Friday, March 29, 2024
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श्रीलंका में अब ‘एक देश, एक कानून’? राष्ट्रपति ने विवादित बौद्ध भिक्षु को दी टास्क फोर्स की कमान

मंगलवार को जारी राजपत्र के अनुसार इस कार्यबल को 'एक देश, एक कानून' की अवधारणा के क्रियान्वयन का मसौदा तैयार करने का काम सौंपा गया है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: October 27, 2021 18:45 IST
Galagodaaththe Gnanasara, Bodu Bala Sena, anti Muslim Buddhist monk Sri Lanka- India TV Hindi
Image Source : FILE गोटाबाया राजपक्षे 2019 में बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के जबरदस्त सहयोग से श्रीलंका के राष्ट्रपति चुने गए थे।

कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने ‘एक देश, एक कानून’ की अवधारणा की स्थापना के लिए मुसलमान विरोधी विचार रखने वाले एक कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु के नेतृत्व में 13 सदस्यीय टास्क फोर्स नियुक्त किया है। राजपक्षे जब 2019 में बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के जबरदस्त सहयोग से देश के राष्ट्रपति चुने गए थे, उस समय ‘एक देश, एक कानून’ उनका चुनावी नारा था। राष्ट्रपति राजपक्षे ने 'एक देश, एक कानून' अवधारणा की स्थापना के लिए एक विशेष राजपत्र के जरिए टास्क फोर्स को नियुक्त किया।

मुस्लिम विरोधी दंगों में आरोपी थे बौद्ध भिक्षु ज्ञानसार

इस टास्क फोर्स का प्रमुख कट्टर बौद्ध भिक्षु गलगोडा अठथे ज्ञानसार को बनाया गया है, जो देश में मुस्लिम विरोधी घृणा का प्रतीक बन चुके हैं। ज्ञानसार की बोडु बाला सेना (BBS) या बौद्ध शक्ति बल को 2013 में मुस्लिम विरोधी दंगों में आरोपी बनाया गया था। 4 मुस्लिम विद्वान भी इस कार्य बल के सदस्य हैं, लेकिन इसमें अल्पसंख्यक तमिलों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। मंगलवार को जारी राजपत्र के अनुसार इस कार्यबल को 'एक देश, एक कानून' की अवधारणा के क्रियान्वयन का मसौदा तैयार करने का काम सौंपा गया है। यह कार्य बल राष्ट्रपति राजपक्षे को मासिक प्रगति रिपोर्ट सौंपेगा और फिर 28 फरवरी, 2022 तक अंतिम रिपोर्ट पेश करेगा।

शरिया कानून लागू करने की कोशिशों का हुआ था विरोध
‘एक देश, एक कानून' की अवधारणा को सत्तारूढ़ श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (SLPP) ने बढ़ावा दिया था, ताकि वह बढ़ते इस्लामी चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का समर्थन हासिल कर सके। देश में शरिया कानून लागू करने के प्रयास का राष्ट्रवादी समूहों ने विरोध करते हुए कहा था कि यह मुस्लिम चरमपंथ को बढ़ावा देता है। इस अवधारणा को 2019 ईस्टर आत्मघाती हमले के बाद और बल मिला था। इस हमले में 11 भारतीयों सहित 270 से ज्यादा लोग मारे गए थे। इस हमले के लिए चरमपंथी इस्लामी समूह ‘नेशनल तौहीद जमात’ को जिम्मेदार ठहराया गया था।

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