Friday, December 12, 2025
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टैरिफ पर PM मोदी की रणनीति के आगे नतमस्तक अमेरिका, रिश्ते सुधारने को ट्रंप अब भारत के साथ बनाना चाहते हैं नया 'C-5 सुपरक्लब'

भारत के साथ टैरिफ पर उपजे तनाव के बीच अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप ने अब रिश्ते सुधारने की पहल शुरू कर दी है। इसके लिए ट्रंप भारत को नए सी5 सुपरक्लब में महाशक्ति के रूप में शामिल करना चाहते हैं।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Dec 12, 2025 02:07 pm IST, Updated : Dec 12, 2025 02:07 pm IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बाएं) और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (दाएं) (फाइल)- India TV Hindi
Image Source : AP प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बाएं) और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (दाएं) (फाइल)

वाशिंगटः भारत पर हैवी टैरिफ लगाने वाला अमेरिका पीएम मोदी की कूटनीति के आगे आखिरकार नतमस्तक होता दिख रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब हाई टैरिफ की वजह से भारत के साथ बिगड़े रिश्ते को बैलेंस करने के लिए 5 महाशक्तिशाली देशों का नया C-5 सुपरक्लब बनाना चाहते हैं। ट्रंप इस सुपरक्लब में भारत को प्रमुख शक्ति के रूप में शामिल करना चाहते हैं। यह दावा अमेरिकी प्रकाशन पॉलिटिको की रिपोर्ट में किया गया है। इस सुपर क्लब में भारत-अमेरिका के अलावा रूस, चीन और जापान को शामिल करने की बात कही गई है। 

चीन और रूस के साथ भी पावर बैलेंस करना चाहता है अमेरिका

ट्रंप के इस प्लान से साफ है कि वह भारत को साधने के साथ ही साथ चीन और रूस के साथ भी अपने रिश्तों को सुधारना चाहता है। ताकि पूर्वी एशिया में अमेरिका अपनी खोई हुई इमेज को फिर से सुधार सके और भारत, रूस व चीन जैसे देशों के साथ दुश्मनी के आयाम को कम कर सके। 

पॉलिटिको की रिपोर्ट में और क्या है?

पॉलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप कथित तौर पर एक नया एलीट ‘C5’ यानी ‘कोर फाइव’ वैश्विक शक्ति समूह बनाने पर विचार कर रहे हैं, जिसमें अमेरिका, रूस, चीन, भारत और जापान शामिल होंगे। यह मौजूदा यूरोप-प्रधान G7 और अन्य लोकतंत्र-आधारित धनी देशों के समूहों को दरकिनार कर देगा। हालांकि अभी तक इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन अमेरिकी प्रकाशन पॉलिटिको ने रिपोर्ट किया कि इस नए ‘हार्ड-पावर’ समूह का विचार पिछले हफ्ते व्हाइट हाउस द्वारा जारी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के लंबे अप्रकाशित संस्करण में सामने आया था।

क्या है ट्रंप का मकसद

रिपोर्ट के अनुसार नई संस्था का मकसद एक ऐसा प्रमुख शक्तियों का समूह बनाना है जो G7 की उन शर्तों से बंधा न हो कि सदस्य देश अमीर भी हों और लोकतांत्रिक भी। इस रणनीति में प्रस्तावित ‘कोर फाइव’ (C5) में संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस, भारत और जापान शामिल हैं। यानी वे देश जिनकी आबादी 10 करोड़ से ज्यादा है। यह G7 की तरह नियमित रूप से शिखर सम्मेलन करेगा। 

C5 का पहला प्रस्तावित एजेंडा 

C5 का पहला प्रस्तावित एजेंडा मध्य पूर्व में सुरक्षा, खासकर इज़रायल और सऊदी अरब के बीच संबंधों का सामान्यीकरण करना है। रिपोर्ट के अनुसार व्हाइट हाउस ने इस दस्तावेज़ के अस्तित्व से इनकार किया है। प्रेस सेक्रेटरी हन्नाह केली ने जोर दिया कि 33 पेज की आधिकारिक योजना का कोई “वैकल्पिक, निजी या गुप्त संस्करण” नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह विचार पूरी तरह “ट्रम्प जैसा” है और मौजूदा व्हाइट हाउस के लिए उपयुक्त हो सकता है। बाइडेन प्रशासन में यूरोपीय मामलों की निदेशक रहीं टोरी टॉसिग ने कहा, “यह राष्ट्रपति ट्रम्प के विश्व दृष्टिकोण से पूरी तरह मेल खाता है। यह गैर-वैचारिक, मजबूत खिलाड़ियों के प्रति सहानुभूति, और क्षेत्रीय प्रभाव वाले अन्य महाशक्तियों के साथ सहयोग करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।”

नये  C5 में यूरोप की कोई जगह नहीं

उन्होंने नोट किया कि इस सैद्धांतिक C5 में यूरोप की कोई जगह नहीं है, “जिससे यूरोपीय लोगों को लगेगा कि यह प्रशासन रूस को यूरोप में अपना प्रभाव क्षेत्र रखने वाली प्रमुख शक्ति मानता है।”पहले ट्रम्प प्रशासन में रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज़ के सहायक रहे माइकल सोबोलिक ने कहा कि C5 बनाना ट्रम्प के पहले कार्यकाल की चीन नीति से पूरी तरह उल्टा कदम होगा। पहले ट्रम्प प्रशासन ने ‘महाशक्ति प्रतिस्पर्धा’ के कॉन्सेप्ट को अपनाया था... यह उससे बहुत बड़ा विचलन है। यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब वॉशिंगटन में यह बहस चल रही है कि दूसरा ट्रम्प प्रशासन विश्व व्यवस्था को कितना उलट-पुलट करना चाहता है। 

यह विचार मौजूदा G7 और G20 जैसे मंचों को बहुध्रुवीय दुनिया के लिए अपर्याप्त बताता है और बड़ी आबादी व सैन्य-आर्थिक शक्ति वाले देशों के बीच सौदेबाजी को प्राथमिकता देता है।अमेरिका के सहयोगी इसे “तानाशाहों का वैधीकरण” मान रहे हैं। रूस को यूरोप से ऊपर उठाना, पश्चिमी एकता और नाटो की एकजुटता को कमजोर करना। अगर यह प्रस्ताव आगे बढ़ता है, तो भारत को एक नए वैश्विक ‘सुपरक्लब’ में स्थायी सीट मिल सकती है-लेकिन इसके साथ यूरोप और मौजूदा लोकतांत्रिक गठबंधनों से दूरी भी बढ़ेगी।

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