कोलकाता: 103 दिनों की कैद, महिला की बेबसी और सरहदों के बीच अटकी मां-बेटे की जिंदगी, आखिरकार शुक्रवार को उनका संकट खत्म हुआ। पश्चिम बंगाल की 26 साल की सुनाली खातून और उनका बेटा साबिर, जिन्हें ''घुसपैठिया'' समझकर सीमा पार बांग्लादेश भेज दिया गया था, अब अपने देश भारत की सरजमीन पर लौट आई हैं। सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद हुई सुनाली खातून और उनके बेटे की वतन वापसी सिर्फ 2 जिंदगियों की नहीं, बल्कि बॉर्डर पार पहचान और इंसानियत के सबसे पेचीदा प्रश्नों की भी कहानी है। हालांकि, इस बारे में अभी साफ नहीं हो पाया है कि 4 अन्य निर्वासित लोग कब वापस लाए जाएंगे। ये लोग अब भी बांग्लादेश में हैं। इन्हें भी लाने का आदेश भी सुप्रीम कोर्ट दे चुका है।
वतन वापसी के बाद अपने घर तक कैसे पहुंचेंगी सुनाली
एक अधिकारी ने बताया कि प्रेग्नेंसी अंतिम दौर में पहुंच चुकी सुनाली खातून को शुक्रवार शाम करीब 7 बजे उप-उच्चायुक्त स्तर के एक अफसर को सौंपा गया, जहां से मां-बेटे को पहले औपचारिकता के लिए मेहदीपुर में मौजूद बीएसएफ कैंप ले जाया गया और बाद में उनकी मेडिकल जांच के लिए मालदा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया। उन्होंने आगे कहा कि अगर डॉक्टर उसको यात्रा के लिए फिट घोषित करेंगे, तो उसे शनिवार को बीरभूम के मुरारई में मौजूद पैकर गांव में सुनाली और उसके बेटे को उनके घर पहुंचा दिया जाएगा।
सुनाली खातून को कब और कैसे पकड़ा गया
जान लें कि सुनाली खातून को दिल्ली के काटजू नगर थाना इलाके की पुलिस ने इसी साल 18 जून को रोहिणी के सेक्टर 26 में मौजूद बंगाली बस्ती से हिरासत में लिया था। पुलिस को सुनाली पर बांग्लादेशी नागरिक होने का शक था। सुनाली खातून, उसके पति दानिश और बेटे को बाद में Overseas Regional Registration Office के आदेश पर बॉर्डर पार बांग्लादेश भेज दिया गया था।
बांग्लादेश की जेल में 103 दिन रहे बंद
इस दौरान, बीरभूम गांव की एक अन्य फैमिली को भी निर्वासित किया गया था, जिनमें स्वीटी बीबी और उसके दो बेटे, कुर्बान शेख और इमाम दीवान शामिल थे। ये सभी 6 लोग 20 अगस्त से बांग्लादेश के चपई नवाबगंज की जेल में कथित ‘घुसपैठियों’ के तौर पर रखे गए थे। हालांकि, एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 1 दिसंबर को हर एक को 5 हजार टका के मुचलके पर जमानत दे दी थी।
(इनपुट- भाषा)
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