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Rajat Sharma's Blog | किसान आंदोलन : हल केवल बातचीत से ही निकलेगा

किसानों की समस्याओं का समाधान बातचीत से ही निकलेगा, मेज पर बैठकर निकलेगा। दोनों पक्षों को इसी दिशा में काम करना चाहिए। आज तक किसी भी समस्या का हल टकराव से नहीं निकला।

Written By: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : Feb 22, 2024 17:48 IST, Updated : Feb 22, 2024 17:48 IST
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Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

हरियाणा-पंजाब सीमा पर बुधवार को किसान आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। अभी तक पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर तनाव था, लेकिन बुधवार को दाता सिंह खनौरी बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। पुलिस पर पथराव हुआ, पराली में मिर्च का पाउडर डालकर आग लगा कर पुलिस की तरफ फेंका गया, गंडासों से हमला हुआ। इसमें 12 पुलिसवाले बुरी तरह घायल हो गए। किसानों का दावा है कि पुलिस ने उनके कैंप्स मे घुसकर फायरिंग की जिसमें एक नौजवान, भटिंडा के शुभकरण सिंह की मौत हो गई, और कई लोग घायल हैं। पुलिस ने गोली चलाने के आरोप से इनकार किया है। किसान नेता मांग कर रहे हैं कि शुभकरण  के शरीर का पोस्टमॉर्टम एक मेडिकल बोर्ड से कराया जाए और उसके परिवार को फौरन मुआवजा दिया जाय। हिंसा के बाद किसान नेताओं ने दो दिन के लिए आंदोलन स्थगित कर दिया है। किसान नेताओं ने प्रदर्शनकारियों से कहा है कि वो टकराव के हालात पैदा न करें, जहां हैं, वहीं डटे रहें। अब दो दिन बाद किसान संगठनों के नेता अपनी नई रणनीति बताएंगे। किसान संगठनों की जिद के कारण पंजाब हरियाणा बॉर्डर और दिल्ली के चारों बॉर्डर्स पर टेंशन है। किसान नेता दिल्ली की तरफ बढ़ने पर अड़े हैं। हरियाणा की पुलिस उन्हें रोक रही है और पंजाब की पुलिस खामोशी से तमाशा देख रही है। पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर जंग जैसे हालात हैं। दोनों तरफ से तैयारी पूरी है। बॉर्डर पर दोनों तरफ भारी भरकम पोकलेन (Poclain) और JCB मशीनें खड़ी हैं।

बॉर्डर के एक तरफ पुलिस के हजारों जवान हैं, दूसरी तरफ किसान संगठनों के हजारों प्रदर्शनकारी। एक तरफ पुलिस के हाथ में आंसू गैस के गोले छोड़ने वाली बंदूकें हैं और दूसरी तरफ आंसू गैस से बचने के लिए गैस मास्क, स्विमिंग ग्लासेज और लाठी डंडों से लैस किसान। सरकार कह रही है कि किसानों से हर मुद्दे पर बात करने को तैयार हैं लेकिन किसान नेता कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। किसान आंदोलन के चक्कर में पंजाब और हरियाणा पुलिस भी आमने-सामने हैं। हरियाणा पुलिस ने पंजाब पुलिस से कहा है कि पोकलेन, JCB  मशीनें और मॉडीफाइड ट्रैक्टर्स को बॉर्डर तक पहुंचने से रोकें। पंजाब पुलिस ने ऑर्डर तो जारी कर दिए लेकिन किसी को रोका नहीं। किसान आंदोलन की वजह से दो राज्यों की सरकारें परेशान हैं, आम लोगों को जबरदस्त दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं, रास्ते बंद हैं, इंटरनेट बंद हैं, बच्चों के माता पिता टेंशन में हैं लेकिन किसान नेता कोई बात सुनने को तैयार नहीं हैं। सवाल ये है कि आखिर किसान संगठन चाहते क्या हैं? सरकार से बातचीत के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? दिल्ली आकर किसान क्या हासिल करना चाहते हैं?

