में उनकी एक बार फिर वापसी हुई। 2004 में वे फिर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। 2009 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उन्हें झटका लगा और वे चुनाव हार गए। 

फिर आया साल 2014.. मोदी लहर में वे चुनाव जीत गए। 2014 से वे लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। उन्हें संगठन और सरकार दोनों का अनुभवी नेता माना जाता है। पंकज चौधरी 2021 से केंद्र सरकार में मंत्री हैं। वे मौजूदा मोदी सरकार में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

2027 विधानसभा चुनाव पर नजर

राजनीतिक गलियारों में यूपी बीजेपी अध्यक्ष चुनाव को लेकर इस बात की चर्चा पहले से ही तेज थी कि प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव आगामी पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया जाएगा और जाति और क्षेत्रीय समीकरणों पर मजबूत पकड़ रखने वाले को ही इस पद के लिए चुने जाने की संभावना है। पंकज चौधरी महाराजगंज लोकसभा सीट से सात बार के सांसद हैं। वे कुर्मी जाति से आते हैं। यूपी में यह जाति अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आती है। 

पीएम मोदी और अमित शाह के भरोसेमंद

पंकज चौधरी को पीएम मोदी, अमित शाह और राजनाथ सिंह का भरोसेमंद माना जाता है। कुर्मी जाति का पूरे उत्तर प्रदेश में ओबीसी वर्ग पर काफी असल है। 2024 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में कुर्मी जाति का झुकाव राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी की ओर नजर आया था। यूपी में, कुर्मी समुदाय के नेता तीन बार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, जिनमें पूर्व सांसद विनय कटियार, पूर्व मंत्री ओम प्रकाश सिंह और जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह शामिल हैं। 

प्रमुख चुनौतियां निम्नलिखित हैं:

1. समन्वय और संचार की कमी दूर करना

बीजेपी संगठन और योगी आदित्यनाथ सरकार के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित करना इनकी प्रमुख चुनौती होगी। 2024 लोकसभा चुनावों में बीजेपी की सीटें 2019 की 62 से घटकर 33 रह गईं। इसके पीछे वजह ये बताई जा रही है कि कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी एक प्रमुख वजह थी। स्थानीय नेताओं की शिकायतें, निगमों-बोर्डों में नियुक्तियां लंबित होना और आरएसएस-भाजपा नेताओं के बीच संबंध मजबूत करने की जरूरत है।

2. क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना

पूर्वी यूपी (गोरखपुर) से आने वाले चौधरी को पश्चिमी यूपी के साथ संतुलन बनाना होगा, जहां पूर्व अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी जाट बेल्ट से थे। राष्ट्रीय लोक दल के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय समानता सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि सीएम आदित्यनाथ भी पूर्वी यूपी से हैं।

3. 2027 विधानसभा चुनावों की तैयारी

यूपी में 2026 में पंचायत चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए टिकट वितरण में विद्रोह रोकना सबसे पहली चुनौती रहेगी। इसके बाद  2027 विधानसभा चुनावों में सरकार के खिलाफ संभावित एंटी-इनकंबेंसी का मुकाबला करना और भाजपा को तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए मजबूत रणनीति बनाना, पंकज चौधरी की परीक्षा होगी।

4. संगठनात्मक अनुभव की कमी

बतौर सांसद 35 वर्षों के अनुभव के बावजूद राज्य स्तर पर उनकी संगठनात्मक भूमिका सीमित रही है (केवल 1991 में एक भाजपा कार्यकारिणी पद)। आरएसएस से जुड़े पूर्ववर्ती अध्यक्षों की तरह पूरे राज्य के कार्यकर्ताओं से जुड़ाव बनाना चुनौतीपूर्ण होगा।

5. SP की PDA रणनीति का जवाब

कुर्मी (ओबीसी का 8% हिस्सा) नेता के रूप में सपा की पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) मुहिम का मुकाबला करना पंकज की एक प्रमुख चुनौती होगी। कुर्मी वोट कभी एकतरफा किसी पार्टी को नहीं जाते। 2024 में कुर्मियों के एक बड़े तबके ने सपा-कांग्रेस को समर्थन दिया। यही वजह रही कि भाजपा की सीटें 2017 की 312 से घटकर 2022 में 255 रह गईं। पंकज चौधरी को पूर्वी और मध्य यूपी में ओबीसी एकजुटता मजबूत करनी होगी।

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