ISRO Day: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी कि ISRO ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्हीं उपलब्धियों को याद करने के लिए 22 अगस्त को 'ISRO Day' के रूप में मनाया जाता है। ISRO की उपलब्धियों का एक एक बड़ा हिस्सा श्रीहरिकोटा और बालासोर जैसे चुनिंदा स्थानों से रॉकेट लॉन्चिंग के कारण संभव हो पाया है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ISRO अपनी सारी लॉन्चिंग इन्हीं दो जगहों से क्यों करता है? आपको हम इसके पीछे के कारणों के बारें में आज विस्तार से बताएंगे।
श्रीहरिकोटा से लॉन्च हुए थे चंद्रयान और मंगलयान
श्रीहरिकोटा आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में स्थित है और ISRO का पहला लॉन्च सेंटर है। इसे दुनिया सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC-SHAR) के नाम से जानती है। यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण स्पेसपोर्ट यानी कि अंतरिक्ष प्रक्षेपण स्थल है जहां से चंद्रयान, मंगलयान, और आदित्य-एल1 जैसे ऐतिहासिक मिशन लॉन्च किए गए हैं। श्रीहरिकोटा को इस अहम रोल के लिए 1969 में चुना गया था, और यहां से पहला रॉकेट 1971 में लॉन्च हुआ था, जब रोहिणी-125 साउंडिंग रॉकेट को छोड़ा गया था।
भूमध्य रेखा से करीबी की वजह से खास है श्रीहरिकोटा
श्रीहरिकोटा की भौगोलिक स्थिति इसे लॉन्चिंग के लिए आदर्श बनाती है। यह जगह भूमध्य रेखा यानी कि Equator के करीब है, जो रॉकेट लॉन्चिंग में एक बड़ा फायदा देती है। पृथ्वी की 'रोटेशनल स्पीड' भूमध्य रेखा के पास सबसे ज्यादा होती है, जिसकी वजह से रॉकेट को अतिरिक्त गति (लगभग 450 मीटर/सेकंड) मिलती है। इससे फ्यूल की बचत होती है और पेलोड (payload) की क्षमता बढ़ जाती है। जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स, जो भूमध्य रेखा के समतल में रहते हैं, के लिए यह जगह बहुत काम की होती है।

द्वीप पर होना भी बनाता है श्रीहरिकोटा को खास
श्रीहरिकोटा एक द्वीप पर स्थित है, जो पुलिकट झील और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। यह सुनिश्चित करता है कि रॉकेट का उड़ान पथ (flight path) समुद्र के ऊपर हो, जिससे किसी दुर्घटना की स्थिति में आबादी वाले इलाकों को नुकसान न पहुंचे। श्रीहरिकोटा की मिट्टी और चट्टानी ढांचा भी मजबूत है, जो लॉन्च के दौरान होने वाले तीव्र कंपन यानी कि वाइब्रेशंस को सहन कर सकता है।
श्रीहरिकोटा के दोनों लॉन्च पैड्स का काम क्या है?
श्रीहरिकोटा में 2 लॉन्च पैड्स हैं, फर्स्ट लॉन्च पैड (FLP) और सेकेंड लॉन्च पैड (SLP)। पहला पैड मुख्य रूप से PSLV और SSLV मिशनों के लिए इस्तेमाल होता है, जबकि दूसरा GSLV और LVM3 जैसे भारी रॉकेट्स के लिए। हाल ही में, तीसरे लॉन्च पैड की योजना को मंजूरी दी गई है, जो 30,000 टन तक के अंतरिक्ष यान को लॉन्च करने में सक्षम होगा। यह भारत के गगनयान और चंद्रयान-4 जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए महत्वपूर्ण होगा।

बालासोर से होती है साउंडिंग रॉकेट्स की लॉन्चिंग
ओडिशा में स्थित बालासोर रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन ISRO के छोटे और साउंडिंग रॉकेट्स के लिए उपयोग होता है। यह श्रीहरिकोटा के साथ मिलकर ISRO रेंज कॉम्प्लेक्स (IREX) का हिस्सा है, जिसका मुख्यालय श्रीहरिकोटा में है। बालासोर मुख्य रूप से साउंडिंग रॉकेट्स की टेस्टिंग और छोटे वैज्ञानिक मिशनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साउंडिंग रॉकेट्स छोटे रॉकेट होते हैं, जो वायुमंडल की स्टडी और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
छोटे रॉकेट्स की लॉन्चिंग के लिए सही है बालासोर
बालासोर की स्थिति भी श्रीहरिकोटा की तरह काफी रणनीतिक जगह पर स्थित है। यह पूर्वी तट पर स्थित है, जो समुद्र के ऊपर सुरक्षित उड़ान पथ (flight path) प्रदान करता है। बालासोर का इस्तेमाल छोटे रॉकेट्स के लिए इसलिए भी होता है क्योंकि यह श्रीहरिकोटा की तुलना में कम व्यस्त है, और छोटे मिशनों के लिए स्पेशल सुविधाएं प्रदान करता है। यह स्थान ISRO को विभिन्न प्रकार के रॉकेट्स और मिशनों के लिए लचीलापन देता है।
श्रीहरिकोटा और बालासोर इसलिए भी हैं खास
श्रीहरिकोटा और बालासोर उपग्रहों और रॉकेट्स की लॉन्चिंग के लिए इसलिए भी खास हैं क्योंकि:
- भौगोलिक लाभ: श्रीहरिकोटा और बालासोर दोनों ही पूर्वी तट पर हैं, जो पूर्व दिशा में लॉन्चिंग के लिए आदर्श है। पूर्व दिशा में लॉन्च करने से पृथ्वी की रोटेशनल स्पीड का अधिकतम लाभ मिलता है।
- सुरक्षा: दोनों स्थान समुद्र के करीब हैं, जिससे रॉकेट के अवशेष आबादी वाले इलाकों से दूर समुद्र में गिरते हैं। यह सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है।
- मौसम और बुनियादी ढांचा: श्रीहरिकोटा में साल भर अधिकतर समय मौसम लॉन्चिंग के लिए अनुकूल रहता है, और वहां का बुनियादी ढांचा (जैसे टेलीमेट्री, ट्रैकिंग, और कंट्रोल सेंटर) वर्ल्ड क्लास है। बालासोर में भी छोटे मिशनों के लिए जरूरी सुविधाएं मौजूद हैं।
- रणनीतिक कारण: श्रीहरिकोटा से 'पोलर ऑर्बिट' में लॉन्च करने के लिए रॉकेट को श्रीलंका के ऊपर से उड़ान भरने से बचाने के लिए 'डॉग-लेग मैन्यूवर' करना पड़ता है, जो फ्यूल की खपत बढ़ाता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए ISRO ने तमिलनाडु के कुलासेकरपट्टिनम में दूसरा स्पेसपोर्ट विकसित करने का प्लान बनाया है।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शान हैं दोनों केंद्र
इस तरह देखा जाए तो श्रीहरिकोटा और बालासोर ISRO के लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये स्थान भौगोलिक, वैज्ञानिक और सुरक्षा के लिहाज से आदर्श हैं। श्रीहरिकोटा का सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र भारत के बड़े और महत्वाकांक्षी मिशनों का की लॉन्चिंग के लिए इस्तेमाल होता है, जबकि बालासोर छोटे वैज्ञानिक मिशनों के लिए सही है। इन दोनों केंद्रों ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक मजबूत पहचान दिलाई है।



