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Baisakhi 2023: 13 या 14 अप्रैल, कब है बैसाखी 2023? जानिए आखिर क्यों मनाया जाता है यह पर्व

Baisakhi 2023: बैसाखी को कई नामों से जाना जाता है। असम में जहां 'बिहू' तो बंगाल में 'पोइला बैसाख' के नाम से जाना जाता है। तो चलिए इस लेख के जरिए आज हम आपको बताते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें।

Written By: Sushma Kumari @ISushmaPandey
Published on: April 10, 2023 14:52 IST
Baisakhi 2023- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Baisakhi 2023

 Baisakhi 2023:  हरियाणा और पंजाब का सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक बैसाखी (Baisakhi) हर साल बड़े ही जोरों-शोरों से मनाया जाता है। ये न सिर्फ सिखों के नए पर्व के रूप में बल्कि कई और कारणों से भी मनाया जाता है। दरअसल, बैसाखी के दिन ही अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्‍थापना की थी। इसके अलावा इस दौरान पंजाब में रबी की फलकर भी पककर तैयार हो जाती है। यूं तो बैसाखी को कई नामों से जाना जाता है। असम में 'बिहू', बंगाल में 'पोइला बैसाख' तो वहीं केरल में 'पूरम विशु' के नाम से जाना जाता है। तो चलिए इस लेख के जरिए आज हम आपको बताते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें। 

कब मनाया जाएगा बैसाखी 2023? 

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर साल 13 या 14 अप्रैल को बैसाखी मनाई जाती है। लेकिन पंचाग के अनुसार, इस साल बैसाखी का पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाएगा।  इस दिन ही ग्रहों के राजा सूर्य भी मेष राशि में गोचर करते हैं, जिसे मेष संक्रांति कहा जाता है।

कैसे मनाया जाता है बैसाखी का पर्व?

बैसाखी को सिख समुदाय के लोग नए साल के रूप में मनाते हैं। इस दिन सिख समुदाय के लोग ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते हैं। गुरुद्वारों को सजाया जाता है साथ ही भजन-कीर्तन कराए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को नए साल की बधाई देते हैं। घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। लोग अपने घरों को लाइटिंग से सजाते हैं। इस दिन कई जगह मेले भी लगते हैं। यूं तो यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन पंजाब और हरियाणा में इसकी चमक ही अलग होती है।

इस दिन हुई थी खालसा पंथ की स्थापना

बैसाखी के दिन सिख धर्म के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने 13 अप्रैल सन् 1699 में आनंदपुर साहिब में खालसा पंत की नींव रखी थी। इस दौरान खालसा पंथ की स्‍थापना का मकसद लोगों को तत्‍कालीन मुगल शासकों के अत्‍याचारों से मुक्‍त करना था। साथ ही गोविंद सिं हजी ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया था। इसके बाद सिख समुदाय के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना मार्गदर्शन बनाया। 

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