Saturday, April 20, 2024
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रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना के गले में कैसे लटका सोने का तमगा, कहानी रुला देगी

उत्तरी ओबंगाल का शहर जलपाईगुड़ी बुधवार को उस समय जश्न में सरावोर हो गया जब यहां के एक रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने एशियाई खेलों में सोने का तमगा अपने गले में डाला।

India TV Sports Desk Edited by: India TV Sports Desk
Updated on: August 29, 2018 23:34 IST
स्वप्ना बर्मन- India TV Hindi
Image Source : PTI स्वप्ना बर्मन

कोलकाता। उत्तरी ओबंगाल का शहर जलपाईगुड़ी बुधवार को उस समय जश्न में सरावोर हो गया जब यहां के एक रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने एशियाई खेलों में सोने का तमगा अपने गले में डाला। 

स्वप्ना ने इंडोनेशिया के जकार्ता में जारी 18वें एशियाई खेलों की हेप्टाथलन स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। वह इस स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं। 

स्वप्ना ने सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया। जैसे ही स्वप्ना की जीत तय हुई यहां घोषपाड़ा में स्वप्ना के घर के बाहर लोगों को जमावड़ा लग गया और चारों तरफ मिठाइयां बांटी जाने लगीं। 

अपनी बेटी की सफलता से खुश स्वप्ना की मां बाशोना इतनी भावुक हो गई थीं कि उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। बेटी के लिए वह पूरे दिन भगवान के घर में अर्जी लगा रही थीं। स्वप्ना की मां ने अपने आप को काली माता के मंदिर में बंद कर लिया था। इस मां ने अपनी बेटी को इतिहास रचते नहीं देखा क्योंकि वह अपनी बेटी की सफलता की दुआ करने में व्यस्त थीं। 

स्वप्ना बर्मन

Image Source : PTI
स्वप्ना बर्मन

बेटी के पदक जीतने के बाद बशोना ने आईएएनएस से कहा, "मैंने उसका प्रदर्शन नहीं देखा। मैं दिन के दो बजे से प्रार्थना कर रही थी। यह मंदिर उसने बनाया है। मैं काली मां को बहुत मानती हूं। मुझे जब उसके जीतने की खबर मिली तो मैं अपने आंसू रोक नहीं पाई।"

स्वप्ना के पिता पंचन बर्मन रिक्शा चलाते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से उम्र के साथ लगी बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं। बशोना ने बेहद भावुक आवाज में कहा, "यह उसके लिए आसान नहीं था। हम हमेशा उसकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते थे, लेकिन उसने कभी भी शिकायत नहीं की।"

एक समय ऐसा भी था कि स्वप्ना को अपने लिए सही जूतों के लिए संघर्ष करना पड़ता था क्योंकि उनके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं। पांव की अतिरिक्त चौड़ाई खेलों में उसकी लैंडिंग को मुश्किल बना देती है इसी कारण उनके जूते जल्दी फट जाते हैं। 

स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा ने कहा कि उसे अपने खेल संबंधी महंगे उपकरण खरीदने में काफी परेशानी होती है। 

बकौल सुकांत, "मैं 2006 से 2013 तक उसका कोच रहा हूं। वह काफी गरीब परिवार से आती है और उसके लिए अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाना मुश्किल होता है। जब वह चौथी क्लास में थी तब ही मैंने उसमें प्रतिभा देख ली थी। इसके बाद मैंने उसे ट्रेनिंग देना शुरू किया।"

उन्होंने कहा, "वह बेहद जिद्दी है और यही बात उसके लिए अच्छी भी है। राइकोट पारा स्पोर्टिग एसोसिएशन क्लब में हमने उसे हर तरह से मदद की। आज मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूं।"

चार साल पहले इंचियोन में आयोजित किए गए एशियाई खेलों में स्वप्ना कुल 5178 अंक हासिल कर चौथे स्थान पर रही थी। पिछले साल एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी वह स्वर्ण जीत कर लौटी थी। 

स्वप्ना ने 100 मीटर में हीट-2 में 981 अंकों के साथ चौथा स्थान हासिल किया था। ऊंची कूद में 1003 अंकों के साथ पहले स्थान पर कब्जा जमाया। गोला फेंक में वह 707 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। 200 मीटर रेस में उसने हीट-2 में 790 अंक लिए। 

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