Saturday, April 20, 2024
Advertisement

Rajat Sharma’s Blog: हाथरस केस- योगी पीड़ित परिवार का भरोसा जीतें

अच्छी बात ये है कि सीएम योगी आदित्यनाथ इस बात को समझ गए हैं और उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया है कि पुलिस का रोल भी सिस्टम की छवि को खराब करने वाला है।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: October 05, 2020 7:44 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Hathras, Rajat Sharma Blog on Hathras Gangrape- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

यूपी सरकार ने शनिवार सुबह हाथरस की बेटी के गांव के अंदर मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। यहां के एसडीएम प्रेम प्रकाश मीणा ने कहा कि गांव में धारा 144 लागू है जिसे देखते हुए पांच से ज्यादा मीडियाकर्मियों को एक जगह जमा होने की इजाजत नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि कानून और व्यवस्था को देखते हुए राजनीतिक दलों और अन्य सामाजिक संगठन के लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध जारी रहेगा। गैंगरेप की शिकार बेटी के जबरन दाह संस्कार के बाद उसके गांव में मीडिया के दाखिल होने पर पिछले दो दिनों से प्रतिबंध लगा हुआ था। 

इससे पहले यूपी सरकार ने शुक्रवार को हाथरस के एसपी विक्रांत वीर, सीओ राम शबद, एसएचओ दिनेश कुमार वर्मा, सब-इंस्पेक्टर जगवीर सिंह और हेड मोहरिर्र (क्लर्क) महेश पाल को सस्पेंड कर दिया। शामली के एसपी विनीत जायसवाल को हाथरस का नया एसपी नियुक्त किया गया है।

वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक ट्वीट में हत्यारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का वादा किया है। योगी ने लिखा है, ‘उत्तर प्रदेश में माताओं-बहनों के सम्मान-स्वाभिमान को क्षति पहुंचाने का विचार मात्र रखने वालों का समूल नाश सुनिश्चित है। इन्हें ऐसा दंड मिलेगा, जो भविष्य में उदाहरण प्रस्तुत करेगा। आपकी सरकार प्रत्येक माता-बहन की सुरक्षा व विकास हेतु संकल्पबद्ध है। यह हमारा संकल्प है, वचन है।’

मुझे विश्वास है योगी जी अपना वचन जरूर पूरा करेंगे। वे अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे। लेकिन सबसे जरुरी है हाथरस की बेटी के परिवार को विश्वास दिलाना, उन्हें यकीन दिलाना कि उसके साथ अन्याय नहीं होगा। उनके परिवार को इस बात का यकीन दिलाना कि बेटी के हत्यारों को जल्दी सजा मिलेगी। ये भी जरूरी है विश्वास पैदा करने के लिए कि इस बेटी के परिवार पर लगा पहरा हटाया जाए। उन्हें मीडिया के सामने अपनी बात कहने का मौका दिया जाए। और जब तक ये विश्वास पैदा नहीं होगा, तब तक नाराजगी बनी रहेगी।

मैं आपको ये भी बता दूं कि हाईकोर्ट ने जब इस मामले का संज्ञान लिया तो साफ-साफ लफ्जों में कहा कि अगर सरकार ने इस मामले की ठीक से जांच नहीं की तो फिर हाईकोर्ट इस पूरे मामले की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी को दे सकता है और जरूरत पड़ी तो अदालत पूरी जांच की निगरानी भी करेगी।

