Friday, December 05, 2025
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शशि थरूर ने लोकसभा में पेश किए 3 अहम बिल, वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने का विधेयक भी शामिल

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने लोकसभा में वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने, राज्यों के पुनर्गठन के लिए स्थायी आयोग बनाने और ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ लागू करने समेत तीन निजी विधेयक पेश किए।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Dec 05, 2025 11:10 pm IST, Updated : Dec 05, 2025 11:10 pm IST
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Image Source : PTI कांग्रेस सांसद शशि थरूर।

नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शुक्रवार को लोकसभा में 3 निजी विधेयक यानी कि प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए। सबसे अहम बिल वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने का है। थरूर ने कहा कि शादी के अंदर भी औरत के जिस्म पर उसकी मर्जी है और कानून को यह मान्यता देनी ही होगी।उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा,'वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाना आज भारत के कानूनी ढांचे की सख्त जरूरत है। मैंने अपना निजी विधेयक पेश किया है जिसमें भारतीय न्याय संहिता में संशोधन कर शादी के नाम पर बलात्कार की छूट को खत्म करने का प्रस्ताव है।'

'अब वक्त आ गया है कि हम कार्रवाई करें'

थरूर ने अपनी पोस्ट में आगे लिखा, 'भारत को अपने संवैधानिक मूल्यों पर खरा उतरना होगा और ‘ना का मतलब ना’ से आगे बढ़कर ‘केवल हां का मतलब हां’ तक जाना होगा। हर औरत को शादी के अंदर भी अपनी देह पर पूरा हक और इज्जत मिलनी चाहिए। आज हमारा कानून यह सुरक्षा नहीं दे पाता। वैवाहिक बलात्कार शादी का मामला नहीं, हिंसा का मामला है। अब वक्त आ गया है कि हम कार्रवाई करें। वर्तमान में भारतीय न्याय संहिता की धारा-63 में कहा गया है कि अगर पत्नी 18 साल से ऊपर है तो पति के साथ जबरदस्ती संबंध बनाना अपराध नहीं है। यह पुरानी सोच है जो औरत को पति की जागीर समझती है।

'ब्रिटिश काल की गुलाम मानसिकता का अवशेष'

थरूर ने लिखा, 'यह ब्रिटिश काल की गुलाम मानसिकता का अवशेष है। इस कानून ने शादीशुदा औरतों को कानूनी सुरक्षा से वंचित कर रखा है। शादी के नाम पर सहमति की जरूरत खत्म मान लेना औरतों के सम्मान, सुरक्षा और देह की स्वायत्तता के मौलिक अधिकार का हनन है। पति का अपनी पत्नी पर जबरन संबंध बनाना उसकी स्वतंत्रता छीनना और लैंगिक हिंसा को बढ़ावा देना है।' विधेयक में यह भी कहा गया है कि औरत की जाति, पेशा, कपड़े, निजी विश्वास या पहले का यौन इतिहास कभी भी उसकी सहमति मानने का आधार नहीं हो सकता। ऐसे विचार लैंगिक असमानता को बढ़ाते हैं और औरत के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। इन्हें साफ-साफ खारिज करना होगा।

दूसरा बिल: राज्यों के पुनर्गठन के लिए स्थायी आयोग

शशि थरूर ने दूसरा निजी विधेयक भी पेश किया जिसमें एक स्थायी ‘राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश पुनर्गठन आयोग’ बनाने का प्रस्ताव है। इसका मकसद भविष्य में नए राज्य बनाने या मौजूदा राज्यों की सीमाएं बदलने का कोई भी फैसला डाटा, जनगणना, आर्थिक व्यवहार्यता, प्रशासनिक सुविधा, राष्ट्रीय एकता और लोगों की राय के आधार पर करना है। उन्होंने लिखा, 'हमारे विविधता से भरे देश में राज्यों का बंटवारा और नया गठन हमेशा होता रहेगा। इसलिए एक स्थायी तंत्र होना चाहिए जो इन फैसलों को भावनात्मक या अचानक प्रतिक्रिया की बजाय ठोस आंकड़ों और निष्पक्ष अध्ययन के आधार पर ले। नेहरू जी के शब्दों में यह एक निष्पक्ष और तटस्थ प्रक्रिया होगी जो लोगों और देश दोनों के हित में होगी।'

तीसरा बिल: ‘राइट टु डिस्कनेक्ट’ का कानून

तीसरा विधेयक श्रमिकों के स्वास्थ्य और काम-जिंदगी के संतुलन से जुड़ा है। थरूर ने लिखा, 'भारत की 51 फीसदी आबादी हफ्ते में 49 घंटे से ज्यादा काम करती है और 78 फीसदी लोग बर्नआउट (थकान-तनाव) का शिकार हैं। युवा अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की दुखदर्दनाक मौत इसका जीता-जागता सबक है। हमें काम के घंटे सीमित करने, ‘राइट टु डिस्कनेक्ट’ (ऑफिस समय के बाद फोन-मेल से मुक्त रहने का अधिकार) को कानूनी मान्यता देने और मानसिक स्वास्थ्य सहायता तंत्र बनाने की जरूरत है।' विधेयक के उद्देश्य में कहा गया है कि वर्क-लाइफ बैलेंस, काम के बाद डिस्कनेक्ट होने का अधिकार और काम के घंटों की सीमा मिलकर कार्यस्थल को स्वस्थ और टिकाऊ बनाएंगे। (PTI)

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