Friday, April 26, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: कृषि कानून- कांग्रेस, अकाली दल और शिवसेना ने कैसे किया ‘यू टर्न’

जब मोदी सरकार ने इन्हीं सब वादों को शामिल करते हुए कानून बनाए तो राहुल गांधी ने पलटी मार ली और इन विधेयकों का विरोध करने का फैसला किया।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: December 16, 2020 19:06 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

गुजरात के कच्छ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि तीनों नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर कुछ राजनीतिक दल किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। मोदी ने कहा, किसानों को ये कहकर बहकाया जा रहा है कि यदि ये कानून लागू हो गए तो उनकी जमीन पर दूसरे लोगों का कब्जा हो जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये बिल्कुल वही सुधार हैं जिनकी मांग विपक्षी पार्टी और किसान संगठन पिछले कई सालों से कर रहे थे। मोदी ने कहा कि विपक्ष में जो लोग आज किसानों को गुमराह कर रहे हैं, वे सत्ता में होने पर इन सुधारों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे कोई फैसला नहीं कर सके। उन्होंने कहा कि आज जब देश ने एक ऐतिहासिक कदम उठाने का फैसला किया है तो वे किसानों को गुमराह कर रहे हैं।

मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि किस तरह राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने किसानों के मुद्दे पर ‘यू टर्न’ लिया है और सियासी तौर पर उनके सेंटिमेंट को भुनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। ये नेता और राजनीतिक दल पहले कहा करते थे कि कॉरपोरेट के आने से किसानों को फायदा होगा और उनकी आमदनी में वृद्धि होगी, लेकिन अब वे किसानों को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि कॉरपोरेट आ गया तो वह किसानों को उनके ही खेतों से बेदखल कर देगा। पहले यही नेता कहा करते थे कि ‘आढ़तिए’ किसानों का खून चूसते हैं, और अब वही नेता इन आढ़तियों को किसानों का सबसे अच्छा दोस्त बता रहे हैं। ये वे राजनेता हैं जो पहले कहते थे कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होगी तो किसान मालामाल हो जाएगा, और अब कह रहे हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होगी तो पूंजीपति किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेंगे।

इन नेताओं में सबसे पहला नंबर अकाली दल के सर्वेसर्वा सुखबीर बादल का है। अकाली दल बीजेपी के साथ केंद्र की मोदी सरकार में पार्टनर थी। सुखबीर की पत्नी हरसिमरत कौर कैबिनट मिनिस्टर थीं, और उनकी मौजूदगी में ही केंद्रीय कैबिनेट ने तीनों नए कृषि कानूनों के ड्राफ्ट को मंजूरी दी थी और फिर संसद ने इन विधेयकों को पारित किया था।

आज सरकार और एनडीए से नाता तोड़ने के बाद सुखबीर बादल आरोप लगा रहे हैं कि ये तीनों कृषि कानून किसान विरोधी हैं, उन्हें बर्बाद करने वाले हैं। वह बीजेपी को एक ऐसी पार्टी बता रहे हैं जो किसानों की दुश्मन है। मंगलवार को तो सुखवीर बादल ने यहां तक कह दिया कि सबसे बड़ी 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' तो बीजेपी है जो देश के टुकड़े-टुकड़े करना चाहती है। मैंने अपने शो में हरसिमरत कौर का एक पुराना बयान दिखाया था, जब उन्होंने केंद्रीय मंत्री रहते हुए इन कृषि कानूनों की जमकर तारीफ की थी और इनका विरोध करने के लिए कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा था। 

अब सवाल यह है कि जब सुखवीर बादल और उनकी पत्नी को पता था कि ये कानून किसानों के हक में है, तो फिर उन्होंने इसका विरोध क्यों किया? ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने बीजेपी के साथ अपना 24 साल पुराना रिश्ता तोड़ दिया? इसकी वजह यह है कि पंजाब में 2 साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और सुखवीर की नजर किसानों की भलाई से ज्यादा इन चुनावों में जीत हासिल करने पर है। जब सुखवीर बादल को लगा कि कृषि कानूनों का विरोध करके कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के हीरो बन जाएंगे, तो उन्होंने भी मैदान में उतरने और इन कानूनों का विरोध करने का फैसला किया।