बुधवार की रात को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया, दावा ये किया जा रहा है कि ये वीडियो खनौरी बॉर्डर पर हुई हिंसा का है। दावा किया गया है कि वीडियो में खनौरी बॉर्डर पर किसानों और पुलिस के बीच झड़प की तस्वीरें हैं। इसी दौरान एक नौजवान की मौत हुई। इस वीडियो में जिस तरह के हालात दिख रहे हैं, वे चिन्ता पैदा करने वाले हैं। फायरिंग की आवाज़ आ रही है, आंसू गैस के गोलों के फटने की आवाज़ सुनाई दे रही है, लोग इधर-उधर उधर भाग रहे हैं, चारों तरफ धुंआ ही धुंआ दिख रहा है। ये वीडियो सही है या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हुई है। वीडियो देखकर ये पता नहीं लगाया जा सकता कि फायरिंग कौन कर रहा है क्योंकि पुलिस ने दावा किया है कि उसकी तरफ से गोली नहीं चलाई गई। लेकिन किसान नेताओं ने पुलिस की बात को गलत बताया। सरवन सिंह पंढेर ने ऐरोप लगाया कि पुलिस ने गोली चलाई, गोली शुभकरण सिंह के सिर पर लगी और उसकी मौत हो गई। पंढेर ने आरोप लगाया कि शंभू बॉर्डर पर किसानों के बीच कुछ उपद्रवियों को शामिल कराया गया और ये आंदोलन को बदनाम करने की सरकारी कोशिश है। किसानों की अगुवाई कर रहे नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि सरकार ने आज उनको फिर से बातचीत का प्रस्ताव तो दिया  लेकिन सरकार की नीयत में खोट है, और वह किसानों को बातचीत में उलझाकर मामले को टालना चाहती है।

असल में जो तस्वीरें शंभू बॉर्डर से आईं, उन्हें देखकर लगता है कि किसान संगठन बातचीत की मंशा से नहीं, पुलिस से जंग लड़ने की नीयत से आए थे और तैयारी भी उसी हिसाब से की गई थी। किसान नेताओं ने तीन दिन पहले सीज़फायर का एलान किया था और बुधवार को समझ में आया कि इन तीन दिनों में सरकार के साथ बातचीत भी हुई लेकिन इसके साथ साथ प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के साथ टकराने की तैयारी भी कर ली। बड़ी-बड़ी पोकलेन मशीनें बॉर्डर पर पहुंच गईं, ये मशीनें सौ-सौ किलोमीटर दूर से लाई गईं हैं। शंभू बॉर्डर पर करीब 14 हज़ार प्रदर्शनकारी पहुंच चुके हैं। इनके पास 1200 से ज़्यादा ट्रैक्टर हैं, पोकलेन मशीनें हैं, जिसे मॉडिफाई किया गया है, मशीन में बख्तरबंद प्लेट्स लगाई गई थीं, इसके ड्राइवर को सुरक्षित रखने के लिए चारों तरफ से प्लेटिंग की गई है। पोकलेन मशीन के ड्राइवर के केबिन को बुलेटप्रूफ बना दिया गया है। मशीन के टायर्स को शेलिंग से बचाने की व्यवस्था भी की गई है। पुलिस की बैरीकेडिंग तोड़ने के लिए JCB मशीनें भी मंगा ली गईं। इन मशीनों को लोहे की मोटी-मोटी प्लेट्स लगाकर ज्यादा मजबूत बनाया गया है ताकि जब बैरीकेडिंग तोड़ने की नौबत आए, तो मशीनों को कोई नुकसान न पहुंचे। JCB मशीनों के ड्राइवर की सीट के चारों तरफ मोटी-मोटी मेटल प्लेट्स लगा दी गई हैं। मशीन के पहियों को सेफ बनाने के लिए भी प्लेट्स लगाई गई हैं।

