अमेरिका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार पारंपरिक H-1B वीजा लॉटरी को वेज-बेस्ड सेलेक्शन सिस्टम के साथ बदलने पर विचार कर रही है। ऐसे में भारतीय समेत तमाम इंटरनेशनल स्टूडेंट्स और हाल ही में ग्रेजुएट हुए छात्रों को अपने करियर की संभावनाओं को लेकर बढ़ती अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है। इस बदलाव का उद्देश्य ज्यादा सैलरी वाले वीजा आवेदकों को प्राथमिकता देना है। इससे नए ग्रेजुएट्स और एंट्री लेवल के कर्मचारी, जो अमेरिका में अपना करियर शुरू करना चाहते हैं, उन्हें कई भीषण समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
क्या है वेज-बेस्ड सेलेक्शन सिस्टम
अभी H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम के तहत सभी योग्य आवेदकों को उनके नियोक्ता (Employer) द्वारा प्रस्तावित वेतन की परवाह किए बिना सेलेक्शन के समान मौके मिलते हैं। अमेरिका में हर साल, रजिस्टर्ज ऐप्लिकेंट्स के बीच एक तय संख्या में H-1B वीजा जारी किए जाते हैं, जिससे नए ग्रेजुएट्स और अनुभवी पेशेवरों, दोनों के लिए बराबर मौके मिलते हैं।
वहीं दूसरी ओर, प्रस्तावित वेज-बेस्ड सिस्टम के तहत जॉब के आवेदनों में सैलरी के आधार पर ऐप्लिकेंट्स को प्राथमिकता दी जाएगी। इसका सीधा मतलब ये हुआ कि इससे अनुभवी लोगों को ज्यादा मौके मिलेंगे, क्योंकि वे लंबे समय से काम कर रहे हैं और अनुभव के आधार पर तुलनात्मक रूप से ज्यादा सैलरी प्राप्त कर रहे हैं। जबकि एंट्री लेवल के कर्मचारियों को फ्रेशर या कम अनुभव होने की स्थिति में एंट्री-लेवल सैलरी ही मिलती है।
इस नए बदलाव के साथ अमेरिका अपने श्रमिकों की सुरक्षा करने के साथ-साथ ये भी सुनिश्चित करना चाहता है कि वीजा सिर्फ ऐसे लोगों को दिए जाएं, जो अमेरिका और अमेरिका की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान दे सकें। लिहाजा, वीजा अलॉटमेंट में अनुभवी और मोटी सैलरी वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी।
एंट्री-लेवल के कर्मचारियों पर कैसे पड़ेगा बुरा असर
वेज-बेस्ड मॉडल टॉप टैलेंट को आकर्षित करने के लिए शानदार तरीका हो सकता है, लेकिन इससे एंट्री-लेवल के इंटरनेशनल स्टूडेंट्स और वर्कर्स के लिए कई तरह की चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। दरअसल, ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद अपने करियर की शुरुआत करने वाले एंट्री-लेवल के कर्मचारी फ्रेशर होने या कम अनुभव होने की वजह से मामूली सैलरी पर ही काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। नए सिस्टम के तहत, ऐसे ऐप्लिकेंट्स को उनकी योग्यता या क्षमता की परवाह किए बिना सेलेक्शन लाइन में सबसे नीचे धकेल दिया जाएगा या सीधे बाहर ही कर दिया जाएगा। ऐसे में, उनके लिए अमेरिका में करियर बनाने का सपना अधूरा रह सकता है या फिर इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।
अमेरिकी पॉलिसी में इस बदलाव से कुछ खास विषयों और Non-STEM सेक्टरों के स्टूडेंट्स को और ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, इन स्टूडेंट्स को मिलने वाला शुरुआती सैलरी पैकेज कम होता है। यहां तक कि STEM (Science, Technology, Engineering and Mathematics) ग्रेजुएट, जिनके पास वर्क वीजा के लिए बेहतर संभावनाएं होती हैं, उनके लिए भी मौके काफी हद तक सीमित हो सकते हैं, अगर वे अपने करियर की शुरुआत ऐसी भूमिकाओं से करते हैं जहां सैलरी लिमिट को पूरा नहीं करती हैं।
नियोक्ताओं के लिए क्या होंगी चुनौतियां
स्टार्टअप्स, छोटी कंपनियों और नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन्स, जिन्होंने हाल ही में बिजनेस शुरू किया है या अभी शुरुआत लेवल पर काम कर रहे हैं, उनके लिए मोटी सैलरी ऑफर करना हमेशा संभव नहीं हो सकता या काफी मुश्किल हो सकता है। मोटी सैलरी की मांग और सीमित लचीलेपन की वजह से कंपनियों का इंटरनेशनल ग्रेजुएट्स के प्रति मोहभंग हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो अमेरिका में रहने और काम करने की इच्छा रखने वाले कई छात्रों के लिए मौके कम हो सकते हैं।
इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए दूसरे रास्ते क्या हैं
जिस तरह से H-1B वीजा के लिए कॉम्पिटीशन बढ़ रहा है, उसे देखते हुए छात्रों को दूसरे रास्ते ढूंढने पड़ेंगे। छात्रों के लिए उपलब्ध विकल्पों में O-1 वीजा शामिल है, जो अपने फील्ड में असाधारण क्षमता वाले कर्मचारियों के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा, नियोक्ता द्वारा प्रायोजित ग्रीन कार्ड भी एक विकल्प है। हालांकि, इन दोनों विकल्पों के लिए पात्रताएं काफी सख्त हैं और इसमें लंबा समय भी लगता है।