जब मैंने हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के आदेश को पढ़ा तो जज साहेबान के प्रति इज्जत और बढ़ गई, न्यायपालिका के प्रति सम्मान और गहरा हो गया। इस आदेश को पढ़ने के बाद आपको भी लगेगा कि हमारे जज (न्यायाधीश) सिर्फ सरकारी जवाबों और कागजों के आधार पर फैसले नहीं करते। उनकी नजर समाज में हो रही हर घटना पर होती है। उसके सब पक्षों को वो देखते हैं और सुनते हैं और ये जरूरी नहीं कि वे न्याय तभी देते हैं जब फरियादी अदालत की चौखट पर आए। जज साहेबान उन लोगों को भी न्याय देने की कोशिश करते हैं जो अदालत तक नहीं पहुंच सकते और इस केस में तो इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजेज ने उस बेटी को न्याय देने की पहल खुद की है जो अब इस दुनिया में ही नहीं है। जो अपना दर्द और अपने साथ हुई नाइंसाफी को बयां नहीं कर सकती। अदालत के आदेश को पढ़कर ऐसा लगा कि जजेज ने पूरी डिटेल देखी, उसके बारे में खुद तहकीकात की और फिर किसी जनहित याचिका का इंतजार नहीं किया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस रंजन रॉय और जस्टिस जसप्रीत सिंह ने 11 पेज के अपने आदेश में लिखा है कि इंडियी टीवी पर 'आज की बात' में हाथरस में मंगलवार रात के घटनाक्रम को विस्तार से दिखाया गया। उन वीडियो को दिखाया गया जिसमें आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने जबदरस्ती पीड़ित लड़की के शव को देर रात बिना परिवार की मर्जी के जला दिया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मेरा जिक्र किया और लिखा है कि रजत शर्मा के प्रोग्राम में वो सारे वीडियो दिखाए गए जिसमें ऐसा लग रहा था कि पुलिस ने परिवारवालों को अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया। धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन किए बगैर अपनी मर्जी से शवदाह कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि स्टेट अथॉरिटीज पर जिस तरह के आरोप लगे हैं उससे ये मामला ना सिर्फ पीड़ित लड़की बल्कि उसके परिवारवालों के भी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा की पीड़ित लड़की दरिंदगी का शिकार हुई लेकिन उसकी मौत के बाद जो कुछ हुआ, जैसे आरोप लगे हैं, अगर उनमें सच्चाई है तो फिर ये परिवारवालों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। 

हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़ित लड़की की मौत के बाद उसके शव का पूरे सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया जाना चाहिए था। वह लड़की सम्मानपूर्वक अंत्येष्टि की हकदार थी लेकिन रिपोर्ट कहती है कि उसे ये हक नहीं मिला। कोर्ट ने कहा कि जो दिखाया गया उसके मुताबिक पीड़िता के शव को उसके गांव ले जाया गया। लेकिन हैरानी की बात ये है कि शव को परिवार को नहीं सौंपा गया और उसकी सम्मानपूर्वक अंत्येष्टि भी नहीं की गई। कोर्ट ने कहा हमें पता चला कि बेटी के शव को माता-पिता और भाई-बहन को नहीं सौंपा गया बल्कि दूसरे लोगों के जरिए उसका अंतिम संस्कार करवा दिया गया। और तो और, अंतिम संस्कार देर रात 2 बजे से 2.30 बजे के बीच हुआ जबकि पीड़ित परिवार का कहना था कि उनके रिवाजों के मुताबिक सूर्यास्त के बाद शवों को नहीं जलाया जाता।

अपने आदेश में जज साहिबान ने लिखा, 'आज की बात' में दिखाया गया कि किस तरह परिवार बार-बार शव लेने की गुहार लगाता रहा। परिवार कहता रहा कि धार्मिक परंपरा के मुताबिक सूर्यास्त के बाद अंत्येष्टी नहीं की जाती लेकिन जिला प्रशासन ने परिवार की परंपरा का ध्यान ना रखते हुए बेटी का अंतिम संस्कार करवा दिया। कोर्ट ने रिपोर्ट्स का हवाला देकर कहा कि बेटी का शव अभी गांव भी नहीं पहुंचा था कि उसी दौरान जिला प्रशासन की तरफ से लकड़ियों का इंतजाम किया गया। चिता को तैयार कर दिया गया और जिस वक्त एंबुलेंस गांव में दाखिल हुई, उस समय मेन रोड और पीड़िता के परिवार के बीच थ्री लेयर का बैरिकेड लगा दिया गया। पीड़ित लड़की के भाई ने कहा था कि जैसे ही एंबुलेंस सीधा श्मशान घाट की तरफ गई, उसी वक्त मेरी मां पुलिसवालों के पैरों में गिर पड़ी। एक और महिला एंबुलेंस के बोनट के सामने आ गई। उसने हाथ जोड़ लिये और वो कहने लगी कि कम से कम बेटी की मिट्टी पर हल्दी तो लगाने दीजिए। एक बार घर के अंदर बेटी के शव को ले जाने दीजिए, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। एक बार तो पुलिसवाले ये सब देखकर गुस्से में आ गए और पीड़ित परिवार के रिश्तेदारों को लात मारी और धक्का दिया जो कि बीच-बचाव करने पहुंचे थे। इसी के बाद पूरे परिवार ने खुद को घर के अंदर बंद कर लिया और दो घंटे तक उन्हें ये ही पता नहीं चला कि बेटी का अंतिम संस्कार हुआ या नहीं। अदालत ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि राज्य सरकार इस बात को सुनिश्चित करे कि हाथरस का प्रशासन या फिर पुलिस के अफसर या फिर यूपी सरकार के अधिकारियों की ओर से हाथरस की बेटी के परिवार वालों पर किसी तरह का कोई दबाब ना डाला जाए, उन्हें डराया ना जाए। 

