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मौलवियों के आगे हर बार क्यों घुटने टेक देती है PAK सरकार? पड़ोसी मुल्क के लेखक ने खोली पोलपट्टी

पाकिस्तान के एजुकेशन सिस्टम को जकड़े असली संकट पर आखिरकार कोई खुलकर बोला है, और वह हैं सिंध के लेखक असद उल्लाह चन्ना। उन्होंने कटाक्ष किया कि सरकार ना मदरसा सिस्टम को सुधारना चाहती है और ना मौलवी इसे होने देते हैं।

Edited By: Vinay Trivedi
Published : Dec 05, 2025 08:28 pm IST, Updated : Dec 05, 2025 08:28 pm IST
pakistan mullah madrasa- India TV Hindi
Image Source : PTI (सांकेतिक तस्वीर) पाकिस्तान के मदरसों का आधुनिकीकरण करने में सरकार नाकाम।

इस्लामाबाद: भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान दशकों से जिस प्रश्न से आंखें चुराता आ रहा है, उसको लेकर अब सिंध के लेखक और शिक्षाविद असद उल्लाह चन्ना ने सीधा हमला बोला है। उनका मानना है कि मदरसा एजुकेशन का ऐसा ढांचा है, जिसमें सुधार करने की हिम्मत ना पाकिस्तानी सरकार जुटा पाती है और ना मौलवी ही इसको बदलने को तैयार हैं। पाकिस्तान ऑब्जर्वर में लिखा असद उल्लाह चन्ना का लेख बताता है कि कैसे सियासी डर, धार्मिक वर्चस्व और मॉडर्नाइजेशन से जिद्दी दूरी ने पाकिस्तान के एजुकेशन सिस्टम को 2 हिस्सों में बांट दिया है। और यही दरार पाकिस्तान के फ्यूचर को सबसे ज्यादा नुकसान कर रही है। बता दें कि सिंध के लेखक असद उल्लाह चन्ना ने पाकिस्तान ऑब्जर्वर में पब्लिश अपने आर्टिकल में पाकिस्तान के मदरसा एजुकेशन सिस्टम में सुधार करने में हुई बार-बार की नाकामियों की आलोचना की है। उन्होंने इसको “धार्मिक नेतृत्व के वर्चस्व और सियासी कायरता में जमी पुरानी पाकिस्तानी कमजोरी” बताया।

सरकारी निगरानी से बाहर हैं पाकिस्तानी मदरसे

लेखक चन्ना का तर्क है कि दशकों के वादों और तमाम सुधार अभियान चलने के बावजूद, मदरसे आज भी सरकारी निगरानी में नहीं हैं। मदरसे, धार्मिक और वैचारिक प्रशिक्षण केंद्रों के तौर पर चल रहे हैं, जो मॉडर्न दुनिया से कटे हैं। पाकिस्तान ऑब्जर्वर के मुताबिक, मदरसों का सामाजिक महत्व बहुत है, खासकर गरीब परिवारों के लिए क्योंकि वे मुफ्त में शिक्षा, खाना और हॉस्टल की सुविधा देते हैं। लेकिन लेखक चन्ना बताते हैं कि इन मदरसों की बढ़ती आजादी और पाकिस्तान सरकारी की कमजोरी ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं जो मॉडर्नाइजेशन का विरोध करते हैं और उग्रवादी सोच को बढ़ाते हैं।

अय्यूब से मुशर्रफ तक कोई नहीं कर पाया सुधार

जान लें कि 1961 में जनरल अय्यूब खान की तरफ से मदरसा के सिलेबस में आधुनिक विषयों को जोड़ने की कोशिश या 2003 में जनरल परवेज मुशर्रफ का मदरसा सुधार प्रोजेक्ट या फिर साल 2014 का नेशनल एक्शन प्लान, हर प्रयास नाकाम साबित हुआ और संगठित धार्मिक विरोध के कारण पटरी से उतर गया।

पाकिस्तानी सरकार और मौलवियों का गठजोड़

चन्ना आगे लिखते हैं कि पाकिस्तान की सरकारें लगातार कभी भी धार्मिक लीडरशिप को चैलेंज नहीं दे सकीं क्योंकि वे राजनीतिक वैधता के लिए उनके ऊपर ही निर्भर रही हैं। यह डिपेंडेंसी मौलवियों को इतना शक्तिशाली बना चुकी है कि वे “इस्लाम की रक्षा” के नाम पर किसी तरह का सुधार नहीं होने देते हैं।

(इनपुट- ANI)

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