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इन कोर्सों के लिए जरूरी अटेंडेंस होंगे खत्म! दिल्ली हाईकोर्ट ने की खास टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट ने लॉ छात्रों के लिए एक अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि छात्रों के लिए जरूरी अटेंडेंस बेसलाइन को कम करने की जरूरत है।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Dec 17, 2024 09:13 am IST, Updated : Dec 17, 2024 09:13 am IST
Delhi HC- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO प्रतीकात्मक फोटो

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को लॉ कोर्सों के लिए 70 प्रतिशत की अनिवार्य अटेंडेंस बेसलाइन की जरूरत को कम करने का समर्थन किया और बार काउंसिल ऑफ इंडिया का रुख पूछा। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने कहा कि छात्रों का अपनी शिक्षा बढ़ाने के लिए वकीलों के पास इंटर्नशिप करना आम बात है और कई बार शिक्षकों की अनुपस्थिति के कारण कक्षाएं आयोजित नहीं की जातीं।

कम बोनी चाहिए अटेंडेंस बेसलाइन

बेंच ने कहा कि नियामक होने के नाते बीसीआई को लॉ के क्षेत्र में वास्तविक वास्तविकता को ध्यान में रखना चाहिए और फिर लॉ कोर्सों में उपस्थिति के लिए नियम बनाना चाहिए। बेंच ने आगे कहा, "बेसलाइन 40 प्रतिशत हो सकती है। वे प्रमाण-पत्रों के साथ पूरक कर सकते हैं। अधिकांश कक्षाएं दोपहर 1 या 2 बजे तक खत्म हो जाती हैं। वे हाथों-हाथ सीख सकते हैं। बेसलाइन कम होनी चाहिए। आप किसी भी मामले में परीक्षा नहीं रोक सकते।"

जारी हुआ था सर्कुलर

कोर्ट ने बीसीआई के एक कथित सर्कुलर के संबंध में अपनी आपत्ति जताई, जिसमें लॉ के छात्रों की अटेंडेंस दर्ज करने के लिए बायोमेट्रिक्स और सीसीटीवी के इस्तेमाल को अनिवार्य बनाया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी छात्र को अटेंडेंस से वंचित करने वाली कोई भी उपस्थिति आवश्यकता छात्र के हित के विपरीत है और फिर बीसीआई से जुड़े मैटेरियल पेश करने को कहा, जिसके फलस्वरूप अटेंडेंस बेसलाइन 66 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत हुई।

कोर्ट ने कहा, "नियामक को यह ध्यान में रखना चाहिए कि छात्र क्या चाहते हैं, वे क्या सोच रहे हैं.. नियामक इस बात से अनजान नहीं हो सकता कि जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है। इसका कोई औचित्य होना चाहिए। यह 70 प्रतिशत क्यों है?" कोर्ट ने बीसीआई से 3 वर्षीय और 5 वर्षीय लॉ कोर्स दोनों के संबंध में अटेंडेंस बेसलाइन में कमी के प्रस्ताव की जांच करने को भी कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने शुरू की थी सुनवाई

अदालत ने यह आदेश लॉ स्टूडेंट सुशांत रोहिल्ला की 2016 में आत्महत्या से संबंधित मामले पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसे कथित तौर पर अटेंडेंस की कमी के कारण सेमेस्टर परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया गया था। एमिटी के तीसरे वर्ष के लॉ छात्र रोहिल्ला की 10 अगस्त, 2016 को अपने घर पर फांसी लगाकर मौत हो गई थी, जब उनके कॉलेज ने कथित तौर पर आवश्यक उपस्थिति की कमी के कारण उन्हें सेमेस्टर परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया था। इस घटना के बाद सितंबर, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई शुरू की, लेकिन मार्च 2017 में फिर इसे हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था।

अब फरवरी में होगी सुनवाई

कोर्ट ने पहले कहा था कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अनिवार्य उपस्थिति मानदंडों पर फिर से विचार करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि कोविड-19 महामारी के बाद टीचिंग मेथेड में काफी बदलाव आया है। आगे कहा कि उपस्थिति आवश्यकताओं पर विचार करते समय छात्रों के मेंटल हेल्थ को ध्यान में रखा जाना चाहिए और शैक्षणिक संस्थानों में शिकायत निवारण तंत्र और सहायता प्रणाली की भूमिका को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए। इस मामले की सुनवाई फरवरी 2025 में होगी।

(इनपुट- पीटीआई)

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