बॉलीवुड के फेमस खलनायकों की बात की जाए तो ‘गब्बर सिंह’ का नाम सबसे पहले जुबान पर आता है। 1975 में आई फिल्म 'शोले' के 50 साल बाद भी अमजद खान द्वारा निभाया गया गब्बर का किरदार हिंदी सिनेमा के सबसे यादगार और पसंदीदा विलेन पात्रों में से एक बना हुआ है। उनका मशहूर संवाद 'कितने आदमी थे?' आज भी उतना ही असरदार है जितना उस दौर में था। इस किरदार ने न सिर्फ अमजद खान को एक अमर अभिनेता बना दिया, बल्कि खलनायकी को एक नई परिभाषा भी दी। 'शोले' के बाद अमजद खान ने 'सत्ते पे सत्ता', 'शतरंज के खिलाड़ी', 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी फिल्मों में विविध भूमिकाएं निभाईं और खुद को एक बहुमुखी कलाकार के रूप में स्थापित किया। 1992 में उनके निधन को अब लगभग तीन दशक बीत चुके हैं। उनके परिवार में पत्नी शेहला खान और तीन बच्चे हैं। इस लेख में हम अमजद और शेहला की अनूठी प्रेम कहानी और उनके जीवन की झलक पेश करते हैं।
जब अमजद को हुआ शेहला से प्यार
अमजद खान और शेहला एक ही मोहल्ले में मुंबई के बांद्रा इलाके में पड़ोसी थे। जब अमजद को पहली बार शेहला से प्यार हुआ, उस समय वह कॉलेज में बी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे और शेहला मात्र 14 साल की थीं। फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में शेहला ने उस समय को याद करते हुए बताया था, 'हम एक ही कॉलोनी में रहते थे। मैं 14 साल की थी और स्कूल में पढ़ती थी। अमजद बी.ए. कर रहे थे। मैं उन्हें 'जयंत अंकल' के बेटे के रूप में जानती थी। हम कभी-कभी बैडमिंटन खेलते थे। एक बार उन्होंने मुझसे कहा, ‘मुझे भाई मत कहो!'
प्यार का इजहार और टीनएज रोमांस
एक दिन जब शेहला स्कूल से घर लौट रही थीं, अमजद उनके पास आए और कहा, 'क्या तुम्हें शेहला का मतलब पता है? इसका मतलब है काली आंखों वाली। जल्दी बड़ी हो जाओ क्योंकि मैं तुमसे शादी करने वाला हूं।' इसके कुछ ही दिनों बाद अमजद ने शेहला के घर शादी का प्रस्ताव भेजा, लेकिन शेहला के पिता, मशहूर लेखक-गीतकार अख्तर-उल-ईमान ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि लड़की अभी बहुत छोटी है। अमजद इस इनकार से काफी आहत हुए। नाराज होकर उन्होंने शेहला से मजाक में कहा, 'तुमने मेरा प्रस्ताव ठुकरा दिया? अगर यह मेरा गांव होता तो हम तुम्हारे परिवार की तीन पीढ़ियों को मिटा देते!'
दूरी, खतों के जरिए प्यार और फिर वापसी
प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद शेहला के पिता ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ भेज दिया, ताकि वह अमजद से दूर रहें। लेकिन दूरी ने इस प्रेम कहानी को रोका नहीं। दोनों के बीच इकलौता संपर्क था प्रेम-पत्र। शेहला ने बताया, 'हर दिन मुझे अमजद का एक पत्र मिलता था। मैं भी उन्हें जवाब में चिट्ठियां भेजती थी।' कुछ समय बाद शेहला की तबीयत खराब हो गई और उन्हें वापस मुंबई बुला लिया गया। वहीं से उनकी पढ़ाई भी फिर से शुरू हुई। इस दौरान अमजद ने उनकी पढ़ाई में काफी मदद की, खासकर फारसी भाषा में जिसमें उन्होंने मास्टर्स किया था और जो शेहला की सेकंड लैंग्वेज भी थी।
ट्यूशन से मोहब्बत तक
पढ़ाई के दौरान उनका रिश्ता और गहरा होता चला गया। शेहला ने याद किया कि कैसे अमजद उन्हें उनकी पसंदीदा चीजों से लुभाया करते थे, 'मैं वेफर्स की दीवानी थी। वो मुझे चिप्स खिलाकर लुभाते थे। मैंने अपनी पहली एडल्ट फिल्म, 'मोमेंट टू मोमेंट' अमजद के साथ देखी। उनसे मिलकर ही मैं बड़ी हुई।' कई सालों तक एक-दूसरे को जानने और समझने के बाद, आखिरकार अमजद के माता-पिता खुद शादी का प्रस्ताव लेकर शेहला के घर पहुंचे। इस बार शेहला के माता-पिता ने खुशी-खुशी यह रिश्ता स्वीकार कर लिया। 1972 में दोनों ने शादी की और एक साल बाद 1973 में उनके बेटे शादाब का जन्म हुआ। शादाब की पैदाइश अमजद के लिए बेहद खास रही, क्योंकि उसी दिन उन्हें 'शोले' में गब्बर सिंह का किरदार निभाने का प्रस्ताव मिला, एक रोल जो उन्हें हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमर बना गया।
एक मजबूत रिश्ता, एक अधूरी कहानी
अमजद और शेहला की शादीशुदा जिंदगी लगभग 20 साल तक चली। 1992 में अमजद खान का निधन मायोकार्डियल इन्फार्क्शन (दिल का दौरा) से हो गया। शेहला ने उस समय को याद करते हुए कहा कि अमजद का आत्मविश्वास ही था जिसने उन्हें मुश्किल वक्त में अपने पैरों पर खड़े रहने की ताकत दी। उनकी प्रेम कहानी में मासूमियत, संघर्ष, दूरियां, फिर मिलन और अंत में एक असमय विदाई, हर वो चीज मौजूद हैं जो किसी क्लासिक बॉलीवुड रोमांस को यादगार बनाते हैं। अमजद खान सिर्फ एक महान अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक सच्चे प्रेमी, समर्पित पति और परिवार के प्रति जिम्मेदार इंसान भी थे। उनकी और शेहला की कहानी आज भी दिलों को छू जाती है।