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BLOG: केवल हिंदू त्योहारों को ही क्यों टारगेट किया जाता है?

चूंकि ये फैसले सिर्फ हिन्दुओं के त्योहारों से जुड़े हैं इसीलिए यह सवाल भी उठेगा कि क्या हिन्दू समाज के त्योहारों को लेकर ऐसे फैसले इसलिए किए जाते हैं कि हिन्दू सहनशील हैं? वे ज्यादा रिएक्ट नहीं करेंगे।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published : Oct 12, 2017 08:33 pm IST, Updated : Oct 12, 2017 08:33 pm IST
Rajat sharma Blog- India TV Hindi
Rajat sharma Blog

दिवाली से दस दिन पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के बाद अब बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जानवरों के प्रति क्रूरता का हवाला देते हुए महाराष्ट्र सरकार को दिवाली के दौरान बैलगाड़ी रेस की इजाजत देने से इनकार कर दिया। इससे पहले जल्लीकट्टू पर बैन लगाया गया था जिससे तमिलनाडु में नाराजगी हुई। फिर ये फैसला आया कि दही हांडी की ऊंचाई कितनी हो? गोविंदा की उम्र कितनी हो? इससे महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर नाराजगी हुई। फिर मांग हुई कि मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई जाए। विजयादशमी के दिन ही मोहर्रम था और पश्चिम बंगाल की सरकार ने मोहर्रम के जुलूस के लिए मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी। अब दिल्ली NCR में दिवाली में पटाखों की ब्रिकी पर रोक का फैसला आया और बुधवार को महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ पर रोक लगा दी गई। अब लोग कहेंगे अगर बैलगाड़ी की दौड़ से पशु के साथ क्रूरता होती है तो फिर बकरीद पर बकरा काटने से क्रूरता होती है। इससे लोगों को नाराजगी तो होगी। चूंकि ये फैसले सिर्फ हिन्दुओं के त्योहारों से जुड़े हैं इसीलिए यह सवाल भी उठेगा कि क्या हिन्दू समाज के त्योहारों को लेकर ऐसे फैसले इसलिए किए जाते हैं कि हिन्दू सहनशील हैं? वे ज्यादा रिएक्ट नहीं करेंगे। यह एक ऐसा सवाल है जिस पर सबको विचार करने की जरूरत है। पर्यावरण जरूरी है...पशुओं के साथ क्रूरता नहीं हो लेकिन परंपराएं और त्योहारों का भी महत्व है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई सवाल उठे हैं। पहला तो टाइमिंग का है कि एक महीने पहले अदालत ने पटाखों की बिक्री से बैन हटाया। 500 व्यापारियों को लाइसेंस देने की मंजूरी दी। 500 दुकानदारों ने पांच सौ करोड़ के पटाखों का स्टॉक मंगवा लिया और अब दिवाली से दस दिन पहले रोक लगा दी। अगर पटाखों को बैन करना था तो दुकानदारों को लाइसेंस ही क्यों दिए गए? उनका क्या कसूर? दूसरा सवाल यह है कि दिवाली पर आतिशबाजी की परंपरा कोई नई नहीं हैं। सैकड़ों साल से चली आ रही है। इसे एक झटके में कैसे बंद किया जा सकता है। तीसरा सवाल सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई है, पटाखे चलाने पर बैन नहीं है। अब लोग बाहर से पटाखे लाकर चलाएंगे तो क्या उससे पॉल्यूशन नहीं होगा? पुलिस क्या घर-घर जाकर पूछेगी कि पटाखा कहां से लाए? इन सब बातों को देखकर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को एक बार फिर अपने फैसले पर विचार करना चाहिए। (रजत शर्मा)

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