Vijay Diwas 2025: 1971 का भारत–पाकिस्तान युद्ध भारतीय सैन्य इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। इसी युद्ध का परिणाम ये हुआ कि पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया और बांग्लादेश का उदय हुआ। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर ऐतिहासिक एवं निर्णायक जीत हासिल की थी। इस जीत की स्मृतियां आज भी भारतीय सेना के पास विभिन्न वॉर ट्रॉफियों के रूप में सुरक्षित हैं, जो उस गौरवशाली क्षण की गवाही देती हैं।
जनरल नियाजी के हाथों में थी पाक सेना की कमान
इस युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना की कमान लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी के हाथों में थी। भारतीय सेना ने के पराक्रम के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए। 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाक जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया। इसके साथ ही लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाले, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है।
नियाजी की कार और रिवॉल्वर भारतीय सेना के पास
भारतीय सेना के सामने सरेंडर करते समय लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी की रिवॉल्वर और उनकी व्यक्तिगत कार भारतीय सेना के कब्जे में आईं। आज ये दोनों भारतीय सेना के पास एक महत्वपूर्ण वॉर ट्रॉफी के रूप में सुरक्षित हैं। ये केवल कोई वस्तु नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक पराजय और भारत की निर्णायक जीत का प्रतीक है जिसे भारतीय सेना के जवानों अपने पराक्रम से हासिल किया था।
साहस, संकल्प और अनुशासन का संदेश
हर वर्ष 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। इस दिन 1971 के युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है और देश की सैन्य क्षमता, साहस तथा रणनीतिक नेतृत्व को याद किया जाता है। जनरल नियाज़ी की रिवॉल्वर और कार जैसी वॉर ट्रॉफियां नई पीढ़ी को यह बताती हैं कि अनुशासन, साहस और संकल्प के बल पर भारत ने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की थी।
सेना के पराक्रम की मूक साक्षी
ये वॉर ट्रॉफियां भारतीय सेना की बहादुरी और पराक्रम की मूक साक्षी हैं। वे न केवल अतीत की विजय की याद दिलाती हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को देश की रक्षा के लिए समर्पण और साहस की प्रेरणा भी देती हैं।






