Friday, December 05, 2025
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Bihar Assembly Election 2025: अमौर सीट पर 2020 के चुनाव में AIMIM ने पलट दी थी बाजी, इस बार किसकी होगी जीत?

Amour Assembly Election 2025: अमौर सीट पर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने बाजी मारी थी। इस सीट पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस ने 8 बार जीत दर्ज की है।

Written By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published : Aug 31, 2025 06:27 am IST, Updated : Nov 07, 2025 06:23 pm IST
अमौर विधानसभा चुनाव 2025- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV GRAPHICS अमौर विधानसभा चुनाव 2025

Amour Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। सियासी पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप से आगामी विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट साफ तौर पर देखी जा सकती है। राजनीतिक दल मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने कई नई योजनाओं की घोषणा की है, जबकि इस बार के चुनाव में कुछ नए चेहरे भी मैदान में उतर रहे हैं। प्रशांत किशोर की नई पार्टी 'जन सुराज' और अरविंद केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' (आप) भी चुनाव में अपनी किस्मत आजमाती नजर आएंगी, जिससे मुकाबला और भी रोचक होने की उम्मीद है।

अगर हम बिहार के पूर्णिया जिले की अमौर विधानसभा सीट की बात करें तो यह किशनगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यहां दूसरे चरण में 11 नवंबर को वोटिंग होगी। इस सीट का गठन 1951 में हुआ था और तब से यह एक नियमित चुनावी क्षेत्र बना हुआ है। इस सीट का राजनीतिक इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है, लेकिन यहां कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व देखा जा सकता है, जिसने 8 बार जीत दर्ज की है। वहीं, निर्दलीय उम्मीदवारों ने 4 बार, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 2 बार, जबकि जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बीजेपी और AIMIM ने एक-एक बार जीत हासिल की है।

अमौर सीट की एक खास बात यह है कि 1977 में जनता पार्टी के चंद्रशेखर झा एकमात्र ऐसे गैर-मुस्लिम उम्मीदवार रहे हैं, जिन्होंने इस सीट पर जीत का परचम लहराया था। इसके अलावा, कांग्रेस के दिग्गज नेता अब्दुल जलील मस्तान ने 1980 के दशक से इस सीट का कई बार प्रतिनिधित्व किया है।

क्या रहे पिछले चुनाव के नतीजे?

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अख्तरुल ईमान को 94,459 वोट मिले थे, जो कि मतदान का 51.17% रहा। उन्होंने जनता दल (यूनाइटेड) यानी JDU के उम्मीदवार सबा जफर को 52,515 वोटों के भारी अंतर से हराया था। सबा जफर को 41,944 वोट मिले थे, जो कि मतदान का 22.72% था। वहीं, इस चुनाव में तीसरे स्थान पर कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान रहे, जिन्हें 31,863 वोट मिले थे, जो मतदान का 17.26% था।

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में अमौर सीट पर AIMIM की जीत एक बड़ा उलटफेर था, जिसने परंपरागत रूप से कांग्रेस और जदयू जैसी पार्टियों का गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पैठ बना ली।

चुनाव मैदान में थे 11 उम्मीदवार

  1. अख्तरुल ईमान- AIMIM- विजेता
  2. सबा जफर- JDU
  3. अब्दुल जलील मस्तान- कांग्रेस
  4. नंदलाल दास- BSP
  5. झालेश्वर कुमार गुप्ता- जनवादी क्रांति पार्टी
  6. मतिउर रहमान- जनता दल राष्ट्रवादि
  7. मोहम्मद अख्तर हुसैन- जन विकास क्रांति पार्टी
  8. गुलाम मोहम्मद- प्रजातांत्रिक पार्टी ऑफ इंडिया
  9. मोहम्मद मज़हरुल बारी- निर्दलीय
  10. मनोज कुमार निषाद- LJP
  11. उपेंद्र यादव- NCP

इस सीट पर मतदाता

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के अनुसार, अमौर विधानसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 2,99,184 थी। इनमें पुरुष मतदाता 1,57,000 और महिला वोटर्स 1,41,000 थे।

अमौर सीट का सियासी समीकरण

अमौर विधानसभा सीट पूर्णिया जिले का हिस्सा है और इसका गठन 1951 में हुआ था। इस सीट पर किसी एक पार्टी का लंबे समय तक एकतरफा दबदबा नहीं रहा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने यहां सबसे ज्यादा बार जीत हासिल की है। अमौर सीट पर कांग्रेस ने अब तक 8 बार जीत हासिल की है।  

1977 का चुनाव

यह चुनाव अमौर के चुनावी इतिहास में खास महत्व रखता है। इस साल जनता पार्टी के चंद्रशेखर झा एकमात्र ऐसे गैर-मुस्लिम उम्मीदवार थे, जिन्होंने इस सीट पर जीत हासिल की थी।

बीजेपी की पहली जीत

2010 में सबा जफर ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर इस सीट पर पहली बार बीजेपी का झंडा बुलंद किया था। वहीं, 2015 के चुनाव में कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान ने जीत दर्ज की थी, जिन्होंने बीजेपी के सबा जफर को हराया था।

2020 का उलटफेर वाला चुनाव

यह चुनाव सबसे ज्यादा चर्चा में रहा, क्योंकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अख्तरुल ईमान ने इस सीट पर एकतरफा जीत हासिल की। उन्होंने JDU के सबा जफर और कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान को बड़े अंतर से हराया, जो इस सीट के पारंपरिक राजनीतिक समीकरणों में एक बड़ा बदलाव था।

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