Masik Shivratri Vrat Katha in Hindi: सनातन धर्म में भगवान शिव को करुणा, तप और मोक्ष का देवता माना गया है। वे भाव के भूखे हैं और सच्ची श्रद्धा से प्रसन्न हो जाते हैं, चाहे वह श्रद्धा जानकर की गई हो या अनजाने में। शास्त्रों में भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना को अत्यंत लाभदायी बताया गया है, विशेष रूप से मासिक शिवरात्रि के दिन। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से पापों का नाश होता है और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मासिक शिवरात्रि से जुड़ी एक पौराणिक कथा ऐसी भी है, जिसमें एक हिंसक शिकारी अनजाने में ही शिव भक्ति कर बैठता है और उसका पूरा जीवन बदल जाता है।
मासिक शिवरात्रि 2025 तिथि
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आने वाली मासिक शिवरात्रि पर व्रत, रात्रि जागरण, शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पण और शिवकथा का श्रवण करने का विशेष महत्व है। दिसंबर में साल का आखिरी मासिक शिवरात्रि का व्रत 18 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा। पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 18 दिसंबर को सुबह 2 बजकर 32 मिनट पर और समापन 19 दिसंबर को सुबह 4 बजकर 59 मिनट पर होगा।
मासिक शिवरात्रि का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में शिवरात्रि को अत्यंत पावन पर्व माना गया है। मासिक शिवरात्रि हर महीने आती है और यह साधकों के लिए आत्मशुद्धि का अवसर होती है। इस दिन व्रत रखने, शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाने तथा रात्रि जागरण करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यता है कि शिवरात्रि पर भगवान शिव अपने भक्तों के छोटे से भाव से भी अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं।
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा (Masik Shivratri Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी रहता था। वह जंगल में पशुओं का शिकार कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। हिंसा ही उसका जीवन था। समय के साथ वह एक साहूकार का कर्जदार हो गया, लेकिन निर्धनता के कारण वह समय पर ऋण चुका नहीं सका। क्रोधित साहूकार ने उसे पकड़कर शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से वह दिन मासिक शिवरात्रि का था।
शिवमठ में बंदी रहते हुए चित्रभानु ने पहली बार भगवान शिव से जुड़ी बातें सुनीं। वहां साधु-संत शिवरात्रि व्रत की कथा सुना रहे थे। वह चाहकर भी कहीं जा नहीं सकता था, इसलिए ध्यानमग्न होकर शिव कथा सुनता रहा। चतुर्दशी तिथि की महिमा, व्रत का महत्व और शिव कृपा की कथाएं उसके कानों में पड़ती रहीं।
शाम होते ही साहूकार ने शिकारी को बुलाया। चित्रभानु ने अगले दिन सारा ऋण चुकाने का वचन दिया, तब उसे मुक्त कर दिया गया। रोज़ की तरह वह जंगल में शिकार की तलाश में निकल पड़ा, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण वह भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार की खोज में वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार छा गया तो उसने जंगल में ही रात बिताने का निश्चय किया और एक तालाब के किनारे स्थित बेल वृक्ष पर चढ़ गया।
जिस बेल वृक्ष पर चित्रभानु बैठा था, उसके नीचे एक शिवलिंग स्थापित था, जो बेलपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को इसका कोई ज्ञान नहीं था। रात में शिकार की प्रतीक्षा करते हुए वह बेल की टहनियां तोड़ता रहा, जो अनायास ही नीचे शिवलिंग पर गिरती रहीं। इस प्रकार बिना जाने ही उसका उपवास पूरा हो गया, रात्रि जागरण भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित होते रहे।
रात्रि के पहले पहर में एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाया, तभी हिरणी ने करुण स्वर में कहा कि वह गर्भवती है और शीघ्र ही प्रसव करेगी। दो जीवों की हत्या न करने की प्रार्थना करते हुए उसने जीवनदान मांगा। शिकारी का दिल पिघल गया और उसने हिरणी को छोड़ दिया। प्रत्यंचा खींचते और ढीली करते समय फिर एक बार शिकारी के हाथों कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर अनजाने में अर्पित हो गए।
कुछ देर बाद दूसरी हिरणी आई, जिसने स्वयं को विरहिणी बताया और अपने पति से मिलने के लिए समय मांगा। शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया। इस दौरान फिर बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे और दूसरे प्रहर की पूजा भी अनजाने में संपन्न हो गई। रात्रि के अंतिम पहर में एक हिरणी अपने बच्चों के साथ आई। शिकारी ने पहले तो शिकार करने का निश्चय किया, लेकिन हिरणी ने मातृत्व की दुहाई दी। अपने बच्चों के प्रति उसका प्रेम देखकर शिकारी की कठोरता पिघल गई और उसने उसे भी जीवनदान दे दिया।
प्रातः होने से पहले एक हष्ट-पुष्ट मृग वहां आया। उसने विनम्र स्वर में शिकारी से पूछा कि क्या उसने उसकी पत्नियों और बच्चों को मार दिया है। जब शिकारी ने पूरी रात की कथा सुनाई, तो मृग ने भी जीवनदान मांगा। शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया। इस पूरी घटना ने उसके हृदय को भीतर तक झकझोर दिया।
मोक्ष और शिवलोक की प्राप्ति
सुबह के समय मृग सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हुआ, लेकिन अब चित्रभानु हिंसक नहीं रहा। वहीं, पशुओं की सत्यनिष्ठा, प्रेम और वचनबद्धता देखकर उसे गहरा पश्चाताप हुआ। उसने सभी को जीवनदान देकर हिंसा का मार्ग त्याग दिया। अनजाने में किए गए मासिक शिवरात्रि व्रत, उपवास, जागरण और बेलपत्र अर्पण से भगवान शिव उस पर प्रसन्न हुए। उनकी कृपा से चित्रभानु का हृदय शुद्ध हो गया। कथा के अनुसार, उसे अंततः मोक्ष और शिवलोक की प्राप्ति हुई। यह पौराणिक कथा सिखाती है कि भोलेनाथ भक्त के भाव को देखते हैं, कर्म को नहीं। वहीं, सच्ची करुणा से किया गया परिवर्तन जीवन को मोक्ष की ओर ले जाता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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