महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर के विख्यात मंदिर में महिलाओं को पूजा करने से रोके जाने का विवाद अभी सुलझा ही नही है कि मुंबई की हाजी अली दरगाह भी विवादों में घिर गई है। हाजी अली दरगाह के एक प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश की मांग कर रही मुस्लिम महिलाओं ने गुरुवार को प्रदर्शन किया।
मुस्लिम महिला समूहों से जुड़े कई कार्यकर्ताओं ने हाथों में तख़्तियां लिये हुए ऐतिहासिक दरगाह के मुख्य स्थल में महिलाओं को प्रवेश देने की मांग की। इस दरगाह पर रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई हो रही है जिसमें हाजी अली ट्रस्ट के दरगाह के पवित्र हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने को चुनौती दी गयी है। मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि महिलाओं को दरगाह के अंदर जाने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए। महिला संगठन भी अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।
क्या है हाजी अली दरगाह का इतिहास
अरब देशों और फ़ारस से भारत आए ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ जैसे कई ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने इस्लाम धर्म के प्रचार के लिये भारत के कोने कोने का भ्रमण किया। कहा जाता है कि ये संत-फ़क़ीर तभी आए जब उन्हें ख़ुद लगा या फिर पैग़ंबर मुहम्मद का निर्देश मिला।
सूफ़ी-संतों ने भारत में बसकर इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार किया। ऐसे ही एक संत थे पीर हाजी अली शाह बुख़ारी जो ईरान से भारत आए थे। मुसलमानों का विश्वास है कि ख़ुदा की राह में जिन सूफ़ी-संतों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया और जान क़ुर्बान कर दी, वे अमर हैं। उनका दर्जा शहीद का है और उन्हें शहादत-ए-हुक़मी कहा जाता है।
पीर हाजी अली शाह बुख़ारी के समय और उनकी मौत के बाद कई चमत्कारी घटनाएं होने की बात की जाती है। पीर हाजी अली शाह ने शादी नहीं की थी और उनके बारे में जो कुछ मालूम चला है वो दरगाह के सज्जादानशीं (caretakers), ट्रस्टी और पीढ़ी दर पीढ़ी से सुनी जा रहे क़िस्सों से ही चला है।
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