इसका नतीजा यह हुआ कि अब वे न तो इधर के रहे और न उधर के। न किसान उनका भरोसा करते हैं और न ही बीजेपी, लेकिन वे अपनी कोशिश में लगे हैं। सुखवीर बादल चाहते हैं कि अब बीजेपी उनके पास आए और किसानों का आंदोलन खत्म करने के लिए मदद मांगे। वह चाहते हैं कि वर्तमान तनाव खत्म करने का सारा क्रेडिट उन्हें मिल जाए। यही वजह है कि वह अकाली दल की यूनिट के जरिए किसानों को लगातार दिल्ली के बॉर्डर पर भेजकर केंद्र पर प्रेशर बनाने में जुटे हैं। अकाली दल अब किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ ही खड़ी दिख रही है। हरसिमरत कौर बादल कुछ दिन पहले तक इन दोनों ही पार्टियों पर 'किसानों को गुमराह' करने के लिए निशाना साधती रहती थीं।

कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में वादा किया था: कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी, जिससे कि कृषि उपज के निर्यात और अंतर्राज्यीय व्यापार पर लगे सभी प्रतिबन्ध समाप्त हो जाएं।' इस मैनिफेस्टो में यह भी वादा किया गया था कि 'कांग्रेस आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को बदलकर आज की जरूरतों और संदर्भों के हिसाब से नया कानून बनाएगी जो विशेष आपात परिस्थितियों में ही लागू किया जा सकेगा।'

जब मोदी सरकार ने इन्हीं सब वादों को शामिल करते हुए कानून बनाए तो राहुल गांधी ने पलटी मार ली और इन विधेयकों का विरोध करने का फैसला किया। कांग्रेस अब मांग कर रही है कि APMC (कृषि मंडियों) को भंग नहीं किया जाना चाहिए और आवश्यक वस्तु अधिनियम को उसके पुराने स्वरूप में ही रहने देना चाहिए। राहुल गांधी लगभग रोज ही ट्वीट करके अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से नए कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरने के लिए कह रहे हैं। मंगलवार को उन्होंने ट्विटर पर लिखा, 'मोदी सरकार के लिए प्रोटेस्ट कर रहे किसान खालिस्तानी हैं, और क्रोनी कैपिटलिस्ट बेस्ट फ्रेंड्स हैं।' पंजाब के कांग्रेस सांसद पिछले कई दिनों से दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं और तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

राहुल गांधी की समस्या यह है कि उन्हें किसानों की फिक्र कम है और इस बात की चिंता ज्यादा है कि मोदी को कैसे परेशान किया जाए। पिछले 6 साल से उनकी सुई अंबानी, अडानी पर अटकी हुई है। मसला चाहे कोई भी हो,  चाहे ङभूमि अधिग्रहण हो, या नोटबंदी हो, या जीएसटी हो या राफेल विमानों की खरीद हो, वह हर मसले को अंबानी और अडानी से जोड़ देते हैं। किसानों के लिए बने कानून को भी राहुल गांधी ने अंबानी, अडानी से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि मोदी ने ये कानून अपने चहेते उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए हैं, लेकिन राहुल गांधी पिछले 6 साल में ये आरोप इतनी बार लगा चुके हैं कि अब कोई इसे गंभीरता से नहीं लेता। अगर मोदी सरकार ने किसानों के लिए ये कानून न बनाए होते तो राहुल गांधी ये पूछते कि मोदी सरकार ने किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए क्या किया। वह तब कहते कि मोदी आढ़तियों के साथ मिले हुए हैं, किसानों के दुश्मन हैं।

