Monday, December 15, 2025
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Saphala Ekadashi Vrat Katha: सफला एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही मिलेगा अश्वमेघ यज्ञ का फल, आप भी जरूर उठाएं लाभ

Saphala Ekadashi Vrat Katha (सफला एकादशी की कथा): पौष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु का व्रत-पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार जो कोई भी सफला एकादशी की पावन कथा सुनता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

Written By: Laveena Sharma @laveena1693
Published : Dec 15, 2025 05:02 am IST, Updated : Dec 15, 2025 06:57 am IST
saphala ekadashi vrat katha- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM सफला एकादशी व्रत कथा

Saphala Ekadashi Vrat Katha: हिंदू पंचांग अनुसार इस साल सफला एकादशी 14 दिसंबर की शाम 06:49 से 15 दिसंबर 2025 की रात 09:19 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर, सोमवार को रखा जा रहा है। वहीं सफला एकादशी का पारण 16 दिसंबर की सुबह 07:07 से 09:11 तक किया जा सकता है। बता दें साल में आने वाली 24 एकादशियों में सफला एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। ये व्रत जीवन में सफलता दिलाता है और भक्त की सारी इच्छाएं पूर्ण करता है। इस व्रत की कथा सुनना भी बेहद पुण्य का काम माना जाता है। चलिए आपको बताते हैं इस व्रत में कौन सी कथा सुनी जाती है।

सफला एकादशी व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha)

सफला एकादशी की कथा अनुसार, चम्पावती नाम की एक नगरी में महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। जिसके चार पुत्र थे लेकिन सबमें लुम्पक नाम वाला बड़ा राजपुत्र बड़े ही पापी स्वभाव का था। वह पापी सदैव परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था। इसके अलावा वे देवता, बाह्मण, वैष्णवों का सम्मान भी नहीं करता था। राजा अपने पुत्र के इन कुकर्मों से परेशान हो गया और उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। इसके बाद वह इधर-उधर भटकने लगा और अब उसने चोरी करना शुरू कर दिया। दिन में वह वन में रहता था और रात को अपने पिता की नगरी में जाकर चोरी करता था। कुछ समय पश्चात सारी नगरी उससे भयभीत हो गई।

अब वह वन में पशु आदि को मारकर खाने लगा। वन में एक बहुत ही प्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसकी भगवान के समान पूजा किया करते थे और उसी पेड़ के नीचे वह महापापी लुम्पक रहा करता था। लोग इस जंगल को देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे। कुछ समय बाद पौष कृष्ण पक्ष की दशमी को वह वस्त्रहीन होने की वजह से शीत के चलते सारी रात सो नहीं सका। ठंड से उसके हाथ-पैर अकड़ गए और सूर्योदय होते-होते वह मूर्छित हो गया। दूसरे दिन एकादशी को सूर्य की गर्मी पाकर वो फिर उठ खड़ा हुआ। गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकल गया। भूख से उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी अब वह पशुओं को मारने में समर्थ नहीं था। अत: पेड़ों के नीचे गिरे हुए फल उठाकर वह उसी पीपल के वृक्ष के नीचे आ गया। भगवान सूर्य अब अस्त हो चुके थे। वह पीपल के पेड़ के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन! अब आपके ही अर्पण है ये फल। आप ही तृप्त हो जाइए। दुख के कारण उसे पूरी रात नींद नहीं आई।

अनजाने में ही सही उसके इस उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए। दूसरे दिन प्रात: एक ‍सुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुओं के साथ उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! भगवान विष्णु की कृपा से तेरे सारे पाप नष्ट हो गए हैं। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर। इसके बाद वह अपने पिता के पास गया। उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य सौंप दिया और वह स्वयं वन के रास्ते चल दिए। अब लुम्पक पापों से मुक्त होकर शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। उसके पत्नी, पुत्र आदि सारा कुटुम्ब भगवान नारायण का परम भक्त हो गया। अंत समय में उसे वैकुंठ की प्राप्ति हुई। अत: जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। 

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