Thursday, May 09, 2024
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आनंद मोहन की रिहाई पर क्या बोले IAS कृष्णैया के साथ काम कर चुके पूर्व DGP अभयानंद

आज या कल में आनंद मोहन की रिहाई होने की संभावना है। लेकिन बिहार में आनंद मोहन की रिहाई को लेकर भूचाल का मचा हुआ है।

Reported By : Nitish Chandra Edited By : Shailendra Tiwari Published on: April 26, 2023 17:20 IST
former DGP Abhayanand- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV IAS कृष्णैया के साथ काम कर चुके हैं पूर्व DGP अभयानंद

पटना: बिहार में आनंद मोहन की रिहाई का मामला काफी तूल पकड़ रहा है। बता दें कि गोपालगंज जिले के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या मामले में बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह बंद थे। लेकिन 10 अप्रैल को नीतीश सरकार ने बिहार राज्य कारा हस्तक 2012 के नियम- 481(i) (क) में संशोधन किया था। इसके बाद आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ हो गया था। बता दें कि 14 साल की जेल की सजा पूरी होने के बावजूद आनंद मोहन को सरकारी सेवक की हत्या का दोषी होने के कारण रिहाई नहीं मिल पा रही थी। राज्य सरकार ने इसी माह 10 अप्रैल को जेल मैनुअल के परिहार नियमों में बदलाव को कैबिनेट की स्वीकृति दी थी। इसी मामले को लेकर इंडिया टीवी ने पूर्व डीजीपी और आईएएस जी. कृष्णैया के साथ काम कर चुके अभ्यानंद से बातचीत की। आइए जानते ही आनंद मोहन की रिहाई मामले पर क्या कुछ कहा...

रिपोर्टर- आनंद मोहन की रिहाई के लिए सरकार के फैसले पर आपकी क्या राय है?

पूर्व डीजीपी अभ्यानंद- मेरी अपनी राय तो ये है कि एक प्रकिया होनी चाहिए थी, जिसमें डिबेट हो जाता, चूँकि यह पॉलिसी मैटर है इसलिए ओपन डिबेट करके समाज के हर वर्ग से बात करना चाहिए था, इस बारे जनता का पक्ष जानकर करना चाहिए था क्योंकि अभी जिस तरह बहस हो रही है, उससे पूरी मीडिया इंफेक्टेड हो गया, यह डिबेट पहले होना चाहिए था।

रिपोर्टर- क्या ये सरकार का एक राजनीतिक फैसला है?

पूर्व डीजीपी- मेरा तो अपना मानना है कि सरकार में कोई छींक भी आती है तो भी ये पॉलिटिकल ही होता है, सरकार का डिसीजन गैर-राजनीतिक कैसे हो सकता है, सरकार के जितने भी निर्णय होते हैं सब पॉलिटिक्स से प्रेरित होते हैं क्योंकि सरकार का जन्म ही पॉलिटिक्स से होता है।

रिपोर्टर- क्या इस फैसले का असर ये होगा कि अधिकारी डर के साये में काम करेंगे?

पूर्व डीजीपी अभ्यानंद- थोड़ा मानसिक रूप से तनाव में तो जरूर आ जाएंगे, ऐसा क्यों हुआ, इसलिए अगर वेरियस एसोसिएशन ऑफ द गवर्नमेंट, जैसे आईएएस, डिप्टी कलेक्टर, दरोगा, सीओ, BDO सभी का एसोसिएशन है, अगर उनको भी वक्त देकर बुलाकर औपचारिक रूप से बात की जाती तो ये एक समेकित सुंदर निर्णय हो सकता था। अगर इसकी प्रक्रिया दूसरे तरीके से होती, जैसे- सभी को बुलाकर बात की जाती, जो भी स्टेकहोल्डर है समाज के, बहुत तरह के स्टेकहोल्डर है उनके रिप्रेजेंटेटिव्स को बुलाकर बात की जाती तो प्रस्ताव रख दिया जाता कि आप बताइए आपकी क्या राय है, कम से कम राय तो आती, रिकंसीडर करने लायक होता तो रिकंसीडर हो जाता, अगर नहीं लायक होता और मोडिफिकेशन के लायक होता तो मोडिफिकेशन हो जाता, कुछ क्लाउसेस लग जाते, आज जो समस्या मीडिया में उठ रही है वो अब आर्डर निकलने के बाद हो रहा है, आर्डर निकलने के पहले होता तो इतनी परेशानी नहीं होती। 

रिपोर्टर- सरकार की तरफ से ये कहा जा रहा है कि पहले आम और ख़ास के लिए अलग-अलग नियम थे, उनको अब एक कर आम और ख़ास का फर्क मिटा दिया गया है?

पूर्व डीजीपी- 6 बड़ा होता है 4 से, 2 तरीके हैं बराबर करने के, 6 में 2 घटा दीजिए या 4 में 2 जोड़ दीजिए, आम को खास और खास को आम बनाना है तो दोनों तरीके से किया जा  सकता है, जितनी हत्या हैं सभी पर पूरी बात लागू हो जाती।

रिपोर्टर- आपको क्या लगता है सरकार ने फैसला क्यों किया?

पूर्व डीजीपी- जिन्होंने किया वह जानेंगे, दरअसल डिबेट हुआ नहीं, order निकलने के पहले डिबेट हो जाना था , नॉर्मली ये सभी चीज एक कमीशन के जरिए हो जाना चाहिए था, अगर एक कमीशन बिठा देते और डिबेट करा लेते, 6 महीने का टाइम देते, बात समझ में आ जाती। 

रिपोर्टर- आपने बेतिया में उनके साथ काम किया है, जब आप वहाँ के SP थे उस समय कृष्णैया वहाँ के डीएम थे, कैसे अधिकारी थे कृष्णैया?

पूर्व डीजीपी- कृष्णैया एक वंडरफुल पर्सन थे, वो बेहद सुंदर व्यक्तित्व वाले इंसान थे। उनमें कोई मेंटल बायस नहीं था, सिर्फ गरीब के फिलिंग थी, फिर वो किसी भी जाति का गरीब हो, उनके लिए फीलिंग थी। उनको कभी नहीं लगा कि हम दलित हैं, यह फीलिंग कभी नहीं आई कि हम दलित हैं इसलिए ऐसा करेंगे या नहीं करेंगे। बेतिया का एक आदमी नहीं कह सकता कि मेरे घर पर जाकर खाना खाए होंगे और यह भी कोई नहीं कह सकेगा कि उनके घर कोई गया हो तो वहाँ  चाय नहीं मिला।

रिपोर्टर- उनकी पत्नी को कानूनी विकल्प का सहारा लेना चाहिए ?

पूर्व डीजीपी- राइट तो उनका है ही, "She is victim, She is a stakeholder. She has every right" मैंने उनका इंटरव्यू देखा है, उनकी फीलिंग को महसूस किया है। हम लोग अगल-बगल रहते थे, जब वो हैदराबाद आते थे नौकरी के दौरान हमेशा मिलते थे।

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