पंजाब के किसानों के आंदोलन की स्थिति बिलकुल साफ है- सरकार बातचीत से रास्ता निकालना चाहती है, किसान नेता अब बात करने के लिए तैयार नहीं हैं। पुलिस किसी भी तरह से ताकत का इस्तेमाल नहीं करना चाहती, पर प्रदर्शनकारी पुलिस को बार बार ताकत का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। पुलिस पर हमला किया गया, वे जिस तरह से पोकलैन और जेसीबी लाए हैं, वो प्रोटेस्ट की नहीं, पुलिस को मात देने  की तैयारी दिखाता है। ये लोग चाहते हैं कि पुलिस उत्तेजित  हो, एक्शन लेने पर मजबूर हो और बात बिगड़ जाएं, ताकि वे सहानुभूति बटोर सकें। प्रोटेस्टर्स ने तय कर रखा है कि वे हरियाणा के बॉर्डर पर हालात नॉर्मल नहीं होने देंगे और सरकार के सामने ये स्टैंड रखा है कि बातचीत के लिए हालात नॉर्मल नहीं हैं। प्रदर्शनकारी किसान जानते हैं कि सरकार मजबूर है, वह न तो फोर्स का इस्तेमाल कर सकती है, न किसानों की खुलकर आलोचना कर सकती है। चुनाव सामने है, सरकार में बैठे लोग किसी तरह की जोखिम नहीं उठाना चाहते। जो लोग किसान नेताओं को गाइड कर रहे हैं, उनमें मोदी विरोधी मोर्चे के नेता भी है,  वाम झुकाव वाले लोग भी हैं और इस सारी स्थिति का फायदा उठाने वाले यूट्यूबर भी हैं। सबको मोदी सरकार को परेशान करने का अच्छा मौका मिला है, वो उसे हाथ से नहीं देना चाहते।

जब-जब सरकार किसानों के साथ कोई पुल कायम करती है, तो परदे के पीछे बैठे ये लोग उस पुल को तोड़ देते हैं। बुधवार को जब सरकार ने बात करने के लिए कहा, तो यही लोग चिल्लाने लगे कि सरकार डर गई, झुक गई, अब और प्रेशर बनाओ। जब सरकार की तरफ से बातचीत का ऑफर नहीं आता, तो यही लोग कहते हैं कि ये सरकार बात तक करने के लिए तैयार नहीं हैं, दिल्ली कूच करो, बात करने का प्रेशर बनाओ। इसी वजह से इस बात की संभावनाएं कम हैं कि इस मसले का समाधान जल्दी निकलेगा। एक बात जरूर है कि पिछली बार किसान आंदोलन को जिस तरह से जनता की सहानुभूति मिली थी, वैसी सहानुभूति इस बार नहीं है। आम लोग इस बात का समर्थन तो करते हैं कि किसानों को अपनी बात कहने का, विरोध करने का अधिकार है लेकिन पोकलेन चलाने का, जेसीबी से बैरिकेडिंग गिराने का, ट्रैक्टर लाकर रास्ता बंद करने का कोई समर्थन नहीं करता। जहां बच्चों की परीक्षा हैं, वो परेशान हैं। इन इलाकों में जो दुकानदार हैं उनका कारोबार ठप है। दिल्ली एनसीआर के दफ्तरों में काम करने वालों को कई-कई घंटे जाम में फंसना पड़ता है। इन सारी बातों का भी असर लोगों के मन पर होता है। लेकिन जो भी हो, किसानों की समस्याएं तो हैं और समाधान बातचीत से ही निकलेगा, मेज पर बैठकर निकलेगा। दोनों पक्षों को इसी दिशा में काम करना चाहिए। आज तक किसी भी समस्या का हल टकराव से नहीं निकला। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 21 फरवरी, 2024 का पूरा एपिसोड

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