Vijay Diwas Special: पाकिस्तान के साथ हाल में हुए तनाव के बीच देश में फिर यह चर्चा शुरू हो गई है कि अगर कभी जंग हो जाए, तो उस वक्त आम नागरिकों की भूमिका क्या होनी चाहिए। जैसे लंका पर चढ़ाई के वक्त रामसेतु निर्माण में गिलहरी ने अपनी क्षमता के मुताबिक योगदान दिया था, वैसे ही देश का आम नागरिक, युद्ध के समय सेना की मदद कैसे कर सकता है? INDIA TV से खास बातचीत में BSF के पूर्व DIG नरेंद्र नाथ धर दुबे ने समझाया कि युद्धकाल में आम नागरिकों की क्या जिम्मेदारी होती है? ऐसे समय में वह अपने घर में रहकर ही कैसे सेना की मदद कर सकते हैं?
आम नागरिकों का आत्मबल और योगदान दोनों जरूरी
नरेंद्र नाथ धर दुबे ने कहा कि जिसने भी इस राष्ट्र के मिट्टी में जन्म लिया, यहां की सांसें ले रहा है, यहां का अन्न-जल ग्रहण कर रहा है, उसपर भारत का एहसान है। रही बात कंट्रीब्यूशन करने की, तो जिस तरह से आपने वो रामसेतु की चर्चा की, उसमें मैं ये भी जोड़ना चाहूंगा कि आत्मबल और योगदान दोनों बहुत इंपॉर्टेंट हैं। भगवान राम जब ये लड़ाई लड़ने गए थे, तो उनके सामने दुश्मन कौन था? लंका का राजा था जिसने सारे ग्रह और इंद्र तक को भी अपने कब्जे में कर लिया था। यानी उनका अपोनेंट बहुत ही माइटी था।
रामसेतु निर्माण है इसकी मिसाल
भगवान राम की सेना कौन थी? भालू-बंदर थे। जबकि रावण की सेना महारथियों से युक्त थी। उसके बाद समुद्र जैसा एक ऑब्स्टेकल था। यानी पूरा समुद्र पार करना था। इनके पास कोई इक्विपमेंट और टेक्नोलॉजी नहीं थी, लेकिन उन्होंने टैलेंट हंटिंग की। उन्होंने अपने भालू-बंदरों में से ही ऐसे आशीष प्राप्त युवा वानर खोजे, जिनके उस कंट्रीब्यूशन से समुद्र पर सेतु बना।
जंग के वक्त आम इंसान कैसे करे मदद?
तो इस देश में किसी भी किरदार में हमारा अगर नागरिक है, इवन सड़क पर चलने वाला आम आदमी है, उसका भी रोल है। कल को युद्ध होता है, तो आपको सिविल ऑर्डर चाहिए। आपको सोसाइटी का एक सिस्टम चाहिए। आपको कम्युनिकेशन चाहिए। आपकी ट्रेनें चलती हुई होनी चाहिए। आपके सड़क मार्ग खुले होने चाहिए। आपके नदी के रास्ते क्लियर होने चाहिए। आपके बाजार क्लियर होने चाहिए। आपके एजुकेशन सिस्टम चलने चाहिए। मेडिकल इंस्टिट्यूशंस चलने चाहिए। ब्लड बैंक चलने चाहिए। गाड़ियां चलनी चाहिए। ट्रांसपोर्ट चलना चाहिए। फूड सप्लाई की व्यवस्था होनी चाहिए। ऑक्सीजन चलना चाहिए। इस सब में कौन योगदान दे रहा है? इस सब में वे भारतीय जो वर्दी नहीं पहने हैं, यूनिफॉर्म नहीं पहने हैं। यह सब सेक्टर उनका है।
सिविल सोसाइटी के सपोर्ट के बिना जीत मुमकिन नहीं
तो इन सब सेक्टर्स में उन्हें अपने आपको उतार करके वो कंट्रीब्यूट कर सकते हैं और उनका एक बहुत बड़ा किरदार है। सिविल सोसाइटी के सपोर्ट के बगैर कोई युद्ध नहीं जीता जा सकता। यह उतना ही सच्चा है जितना यह सच्चा है कि सारे युद्ध उसी सिविल सोसाइटी के लिए ही लड़े जाते हैं। तो जिस सिविल सोसाइटी के लिए युद्ध लड़े जा रहे हैं, उस सिविल सोसाइटी के सपोर्ट के बगैर कोई युद्ध आप जीत नहीं सकते। यह इतिहास इस बात का गवाह है।