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Kalimath Mandir: रक्तबीज का वध करके इसी जगह अंतर्ध्यान हो गई थी मां काली, नवरात्रि में जरूर करें दर्शन, मनोकामनाएं होंगी पूरी

Kalimath Mandir: कालीमठ मंदिर उत्तराखंड में स्थित है। नवरात्रि में बड़ी संख्या में भक्त इस मंदिर में माता काली के दर्शन करने आते हैं। तंत्र-मंत्र और ध्यान की साधना करने वाले लोगों के लिए भी यह मंदिर बहुत महत्व रखता है। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ विशेष बातें।

Written By: Naveen Khantwal
Published : Mar 28, 2025 8:48 IST, Updated : Mar 28, 2025 21:07 IST
Kalimath Mandir
Image Source : INDIA TV कालीमठ मंदिर

Kali Math Mandir: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में देवी काली का एक ऐसा सिद्ध शक्तिपीठ है जो तंत्र साधना की दृष्टि से कामाख्या मंदिर के समान स्थान रखता है। देवी-देवताओं की धरती उत्तराखंड में स्थित इस सिद्ध शक्तिपीठ का वर्णन स्कंद पुराण में भी है। इस मंदिर की सबसे रोचक बात यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति विराजमान नहीं है। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान देश के कोने-कोने से भक्त कालीमठ मंदिर में माथा टेकने आते हैं। कालीमठ मंदिर के इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानने के लिए हमने मंदिर के पुजारी सतीश गौड़ जी से बात की।

कालीमठ सिद्ध शक्तिपीठ से जुड़ी मान्यताएं

स्कंद पुराण के साथ ही कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी कालीमठ का वर्णन मिलता है। जब धरती पर रक्तबीज और शुंभ-निशुंभ का आतंक बढ़ गया था तब इंद्रादि देवताओं ने शक्ति की साधना की थी। देवताओं की साधना से प्रसन्न होकर मां प्रकट हुई और दैत्यों के आतंक के बारे में सुनकर क्रोध से उनका शरीर काला पड़ गया। इसके बाद रक्तबीज और शुंभ निशुंभ का वध करने के लिए माता कालीशिला में 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं। कालीशिला, कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर दूर खड़ी ऊंचाई पर स्थित है। इस शिला पर माता के पैरों के निशान होने की बात भी कही जाती है। 

रक्तबीज शिला

कालीशिला में प्रकट होने के बाद माता काली और रक्तबीज के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। माता काली ने रक्तबीज का वध करने के लिए उसके रक्त का पान किया, क्योंकि उसे वरदान था कि उसके रक्त की हर बूंद से नया रक्तबीज प्रकट होगा। अंत में माता काली ने जिस शिला के पास आकर रक्तबीज का संहार किया उस शिला को रक्तबीज शिला के नाम से जाना जाता है। यह स्थान कालीमठ से कुछ दूरी पर स्थित है। 

Kalimath Mandir

Image Source : INDIA TV
कालीमठ मंदिर

कालीमठ में अंतर्ध्यान हुई देवी मां

रक्त बीज वधे देवि चण्ड मुण्ड विनाशिनि। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

रक्तबीज के साथ ही माता ने शुंभ-निशुंभ का भी वध किया और देवताओं को भय से मुक्ति मिली। रक्तबीज और शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद भी माता का क्रोध शांत नहीं हुआ। माता के रौद्र रूप को देखकर देवता घबराने लगे, तब इसके बारे में उन्होंने भगवान शिव को बताया। भगवान शिव काली माता के क्रोध को शांत करने के लिए उनके पैरों के नीचे लेट गए, जैसे ही देवी को पैरों के नीचे शिवजी के होने का अहसास हुआ तो वो शांत होकर अंतर्ध्यान हो गईं। माना जाता है कि जहां माता काली अंतर्ध्यान हुई थीं वह स्थान कालीमठ मंदिर ही था। इसीलिए कालीमठ मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं है, बल्कि एक कुंड में यंत्र रूप में इनकी पूजा की जाती है।  

कालीमठ में पूजा का विधान

देवी काली को समर्पित कालीमठ मंदिर में किसी मूर्ति की नहीं बल्कि एक कुंड के बीच स्थित यंत्र की पूजा होती है। पूरे वर्ष भर में केवल शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि के समय देवी के कुंड को खोला जाता है और पूजा की जाती है। केवल मंदिर के पुजारी ही इस पूजा को संपन्न करते हैं। हालांकि दर्शन करने के लिए साल भर देश-दुनिया से लोग यहां पहुंचते हैं। 

तंत्र साधन

तंत्र साधकों के लिए कालीमठ का मंदिर बहुत महत्व रखता है। माना जाता है कि यहां देवी काली को 64 यंत्रों की शक्ति मिली थी। साथ ही 63 योगनियां भी इस स्थान पर विचरण करती हैं। इस स्थान पर तंत्र साधना बहुत जल्दी फलित होती है। 

कालीमठ मंदिर और धारी देवी का संबंध

मान्यताओं के अनुसार कालीमठ मंदिर में देवी के निचले भाग यानि धड़ की पूजा की जाती है। वहीं उत्तराखंड के श्रीनगर में स्थित धारी देवी में ऊपरी भाग यानि सिर की पूजा की जाती है। 

Kalimath Mandir

Image Source : INDIA TV
कालीमठ मंदिर

नवरात्रि में करें दर्शन

नवरात्रि के दौरान माता के इस मंदिर के दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। देवी माता अपने हर सच्चे भक्त की मनोकामना को पूरा करने वाली हैं। वहीं जो भक्त तंत्र-मंत्र या ध्यान साधना के जरिए आध्यात्मिक उत्थान करना चाहते हैं, उनके लिए भी यह स्थान पवित्र माना जाता है। नवरात्रि में कालीमठ के दर्शन करने से आत्मिक शुद्धि प्राप्त होती है। 

कैसे पहुंचें 

हवाई मार्ग से आने वाले यात्रियों के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। जॉली ग्रांट से कालीमठ सड़क मार्ग से 200 किलोमीटर दूर स्थित है। वहीं रेल यात्रियों को भी ऋषिकेष पहुंचकर सड़क मार्ग से 200 किलोमीटर की यात्रा कालीमठ तक पहुंचने में करनी पड़ती है। सड़क मार्ग से ऋषिकेष, रुद्रप्रयाग और गुप्तकाशी होते हुए आप यहां पहुंच सकते हैं। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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