Tuesday, May 07, 2024
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गंगा की स्वच्छता की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं बल्कि हम सभी की है: आरिफ मोहम्मद खान

खान ने बताया कि 1857 की क्रांति की याद में केरल में 1957 में एक नाटक लिखा गया जो पूरा का पूरा गंगा पर आधारित है, लेकिन केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के लोग अपनी पार्टी के प्रचार के लिए उस नाटक का इस्तेमाल करते हैं।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: October 23, 2021 16:44 IST
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Image Source : PTI केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि गंगा की स्वच्छता की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं बल्कि हम सभी की है।

प्रयागराज: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शनिवार को प्रयागराज में कहा कि गंगा के प्रति दक्षिण भारत में भी उतनी ही श्रद्धा है और इसको साफ रखने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि हम सभी की है। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र (NCZCC) में यंग लॉयर्स एसोसिएशन द्वारा ‘मोक्षदायिनी मां गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा एवं इसकी संरक्षा’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्य अतिथि आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि दक्षिण में गंगा नहीं है, लेकिन उनकी सांस्कृतिक मान्यताओं में भी गंगा की बात बहुत आदर के साथ होती है।

‘क्या हमारे काम गर्व करने लायक हैं?’

खान ने बताया कि 1857 की क्रांति की याद में केरल में 1957 में एक नाटक लिखा गया जो पूरा का पूरा गंगा पर आधारित है, लेकिन केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के लोग अपनी पार्टी के प्रचार के लिए उस नाटक का इस्तेमाल करते हैं। राज्यपाल ने कहा, ‘हमारी विरासत तो गर्व करने लायक है, लेकिन क्या हमारे काम गर्व करने लायक हैं, इस पर विचार करना होगा। आज लोगों ने अपने स्वार्थ के आगे सभी चीजों को पीछे कर दिया है।’ संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय हरित अधिकरण के सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने बताया कि गंगा में 11,000 क्यूसेक लीटर प्रति सेकेंड पानी बहता है, लेकिन हम गंगा पर बैराज बनाकर उसे अविरल बहने नहीं दे रहे हैं।

‘सुप्रीम कोर्ट के 50 साल पुराने फैसले आज तक लागू नहीं हुए’
जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि गंगा में पानी नहीं रहने से वह स्वच्छ नहीं रह सकती। उन्होंने कहा, ‘बैराज के जरिए सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना आवश्यक है, लेकिन इसमें संतुलन नहीं रखा गया। अदालतों ने अपना कर्तव्य पूरी तरह से निभाया, लेकिन शासन तो सरकारें करती हैं। हम जज होकर फैसले दे सकते हैं, लेकिन उन फैसलों को लागू कैसे करें। ऐसी स्थिति में अदालतें अपने आप को असहाय पाती हैं। सुप्रीम कोर्ट के 50 साल पुराने फैसले आज तक लागू नहीं हुए।’ उन्होंने कहा कि अदालतों के फैसले को लागू करने की सरकारों ने ईमानदार कोशिश नहीं की।

‘विकास के नाम पर पर्यावरण का नुकसान सभी करते रहे’
जस्टिस अग्रवाल ने कहा, ‘विकास के नाम पर पर्यावरण का नुकसान सभी करते रहे। वर्ष 85-90 के बीच में दो गंगा ऐक्शन प्लान में 1,000 करोड़ रुपये खत्म हो गए, वह पैसा कहां गया। कैग ने इस खर्च को लेकर गंभीर आपत्तियां की थीं, लेकिन उसका कुछ नहीं हुआ। मुझे लगता है कि जो अधिकारी इसको लागू करने के जिम्मेदार थे, उन्होंने भी इस पैसे को गंगाजल माना और डिब्बे में भरकर अपने घर ले गए। मैं जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि आज 2021 हो गया, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के मामले में किसी एक भी अधिकारी को सजा नहीं हुई। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने और भ्रष्टाचार करने के लिए आजतक न किसी अधिकारी से वसूली हुई, न निलंबन हुआ।’

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