Sunday, April 28, 2024
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48 और ट्रेनों पर सुपरफास्ट शुल्क लगाकर सुधरेगा रेलवे?

कैग ने भी यह पाया कि यात्री सुपरफास्ट का किराया चुकाते हैं, लेकिन ट्रेन उस स्पीड से नहीं चलतीं, जिसके लिए शुल्क वसूला गया है। इसमें यह भी कहा गया कि जब ट्रेन सुपरफास्ट की स्पीड से नहीं चल रही हो, तो यात्रियों को उनका किराया लौटा दिया जाए। मगर इसे लेक

IANS Reported by: IANS
Published on: November 07, 2017 15:03 IST
 Indian_Railways- India TV Hindi
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नई दिल्ली: नकदी की भूखी भारतीय रेल ने 48 और मेल व एक्सप्रेस ट्रेनों को सुपरफास्ट श्रेणी में 'अपग्रेड' कर किराया बढ़ा दिया है, लेकिन इन ट्रेनों की स्पीड में महज 5 किलोमीटर की बढ़ोतरी कर 50 किलोमीटर प्रतिघंटा कर दी गई है। पहली नवंबर को जारी रेलवे के नए टाइम टेबल से यह जानकारी मिली। हालांकि यह 'उन्नयन' कोई गारंटी नहीं है कि ये ट्रेनें समय पर ही चलेंगी। इसके अलावा नया शुल्क ठंड का मौसम शुरू होने से पहले बढ़ाया गया है। जाहिर है, उत्तर की तरफ जानेवाली सारी ट्रेनें ठंड और कुहासे के कारण कई-कई घंटे देर से चलेंगी।

वर्तमान में कई ट्रेनें, जिसमें राजधानी, दुरंतो और शताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनें भी शामिल हैं, जो नियमित रूप से देरी से चल रही हैं। इन ट्रेनों को सुपरफास्ट का दर्जा तो दे दिया गया है, लेकिन यात्रियों के लिए इनमें कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं जोड़ी गई है। अब यात्रियों को स्लीपर क्लास के 30 रुपये, सेकेंड और थर्ड एसी के लिए 45 रुपये व फर्स्ट एसी के लिए 75 रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे।

रेलवे को इस 'अतिरिक्त शुल्क' से 70 करोड़ रुपये की कमाई की उम्मीद है। रेलवे ने किराये में बढ़ोतरी का दूसरा तरीका अपनाया है। 48 नई ट्रेनों को सुपरफास्ट बनाने के बाद अब रेलवे के पास सुपरफास्ट ट्रेनों की कुल संख्या 1,072 हो गई है। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने इसी साल जुलाई में जारी अपनी पिछली रिपोर्ट में सुपरफास्ट शुल्क को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणियां की थीं।

कैग ने भी यह पाया कि यात्री सुपरफास्ट का किराया चुकाते हैं, लेकिन ट्रेन उस स्पीड से नहीं चलतीं, जिसके लिए शुल्क वसूला गया है। इसमें यह भी कहा गया कि जब ट्रेन सुपरफास्ट की स्पीड से नहीं चल रही हो, तो यात्रियों को उनका किराया लौटा दिया जाए। मगर इसे लेकर रेलवे बोर्ड ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, "ऑडिट में पाया गया कि वित्तवर्ष 2013-14 से 2015-16 के बीच उत्तर मध्य और दक्षिण मध्य रेलवे ने सुपरफास्ट शुल्क (11.17 करोड़ रुपये) वसूले, लेकिन 21 सुपरफास्ट ट्रेनें 55 किलोमीटर की औसत गति से चली ही नहीं।"

रेलवे के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक जुलाई, अगस्त और सितंबर के दौरान कुल 890 सुपरफास्ट ट्रेनें देरी से चलीं। जुलाई में 129 सुपरफास्ट ट्रेनें देरी से चलीं, तो अगस्त में 145 और सितंबर में 183 ट्रेनें देरी से चलीं। जिन ट्रेनों को अब सुपरफास्ट बनाया गया है, उनमें पुणे-अमरावती एसी एक्सप्रेस, पाटलीपुत्र-चंडीगढ़ एक्सप्रेस, विशाखापट्टनम-नांदेड़ एक्सप्रेस, दिल्ली-पठानकोट एक्सप्रेस, कानपुर-ऊधमपुर एक्सप्रेस, छपरा-मथुरा एक्सप्रेस, रॉक फोर्ट चेन्नई-तिरुचिलापल्ली एक्सप्रेस, बेंगलोर-शिवमोग्गा एक्सप्रेक्स, टाटा-विशाखापट्टनम एक्सप्रेस, दरभंगा-जालंधर एक्सप्रेस, मुंबई-मथुरा एक्सप्रेस और मुंबई-पटना एक्सप्रेस शामिल हैं।

सुरक्षा महानिदेशालय के पास उपलब्ध सूचना के मुताबिक, रेलवे ने लगभग सभी क्षेत्रों में रेलवे ट्रैक के नवीनीकरण और मरम्मत का कार्य शुरू किया है, इसलिए इन खंडों पर ट्रेनों को उच्च गति से नहीं चलाया जा सकता। दूसरी तरफ, रेलवे के ट्रैक पर ट्रेनों की भारी भीड़ है, ऐसे में अगर कोई एक ट्रेन चलने में देर होती है तो उसका असर कई ट्रेनों पर पड़ता है। रेलवे के मुताबिक, अगर कोई ट्रेन 15 मिनट तक की देरी से चलती है, तो उसे सही समय पर माना जाता है। इसके ऊपर 16 से 30 मिनट, 31 से 45 मिनट और 46 से 60 मिनट की देरी के मापदंड हैं। सबसे ऊपर एक घंटे या इससे अधिक की देरी है।

रेलवे ने अतिरिक्त कमाई के लिए स्लीपर कोच में सफर करने वालों की मुसीबत बढ़ा दी है। जनरल बोगी के टिकट पर अतिरिक्त शुल्क लेकर यात्रियों को बिना आरक्षण स्लीपर कोच में चढ़ने की छूट दे दी गई है, जिसका खामियाजा आरक्षित सीट पर सफर करने वाले भुगत रहे हैं।

खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली या इन दोनों राज्यों से होकर गुजरने वाली लंबी दूरी की ट्रेनों के स्लीपर कोचों में भीड़ का आलम यह होता है कि किसी को टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस होती है, तो अपनी इच्छा दबाकर रखनी पड़ती है, क्योंकि धक्के खाते हुए टॉयलेट तक पहुंचना आसान नहीं होता और अगर टॉयलेट तक पहुंच भी गए, तो उसमें सामान रखा या अखबार बिछाकर कई लोग बैठे मिल जाएंगे। स्लीपर कोचों के टॉयलेट में जब जाएं, तब पानी होगा ही, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

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