सिर्फ विरोध के लिए मोदी का विरोध करने वालों में कांग्रेस ही अकेली नहीं है। अब महाराष्ट्र में इसकी साझेदार शिवसेना भी इसमें शामिल हो गई है। इस पार्टी ने कृषि कानूनों का समर्थन किया था और लोकसभा में इसके पक्ष में मतदान किया था, लेकिन जब अगले दिन राज्यसभा में तीनों बिल पेश किए गए, तो शिवसेना का रुख बदल गया और वह वोटिंग से गायब हो गई। यह 'यू' टर्न का एक क्लासिक उदाहरण है। शिवसेना के वही नेता जो कुछ दिन पहले तक राहुल गांधी की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाते थे, अब उन्हें कृषि विशेषज्ञ मानने को तैयार हैं।

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ भी ऐसा ही है। दिल्ली में उनकी सरकार ने इन नए कृषि कानूनों को 22 नंबवर को अधिसूचित किया। जब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आम आदमी पार्टी की सरकार पर बीजेपी के साथ खड़े होने का आरोप लगाया, तो केजरीवाल ने पलटवार करते हुए कहा कि तीनों कानून केंद्र सरकार ने बनाए हैं, और चूंकि ये कानून वाणिज्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं, इसलिए राज्य सरकार इन्हें लागू होने से नहीं रोक सकती।

यह भी सच है कि आम आदमी पार्टी ने जब 2017 का पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा, तो अपने घोषणापत्र में लिखा था कि APMC ऐक्ट में सुधार किया जाएगा ताकि किसान अपनी फसल को राज्य के बाहर भी, किसी भी खरीदार को बेच सकें। इसी घोषणापत्र में पार्टी ने मंडियों और प्रोसेसिंग यूनिट्स में बड़े पैमाने पर निजी पूंजी लाने का वादा भी किया था। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मंगलवार को बताया कि किस तरह से अपनी सियासत चमकाने के लिए पार्टी किसानों को गुमराह कर रही है।

चाहे कांग्रेस हो, या अकाली दल या आम आदमी पार्टी या फिर वामपंथी दल, इन सभी राजनीतिक पार्टियों की निगाह 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों पर है और इनकी पूरी दिलचस्पी ज्यादा से ज्यादा किसानों का समर्थन हासिल करने में है। यही पूरे मामले की जड़ है। ये सारी पार्टियां वहां के चुनाव में मुख्य दावेदार हैं और वे किसानों का गुस्सा नहीं झेलना चाहतीं। इन पार्टियों को लग रहा है कि जिस मोदी को वे चुनाव में नहीं हरा पाईं, उसे किसानों के सवाल पर फंसा देंगी। लेकिन इस आंदोलन का सबके रोचक पहलू ये है कि किसान नेता यह नहीं चाहते कि राजनीतिक दल उनके इस आंदोलन में शामिल हों। वे अपनी लड़ाई खुद लड़ना चाहते हैं। मैंने मंगलवार को कई बड़े किसान नेताओं से बात की। उन्होंने वादा किया कि किसानों के इस आंदोलन से किसी भी पार्टी को सियासी फायदा नहीं उठाने दिया जाएगा। कुछ किसान नेता तो अपने आंदोलन से लेफ्ट पार्टियों को भी किनारे करना चाहते हैं।

उत्तर भारत के राज्यों में भले ही लेफ्ट की बड़ी मौजूदगी न हो, लेकिन पंजाब के कुछ हिस्सों में इसके काडर का एक अच्छा नेटवर्क है जो किसानों के साथ काम कर रहा है। वामपंथी दल लगातार किसानों के आंदोलन को हाइजैक करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक कामयाबी नहीं मिल पाई है। हमने जब राष्ट्रविरोधी और नक्सली नेताओं की रिहाई के लिए प्लेकार्ड्स पकड़े हुए और ‘मोदी मर जा तू’ जैसे नारमे लगाते हुए लेफ्ट समर्थकों के वीडियो दिखाए तो किसान नेताओं ने कहा कि इस तरह की नारेबाजी को अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। दिल्ली की सीमा पर घरना देने वाले इन किसान नेताओं ने मंगलवार को कहा कि वे राष्ट्रविरोधी नारेबाजी या इस तरह की किसी भी गतिविधि की इजाजत नहीं देंगे। उन्होंने वादा किया कि वे राष्ट्रविरोधी तत्वों को किसानों के बीच नहीं घुसने देंगे। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 15 दिसंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

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