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कच्छ में खोजने गए थे खजाना, मिल गया हड़प्पा सभ्यता का पुराना शहर

गुजरात के कच्छ जिले में कुछ गांव वाले सोने की तलाश में खुदाई करने हए थे। लेकिन खुदाई के दौरान उन्हें हड़प्पन सभ्यता के बेशकीमती अवशेष मिल गए। ये देखकर पुरातत्वविद भी आश्चर्यचकित रह गए।

Edited By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published : Feb 24, 2024 8:28 IST, Updated : Feb 24, 2024 8:28 IST
kutch- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV सोने की खोज में गाव वालों ने की थी खुदाई

गुजरात का कच्छ जिला जैव विविधताओं और इतिहास की विरासतों से भरा हुआ है। अब तक यहां हजारों साल पुरानी सभ्यताओं के अवशेष कई स्थानों से मिले हैं, लेकिन हाल ही में हजारों साल पुरानी हड़प्पा सभ्यता के मिले अवशेषों ने सभी को हैरान कर दिया है। दरअसल, हडप्पन युग के धोलावीरा विश्व धरोहर स्थल से 50 किलोमीटर दूर लोद्राणी गांव में सोना छिपा है। इसी उम्मीद से करीब पांच साल पहले गांव के कुछ लोगों ने मिलकर सोना खोजने के लिए खुदाई शुरू कर दी थी, लेकिन उन्हें सोने की जगह हड़प्पाकालीन युग सभ्यता की एक किलाबंद बस्ती मिली। 

जमीन में दबी थी हड़प्पा कालीन हेरिटेज साईट

पास के एक किसान नथु भाई चावड़ा ने धोलवीरा हड़प्पन साइट के पुराने गाइड और अपने रिश्तेदार जेमल को इस बारे में जानकारी दी। जब उन्होंने ये देखा तो उन्हें भी बहुत हैरानी हुई क्योंकि वो एक दम धोलवीरा की हड़प्पा सभ्यता की तरह दिखाई देने वाले अवशेष थे। जेमलभाई ने तुरंत इस बारे में  ASI के पूर्व एडीजी और पुरातत्वविद अजय यादव, जो फिलहाल ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के रिसर्च स्कॉलर हैं, उनसे संपर्क किया। पुरातत्वविद अजय यादव और उनके प्रोफेसर डेमियन रॉबिन्सन ऑक्सफोर्ड के स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी, दोनों गुजरात के कच्छ पहुंचे और उन्होंने इस पुरातत्व साइट का जायजा लिया।

स्थानीय किसान नथु भाई चावड़ा ने बताया कि यह पुरातत्व तो सालों से यहीं हैं, लेकिन किसी की नजर नहीं पड़ी। काफी सारे लोग सोने की तलाश में यहां खुदाई करते थे, लेकिन जब एक महीने पहले उन्होंने साइट का दौरा किया तो उन्हें लगा कि ये कोई दबा हुआ पुराना शहर लगता है। उसके बाद उन्होंने ये जानकारी अपने रिश्तेदार और जानकार जेमलभाई को बताया। इसके बाद पता चला कि ये तो एक हेरिटेज साईट है, जो हड़प्पा कालीन सभ्यता के समय की है।

यहां 4,500 साल पहले था पूरा शहर

पुरातत्वविद अजय यादव और प्रोफेसर डेमियन रॉबिन्सन ने बताया कि नई जगह की पुरातत्व साइट की बनावट धोलावीरा से काफी मिलती-जुलती है। इस जगह पर और थोड़े पत्थरों को हटाकर देखा तो वहां बहुत सारे अवशेष मिले जो हड़प्पन युग के दौर के थे। अजय यादव ने कहा कि पहले इस जगह को बड़े-बड़े पत्थरों का ढेर समझकर गांव वालो ने नजरअंदाज कर दिया था। गांववालों को लगता था कि यहां मध्यकालीन किला और दबा हुआ खजाना है, लेकिन जब हमने इसकी जांच की तो हमें हड़प्पाकालीन बस्ती मिली, जहां लगभग 4,500 साल पहले एक पूरी सभ्यता का शहर था। इस जगह को हमने जनवरी में खोज निकाला है और इसका नाम "मोरोधारो" (गुजराती शब्द जिसका मतलब कम नमकीन और पीने योग्य पानी है) रखा गया है।

जमीन में कैसे दफन हुआ ये शहर? 

पुरातत्वविद अजय यादव के अनुसार, खुदाई से ढेर सारे हड़प्पाकालीन बर्तन मिले हैं, जो धोलावीरा में पाए जाने वाले अवशेषों से मिलते-जुलते हैं। ये पुरातत्व साइट हड़प्पाकाल के (2,600-1,900 ईसा पूर्व) देर के  (1,900-1,300 ईसा पूर्व) चरण की लगती है। दोनों पुरातत्वविदों का कहना है कि विस्तृत जांच और खुदाई से और भी अहम जानकारियां मिलेंगी, लेकिन इस हेरिटेज साईट को लेकर हमारी सबसे महत्वपूर्ण खोज यह है कि 'मोरोधारो' और धोलावीरा, दोनों ही समुद्र पर निर्भर हैं और चूंकि ये साइट रेगिस्तान (मरुस्थल) के बहुत करीब है, इसलिए यह मान लेना सही है कि धोलावीरा की तरह ही यह शहर भी हजारों सालों पहले जमीन में दफन हो गया, जो बाद में मरुस्थल बन गया।

पुरातत्वविदों ने की उत्खनन की मांग

पुरातत्वविदों की मानें तो यह बस्ती हड़प्पा युग की है। फिलहाल पुरातत्वविदों ने इस जगह पर विस्तार से रिसर्च और उत्खनन करने की मांग की है और उत्खनन से हड़प्पा युग के बारे में कई सारी अहम जानकारियां और भी मिलने की आस हैं। इस बारे में अगर स्थानीय पुरातत्व को और धोलवीरा साइट के गाइड जैमल भाई और नथु भाई जानकारी नहीं देते तो ये जानकारी दुनिया के सामने नहीं आती। स्थानीय गांव के लोग इन अवशेषों को देखकर हैरान हैं, क्योंकि उन्हें ये थोड़ा अजीब सा लगा कि उनके गांव के बीहड़ जैसे इलाके में ऐसी बेसकीमती 4500 साल पुरानी पुरातत्व साइट है।

पुरातत्वविद ने 1967 में जताई थी आशंका

बता दें कि धोलावीरा के अवशेष जब मिले तब 1967-68 में पुरातत्वविद जेपी जोशी ने धोलावीरा के 80 किलोमीटर के दायरे में एक सर्वेक्षण किया था, उन्होंने आसपास में एक हड़प्पा स्थल होने की आशंका जताई थी, लेकिन तब कोई ठोस सबूत नहीं मिला। इसके बाद 1989 और 2005 के बीच धोलावीरा उत्खनन के दौरान, पुरातत्व विशेषज्ञों ने भी आसपास के इलाके का दौरा किया, लेकिन तब भी कुछ हाथ नहीं लगा। लेकिन अब जब गांव वालों ने खजाने के लालच में खोज शुरू की तो एक नगर मिला है।

(रिपोर्ट- अली मोहमद चाकी)

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