Sunday, May 19, 2024
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World Thalassemia Day 2024: इस बीमारी में शरीर से सूखने लगता है खून, डॉक्टर से जानें इस ब्लड डिसऑर्डर के लक्षण और बचाव के उपाय

​थैलेसीमिया एक ब्लड डिसऑर्डर है जिसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। ऐसे में डॉक्टर ने हमें बताया कि किस कंडीशन में यह बीमारी होती है और इसका ट्रीटमेंट क्या है?

Written By: Poonam Yadav @R154Poonam
Updated on: May 08, 2024 13:00 IST
क्या है थैलेसीमिया?- India TV Hindi
Image Source : SOCIAL क्या है थैलेसीमिया?

थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 8 मई को ‘वर्ल्ड थैलेसीमिया डे’ मनाया जाता है। बता दें थैलेसीमिया एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर असामान्य तरीके से प्रभावित होने लगता है। इस वजह से शरीर में धीरे-धीरे खून की कमी होने लगती है। न्यूबर्ग डायग्नोस्टिक्स के चीफ ऑफ़ लैब डॉ. विज्ञान मिश्रा हमें बता रहे हैं कि आखिर थैलेसीमिया के लक्षण, कारण और बचाव के उपाय क्या हैं?

थैलेसीमिया क्या है? (What is Thalassemia?)

डॉ. विज्ञान मिश्रा कहते हैं, ‘’थैलेसीमिया एक ब्लड डिसऑर्डर है। यह बीमारी अनुवांशिक होती है। इसमें व्यक्ति के शरीर में रेड ब्लड सेल्स की मात्रा कम होने लगती है जिस वजह से हीमोग्लोबिन का स्तर असामान्य हो जाता है जिस वजह से शरीर में खून की कमी होने लगती है।'' 

थैलेसीमिया के लक्षण: (Symptoms of Thalassemia)

  • बहुत ज़्यादा थकान: खून की कमी के कारण 
  • कमज़ोरी होना: रेड ब्लड सेल्स की संख्या में कमी के कारण
  • स्किन का पीला पड़ना: एनीमिया का एक सामान्य लक्षण
  • सांस लेने में तकलीफ़: पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण 

थैलेसीमिया के कारण: (Causes of Thalassemia)

थैलेसीमिया तब होता है जब हीमोग्लोबिन प्रोडक्शन को कंट्रोल करने वाले जीन में उत्परिवर्तन होता है। दरअसल, हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन में दो प्रकार की प्रोटीन श्रृंखलाएं होती हैं - अल्फा-ग्लोबिन और बीटा-ग्लोबिन। अगर जीन में उत्परिवर्तन होने की वजह से अल्फा या बीटा प्रोटीन श्रृंखला में से कोई भी असामान्य हो जाता है, तो इस वजह से रेड ब्लड सेल्स के प्रोडक्शन में कमी होने लगती है। 

कैसे करें थैलेसीमिया से बचाव?(How to prevent thalassemia)

  • जेनेटिक काउंसलिंग: थैलेसीमिया के फॅमिली हिस्ट्री वाले कपल्स को जेटेनिक काउंसलिंग ज़रूर करानी चाहिए ताकि पता चल सके कि यह उनके लिए कितना रिस्की है। 

  • पैरेंटल टेस्टिंग: जिस कपल में यह समस्या जेनेटिक पायी गयी है उन्हें प्रेग्नेंसी में यह टेस्ट ज़रूर कराना चाहिए ताकि पता लगाया जा सके कि भ्रूण में थैलेसीमिया जीन है या नहीं?

  • प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (पीजीडी): आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान भ्रूण को इम्प्लांट किए जाने से पहले उसकी थैलेसीमिया जीन की जांच की जाती है।

थैलेसीमिया में इन टेस्ट को कराएं (Get these tests done in thalassemia)

  • कम्प्लीट ब्लड काउंट (CBC): लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा और गुणवत्ता को मापता है।

  • हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस: रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन के प्रकारों की पहचान करता है, जिसमें असामान्य वेरिएंट भी शामिल हैं।

  • जेनेटिक टेस्टिंग: थैलेसीमिया के लिए जिम्मेदार जेनेटिक उत्परिवर्तन की पहचान करता है।

  • आयरन स्टडीज़: रक्त में आयरन के स्तर को बताता है जो थैलेसीमिया और आयरन की कमी को पहचानने में मदद करता है। 

  • बोन मैरो बायोप्सी:  यह टेस्ट थैलेसीमिया की गंभीरता को पहचानने और ट्रीटमेंट कैसी शुरू करनी है यह बताता है। 

 

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