Friday, November 07, 2025
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देवबंद पहुंचे तालिबानी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी, दारुल उलूम में मौलाना अरशद मदनी से की मुलाकात

तालिबान नेता और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री शनिवार को देवबंद का दौरा किया। दरअसल तालिबान मदरसों औऱ इस्लामी विचार के लिहाज से दारुल उलूम को अपना आदर्श मानता है।

Reported By : Shoaib Raza Edited By : Mangal Yadav Published : Oct 11, 2025 08:33 am IST, Updated : Oct 11, 2025 02:37 pm IST
 मौलाना अरशद मदनी से मिलते अमीर खान मुत्ताकी- India TV Hindi
Image Source : REPORTER मौलाना अरशद मदनी से मिलते अमीर खान मुत्ताकी

देवबंदः अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी शनिवार को देवबंद दौरा किया। इस दौरान उन्होंने दारुल उलूम के मोहतमिम (VC) मुफ्ती अब्दुल कासिम नोमानी मौलाना, मौलाना अरशद मदनी से मुलाकात की। मुत्ताकी ने पूरे दारुल उलूम में घूमा और मस्जिद का दौरा भी किया। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने मीडिया से बातचीत में कहा कि दारुल उलूम में आकर उन्हें बेहद अच्छा लगा। यहां जिस तरह से इस्तक़बाल हुआ वो उसे काफी खुश हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि भारत औऱ अफगानिस्तान के रिश्ते आगे भी मज़बूत होंगे। 

धार्मिक और कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है यह दौरा

तालिबान नेता यह दौरा धार्मिक और कूटनीतिक दोनों ही दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है। यह यात्रा पाकिस्तान के उस दावे को चुनौती देती है, जिसमें पाकिस्तान खुद को देवबंदी इस्लाम का संरक्षक और तालिबान का मुख्य समर्थक बताता है। मुत्ताकी की देवबंद यात्रा से यह संदेश जाता है कि तालिबान की धार्मिक जड़ें भारत में हैं, न कि पाकिस्तान में। इसका मतलब है कि तालिबान अपनी राजनीति और कूटनीति में पाकिस्तान पर निर्भरता कम करके भारत की तरफ रुख कर रहा है। 1866 में देवबंद की नींव रखी गई और यह दारुल उलूम जैसे इस्लामी संस्थान का जन्मस्थल है। 

देवबंद में पढ़ते हैं अफगानिस्तान के छात्र

जानकारी के मुताबिक आज देवबंद दारुल उलूम पहुंचेगे अफगानिस्तान (तालिबान ) के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी करीब 11:00 बजे के करीब देवबंद पहुंचेंगे। दारुल उलूम के छात्र आमिर खान का स्वागत करेंगे। दारुल उलूम में इस समय अफगानिस्तान के 15 छात्र पढ़ते हैं। सन 2000 के बाद बनाए गए सख्त वीज़ा नियमों की वजह सेअफगानिस्तान के छात्रों की तादाद कम हो गई थी। पहले सैकड़ो छात्र दारुल उलूम में पढ़ाई करने के लिए आते थे।

बता दें कि तालिबान मदरसों औऱ इस्लामी विचार के लिहाज से दारुल उलूम को अपना आदर्श मानता है। दारुल उलूम से पढ़ने वाले छात्रों को मौजूदा अफगानिस्तान सरकार की नौकरियों में भी तरजीह दी जाती है। इससे पहले 1958 में अफगानिस्तान के बादशाह रहे मोहम्मद ज़ाहिर शाह दारुल उलूम आए थे। जाहिर शाह के नाम से दारुल उलूम में एक गेट भी बनाया हुआ हैं जिसका नाम "बाब ए ज़ाहिर "। 

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