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7 लोगों के फर्जी एनकाउंटर केस में 5 पुलिसवाले दोषी, SSP रैंक का अधिकारी भी है शामिल

1993 के फर्जी एनकाउंटर केस में CBI कोर्ट ने 5 पूर्व पुलिस अधिकारियों को हत्या, साजिश और सबूत मिटाने का दोषी ठहराया। इसमें SSP रैंक का अधिकारी भी शामिल है। सजा का ऐलान 4 अगस्त को होगा।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Aug 02, 2025 04:05 pm IST, Updated : Aug 02, 2025 04:05 pm IST
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Image Source : PTI REPRESENTATIONAL CBI की विशेष अदालत ने 5 पुलिसवालों को दोषी ठहराया है।

चंडीगढ़: पंजाब के मोहाली में CBI की विशेष अदालत ने 1993 में हुए एक फर्जी एनकाउंटर के मामले में 5 पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया है। इस मामले में तरन तारन जिले के 7 लोगों की हत्या हुई थी। अदालत ने इन अधिकारियों को आपराधिक साजिश, हत्या और सबूत मिटाने का दोषी पाया है। सजा का ऐलान 4 अगस्त को होगा। दोषी ठहराए गए पूर्व पुलिस अधिकारियों में रिटायर्ड सीनियर सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (SSP) भूपिंदरजीत सिंह, रिटायर्ड DSP दविंदर सिंह, पूर्व असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर गुलबर्ग सिंह, पूर्व इंस्पेक्टर सूबा सिंह और पूर्व ASI रघबीर सिंह शामिल हैं।

कैसे गढ़ी गई थी झूठे हमले की कहानी?

CBI की जांच के मुताबिक, 27 जून 1993 को सरहाली पुलिस स्टेशन के तत्कालीन SHO गुरदेव सिंह की अगुवाई में पुलिस ने एक सरकारी ठेकेदार के घर से 5 लोगों को हिरासत में लिया। इनमें 3 विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह और 2 अन्य बलकार सिंह एवं दलबीर सिंह शामिल थे। इन पर डकैती का झूठा इल्जाम लगाया गया था। 2 जुलाई 1993 को सरहाली पुलिस ने शिंदर सिंह, देसा सिंह और सूखदेव सिंह के खिलाफ एक मामला दर्ज किया, जिसमें दावा किया गया कि ये लोग सरकारी हथियार लेकर फरार हो गए।

12 जुलाई 1993 को तत्कालीन DSP भूपिंदरजीत सिंह और इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह की अगुवाई में पुलिस ने दावा किया कि वे मंगल सिंह नाम के एक शख्स को डकैती के मामले में रिकवरी के लिए घड़का गांव ले जा रहे थे, तभी उग्रवादियों ने उन पर हमला कर दिया। इस कथित मुठभेड़ में मंगल सिंह, देसा सिंह, शिंदर सिंह और बलकार सिंह मारे गए।

CBI की जांच में एनकाउंटर पर बड़ा खुलासा

CBI की जांच में इस मुठभेड़ को पूरी तरह फर्जी पाया गया। जब्त किए गए हथियारों की फोरेंसिक जांच में कई गड़बड़ियां सामने आईं। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि मरने वालों को मौत से पहले यातनाएं दी गई थीं। इतना ही नहीं, इन लोगों के शवों को बिना पहचान के ही 'अनक्लेम्ड' बताकर जला दिया गया। इसके बाद 28 जुलाई 1993 को एक और फर्जी एनकाउंटर में सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह को मार दिया गया। इस घटना में भी तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह की अगुवाई वाली पुलिस टीम शामिल थी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई थी CBI जांच

पंजाब में अज्ञात शवों की सामूहिक अंत्येष्टि का मुद्दा उठने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह मामला 1996 में CBI को सौंपा गया। CBI ने 1999 में शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर की शिकायत पर केस दर्ज किया। इस मामले में 5 अन्य आरोपी पुलिस अधिकारी तत्कालीन इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह, तत्कालीन सब-इंस्पेक्टर ज्ञान चंद, तत्कालीन ASI जगीर सिंह, तत्कालीन हेड कांस्टेबल मोहिंदर सिंह और अरूर सिंह की मुकदमे के दौरान मौत हो चुकी है। CBI जज बलजिंदर सिंह सरा की अदालत ने इस मामले में लंबी सुनवाई के बाद पांचों पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिया। पीड़ित परिवारों को अब 32 साल बाद इंसाफ की उम्मीद जगी है। सजा का ऐलान 4 अगस्त को होगा, जिसका सभी को इंतजार है। (PTI)

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