मुंबई: महाराष्ट्र में एक बार फिर लाउडस्पीकर का मुद्दा गरमाने लगा है। मुंबई की पांच दरगाहों ने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के उपयोग के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई को मनमानी और चुनिंदा बताते हुए मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि पुलिस विशेष रूप से उनके समुदाय को निशाना बना रही है, जिससे उनकी धार्मिक प्रथाएं प्रभावित हो रही हैं।
पुलिस को नोटिस जारी
न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति एम एम सथाये की खंडपीठ ने इस मामले में पुलिस को नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई 9 जुलाई, 2025 को निर्धारित की। पुलिस का दावा है कि वह एक अदालती आदेश का पालन करते हुए सभी धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के दुरुपयोग के खिलाफ समान रूप से कार्रवाई कर रही है।
हालांकि, दरगाहों की याचिका में कहा गया है कि पुलिस की कार्रवाई केवल मस्जिदों और दरगाहों को लक्षित कर रही है, जिससे वहां प्रार्थना करने वालों के अधिकारों का हनन हो रहा है। याचिका में ध्वनि प्रदूषण नियमों के उल्लंघन के लिए पुलिस द्वारा जारी नोटिस को रद्द करने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। उनका कहना है कि यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव में की जा रही है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि अज़ान इस्लाम का अभिन्न अंग है, और मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर में नमाज के लिए लोगों को बुलाने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग आवश्यक है।
पहले कब उठा था लाउडस्पीकर का मुद्दा?
महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर का मुद्दा कई वर्षों से समय-समय पर चर्चा में रहा है, विशेष रूप से धार्मिक स्थलों पर इसके उपयोग को लेकर। इस मुद्दे ने विशेष रूप से 2022 में जोर पकड़ा, जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने की मांग उठाई और इसके लिए 3 मई 2022 तक का अल्टीमेटम दिया। उन्होंने दावा किया कि अज़ान के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है और अगर इसे नहीं रोका गया, तो मस्जिदों के पास हनुमान चालीसा बजाने की कार्रवाई की जाएगी। इस मांग ने राज्य में सामुदायिक तनाव को बढ़ावा दिया और व्यापक बहस छिड़ गई। (इनपुट: भाषा)


