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क्या होता है स्प्लैशडाउन, कैसे उतरा शुभांशु शुक्ला का स्पेसक्राफ्ट? यहां समझें पूरा प्रोसेस

भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला आज अंतरिक्ष यात्रा से वापस धरती पर लौट आए। इस दौरान उन्होंने और उनकी टीम ने किस तरह धरती पर लैंडिंग की और इस दौरान क्या प्रक्रिया रही? आइये जानते हैं हर एक जानकारी।

Reported By : T Raghavan Edited By : Amar Deep Published : Jul 15, 2025 12:41 pm IST, Updated : Jul 15, 2025 03:54 pm IST
इसी कैप्सूल से शुभांशु शुक्ला वापस आए- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इसी कैप्सूल से शुभांशु शुक्ला वापस आए

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ISS में 18 दिन बिताने के बाद आज पृथ्वी पर लौट आए। शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में सवार होकर वापस धरती पर आई है। स्पेसक्राफ्ट से करीब 23 घंटे का सफर करके आज दोपहर 3 बजकर 1 मिनट पर कैलिफोर्निया के तट के पास समुद्र में स्प्लैशडाउन हुआ। जिस वक्त स्पेसक्राफ्ट ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, उसका तापमान 1600 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा। इसके बाद दो चरणों में पैराशूट खुले। पहले 5.7 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्टेबलाइजिंग शूट्स और फिर लगभग दो किमी पर मेन पैराशूट खुले, जिससे स्पेसक्राफ्ट की सुरक्षित लैंडिंग संभव हुई।

कैसे हुआ डी-आर्बिट बर्न प्रोसेस

शुभांशु का स्पेसक्राफ्ट 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा चैलेंज स्पेसक्राफ्ट के स्प्लैशउाउन से 54 मिनट पहले किया जाने वाला डी-आर्बिट बर्न प्रोसेज था। दरअसल, जैसे ही स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तब उस वक्त स्पेसक्राफ्ट की ज्यादा स्पीड और वायुमंडल में मौजूद हवा से घर्षण उत्पन्न होता है। ऐसी स्थिति में टेंपरेचर 1600 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा पहुंच जाता है और ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में मौजूद ट्रंक जलने लगता है, जो एक आग के गोले की तरह दिखता है। इस दौरान थ्रस्टर के जरिए स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को कम किया जाता है। इस प्रक्रिया को ही ‘डी-ऑर्बिट बर्न’ कहते हैं। इसकी स्पीड को घटाकर 24 किलोमीटर प्रति घंटे तक लाया जाता है। इस दौरान स्पेसक्राफ्ट में मौजूद एस्ट्रोनॉटस स्पेस शूट पहने होते हैं और जिस कैप्सूल में वो बैठे होते हैं वहां का टेंपरेचर 29 से 30 डिग्री ही होता है।

शुभांशु शुक्ला और उनके साथ टीम।

Image Source : AP
शुभांशु शुक्ला और उनके साथ टीम।

किस समय क्या-क्या किया गया

डी-ऑर्बिट बर्न से लेकर स्प्लैशडाउन तक की पूरी प्रक्रिया पहले से तय होती है। जैसे स्प्लैशडाउन से 54 मिनट पहले, यानी दोपहर 02 बजकर 7 मिनट पर, डी-ऑर्बिट बर्न हुआ। उसके बाद दोपहर 02 बजकर 26 मिनट पर ट्रंक वाला हिस्सा अलग हो गया। 4 मिनट बाद, यानी दोपहर 02 बजकर 30 मिनट पर, नोजकोन बंद हो गया और जब पृथ्वी से 6 किलोमीटर की ऊंचाई बची, यानी दोपहर 02 बजकर 57 मिनट पर, तो स्टेबलाइजिंग शूट्स खुल गए। एक मिनट बाद, दोपहर 02 बजकर 58 मिनट पर, मेन पैराशूट खुल गया, जिसके बाद कैप्सूल स्थिर हो गया और दोपहर 3 बजकर 1 मिनट पर कैलिफोर्निया तट पर समंदर में कैप्सूल की स्प्लैशलैंडिंग हो गई।

ड्रैगन कैप्सूल से बाहर आए शुभांशु शुक्ला

Image Source : INDIA TV
ड्रैगन कैप्सूल से बाहर आए शुभांशु शुक्ला

समंदर में उतरा स्पेसक्राफ्ट

दरअसल, कैप्सूल में लगे पैराशूट कैप्सूल की रफ्तार को कम कर देते हैं। ये रफ्तार घटकर 24 किमी प्रति घंटे तक आ जाती है। इसी रफ्तार से कैप्सूल समंदर में उतरता है। यही प्रक्रिया स्प्लैशडाउन कहलाती है। जैसे ही कैप्सूल समंदर में उतरता है, उस वक्त अंतरिक्ष यात्री कैप्सूल के अंदर ही बैठे रहते हैं, लेकिन समंदर में पहले से मौजूद ग्राउंड टीम बड़ी बोट की मदद से कैप्सूल तक पहुंचती है। फिर कैप्सूल को समंदर से बाहर निकालती है और कैप्सूल का नोज खोला जाता है, फिर उसमें बैठे एस्ट्रोनॉट्स को बाहर निकाला जाता है। इसके बाद उन्हें आइसोलेशन सेंटर तक ले जाया जाता है।

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