कहा जाता है कि सबसे बड़ा दान विद्यादान होता है लेकिन एक वर्तमान में एक दान और है जिसे महादान कहा जा रहा है। आज दुनियाभर में 'वर्ल्ड ऑर्गन डोनेशन डे' मनाया जा रहा है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को अंगदान के महत्व के प्रति जागरूक करना और यह समझाना है कि कैसे एक व्यक्ति की पहल कई जिंदगियों को नई सांसें दे सकती है। भारत में हर साल लाखों लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें लिवर, किडनी, हार्ट या आंखों जैसे अंगों की सख्त जरूरत होती है, लेकिन समय पर डोनर न मिलने के कारण उनकी जान चली जाती है। जबकि एक ब्रेन डेड व्यक्ति के अंग करीब आठ लोगों की जान बचा सकते हैं।
किसने सबसे पहले किया था देहदान
अगर सबसे पहले दानकर्ता की बात करें तो कहा जाता है कि महर्षि दधीचि, जिन्होंने मानव कल्याण के लिए अपने शरीर की हड्डियों का दान किया था। यह दान देवताओं के लिए वज्र (एक शक्तिशाली हथियार) बनाने के लिए किया गया था, ताकि वे असुरों को हरा सकें। इस प्रकार, दधीचि को सबसे बड़े अंगदाता के रूप में जाना जाता है। दधीचि की कहानी हिंदू पुराणों में प्रसिद्ध है। ऋषि दधीचि ने अपनी हड्डियों का दान इसलिए किया क्योंकि देवताओं ने उन्हें बताया कि केवल उनकी हड्डियों से बना वज्र ही शक्तिशाली असुर वृत्रासुर को मार सकता है। यह कहानी अंगदान और परोपकार के महत्व को दर्शाती है। दधीचि की कहानी आज भी लोगों को अंगदान करने के लिए प्रेरित करती है।
सबसे पहले डोनर ने दान की थी किडनी
ये तो हो गई सबसे पहले अंगदान की पौराणिक कथा, अब ये समझें कि किसने सबसे पहले अंगदान किया था, तो रिपोर्ट्स के मुताबिक पहले अंगदान करने वाले शख्स का नाम रोनाल्ड ली हेरिक था, जिन्होंने 1954 में अपनी किडनी अपने जुड़वां भाई को दान की थी और PACE Hospitals में इसका सफल प्रत्यारोपण किया गया था और इस प्रत्यारोपण को डॉ. जोसेफ मरे ने अंजाम दिया था। इस तरह पहले जिस अंग का प्रत्यारोपण किया गया था वो 1954 में, गुर्दा पहला मानव अंग था जिसका सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया था।
सबसे पहले किसने किया था प्रत्यारोपण
इसके बाद 1960 के दशक के अंत तक लिवर, हार्ट और पैंक्रियाज के प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किए गए, जबकि फेफड़े और आंतों के अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रियाएं 1980 के दशक में शुरू हुईं। UNOS के मुताबिक थॉमस अर्ल स्टारज़ल (11 मार्च, 1926 - 4 मार्च, 2017) एक अमेरिकी चिकित्सक, शोधकर्ता और अंग प्रत्यारोपण के विशेषज्ञ थे। उन्होंने पहले मानव लिवर प्रत्यारोपण किया था और उन्हें "आधुनिक अंग प्रत्यारोपण का पिता" कहा गया था।
पहले प्रत्यारोपण आसान नहीं था
1950 के दशक के मध्य से लेकर 1970 के दशक के प्रारंभ तक, अलग-अलग प्रत्यारोपण अस्पताल और अंग प्राप्ति संगठन, अंग पुनर्प्राप्ति और प्रत्यारोपण के सभी पहलुओं का प्रबंधन करते थे। यदि किसी अंग का उपयोग दाता के स्थानीय अस्पतालों में नहीं किया जा सकता था, तो अन्यत्र उपयुक्त अंग खोजने की कोई व्यवस्था नहीं थी। कई अंगों का उपयोग केवल इसलिए नहीं हो पाता था क्योंकि प्रत्यारोपण दल समय पर उपयुक्त प्राप्तकर्ता का पता नहीं लगा पाते थे। अब तो आप अपना अंग दान कर सकते हैं और इसकी प्रक्रिया भी आसान है।
कैसे कर सकते हैं अंगदान
- किसी सरकारी या भरोसेमंद संस्था की वेबसाइट पर जाएं।
- वहां से डोनर फॉर्म डाउनलोड करें, यह बिल्कुल मुफ्त होता है।
- फॉर्म को ध्यान से पढ़ें, पूरी जानकारी भरें।
- फॉर्म पर दो लोगों के हस्ताक्षर जरूरी हैं, जिनमें से एक आपका नजदीकी रिश्तेदार होना चाहिए।
- फॉर्म जमा करने के बाद आपका रजिस्ट्रेशन होगा और आपको डोनर कार्ड जारी किया जाएगा।
- यह कार्ड आपके पते पर डाक से भेजा जाएगा। इसे अपने पास सुरक्षित रखें।
- अपने परिवार और करीबी लोगों को जरूर बताएं कि आपने अंगदान के लिए रजिस्ट्रेशन किया है, ताकि सही समय पर वे अस्पताल को जानकारी दे सकें।
- अगर किसी ने पहले से रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया है तब भी मौत के बाद अंगदान संभव है। इसके लिए परिवार की अनुमति जरूरी होती है।