हिंदू धर्म में व्रत का खासा महत्व है, इससे मन, तन की शुद्धी तो मिलती ही है, साथ ही इसका धार्मिक महत्व भी मिलता है। व्रत में निर्जला एकादशी का व्रत ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है, इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ ही निर्जला व्रत रखने का विधान है। इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून को रखा जा रहा है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने के बाद व्रत कथा जरूर पढ़ना चाहिए, इससे आपकों शुभफल की प्राप्ति होती है और सभी पापों का नाश हो जाता है।
निर्जला एकादशी शुभ मूहुर्त
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 6 जून की रात 2.15 बजे शुरू होगी, और 7 जून की सुबह 04.47 बजे पर समाप्त होगी। चूंकि हिंदू धर्म में उदया तिथि की मान्यता है ऐसे में 6 जून को ही व्रत रखा जाएगा। वहीं, 7 जून को दोपहर 01.44 से 04.31 बजे पारण का समय है।
क्या है निर्जला एकादशी कथा?
एक बार भीमसेन व्यास कहने लगे कि हे पितामह भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करने के कह रहे, परंतु महराज मै उनसे कहता हूं कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूं, दान भी दे सकता हूं परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता। इस पर व्यास जी ने कहा कि हे भीमसेना! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रति माह की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो।
भीम ने फिर कहा कि हे पितामह मै तो पहली ही कह चुका कि मुझसे भूख सहन नहीं हो सकती। यदि वर्षभर में कोई एक व्रत हो तो वह मै कर सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से ही वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक भी समय बिना भोजन मेरे लिए रहना कठिन है। अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतएं जो साल में एक बार करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। इस पर व्यास जी ने कहा कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़ी मेहनत से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है, इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।
व्यास जी को सुन भीमसेन कहने लगे कि अब मैं क्या करूं? माह में दो व्रत तो मैं नहीं कर सकता, हां साल में एक व्रत करने की कोशिश जरूर कर सकता हूं। अत: साल में एक दिन व्रत करने से मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताएं। इस पर व्यास जी ने कहा कि वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है, उसे निर्जला कहा जाता है, तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ मासे से अधिक जल नहीं होना चहिए अन्यथा वह मद्यपान माना जाएगा। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके बाद भूखे और ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर भोजन करें। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर है।
व्यास जी ने कहा हे राजन यह मुझे स्वंय भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्क तार्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जला रहने से पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी व्रत है इसलिए यत्न के साथ व्रत करना चाहिए। उस दिन ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण भी करना चाहिए और गौ-दान देना चाहिए। इसे प्रकार व्यास जी के कहेनुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसीलिए एक एकादशी को भीमसेनी या पांडल एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करूंगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएं। इस दिन जल से भरा हुआ घड़ा वस्त्र से ढंक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।
जो मनुष्य इस व्रत का पालन करता है उसे करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञ आदि करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णु लोक को प्राप्त होता है, जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं वे चांडाल समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं, जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहिए ब्रह्म हत्या हो, मद्यरान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो, इस व्रत के कारण स्वर्ग जाता है।
हे कुंती पुत्र जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गोदान, ब्राह्मण को मिष्ठान और दक्षिणा दान देनी चाहिए और जल से भरे कलश का दान करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का भी दान करना चाहिए।
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