बड़ी बात ये है कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि इस केस की सुनवाई 12 अक्टूबर को होगी और उस दिन हाथरस की बेटी के माता-पिता, उसके भाई-बहन को भी अदालत में पेश किया जाए। अदालत ने इन सभी लोगों को अच्छे तरीके से हाथरस से लखनऊ लाने, लखनऊ में उनके ठहरने और खाने-पीने का इंतजाम भी सरकार से करने को कहा है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यूपी के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी या प्रधान सचिव (गृह), डीजीपी, एडीजीपी, हाथरस के डीएम और एसपी को भी समन किया है और पूरे मामले की जांच को लेकर जवाब मांगा है। 

मैं आपको इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को इतने विस्तार से इसलिए बता रहा हूं क्योंकि सारे तथ्य और पूरे आदेश को जानने के बाद आपको लगेगा कि हमारे जज कितने सजग और संवेदनशील हैं और उनकी नजर कितनी पैनी है। कितनी संवेदनशीलता के साथ और कितनी गहराई के साथ हाथरस की बेटी के केस को देखा और जब कोई अदालत की चौखट पर नहीं पहुंचा तो जज साहेबान ने मामले का स्वत: संज्ञान लेकर आदेश जारी कर दिया। हाईकोर्ट ने एक्शन तब लिया जब वहां कोई इंसाफ मांगने नहीं गया था। हाईकोर्ट ने सिर्फ हाथरस की तस्वीरों को देखा, रिपोर्ट्स को देखा। 'आज की बात' में दिखाए गए वीडियो को देखा, डीएम की बातों को सुना और इसके बाद हाईकोर्ट के जज साहिबान खुद को रोक नहीं पाए। उन्हें लगा कि सच सामने आना जरूरी है। न्याय सिर्फ होना नहीं चाहिए, न्याय होते हुए दिखाई देना चाहिए। इसीलिए हाईकोर्ट के जजेज ने रात में ही बिना किसी याचिका के, बिना किसी फरियाद के, बिना किसी याचिका के मामले का स्वत: संज्ञान लिया और इतने विस्तार से आदेश पास किया। ये बहुत बड़ी बात है, कोई छोटी बात नहीं। ये न्यायपालिका और जजेज के प्रति देश के लोगों के दिलों में विश्वास बढ़ाने वाली बात है।

शुरुआत में मेरी कोशिश सिर्फ इतनी थी कि हाथरस की एक बेटी की मौत हो गई है और उसकी मौत के गुनहगारों को सजा मिलनी चाहिए। बेटी की मौत कैसे हुई, क्या उसके इलाज में देरी हुई, क्या पुलिस ने लापरवाही बरती? क्या अफसरों ने मामले को दबाने की कोशिश की? अगर ऐसा हुआ तो जिम्मेदार अफसरों पर भी एक्शन होना चाहिए, इतनी कोशिश थी। लेकिन जब सफदरजंग हॉस्पिटल में हाथरस की इस बेटी के मौत के बाद जिस तरह से पुलिस परिवार को बिना बताए लाश को ले गई फिर रात के अंधेरे में जिस तरह से लड़की की लाश को जलाया गया और जिस तरह से परिवार वालों को धमकाया गया, उससे शक पैदा हुआ। इसके बाद डीएम, एसपी, एडीएम और फिर एडीजी ने जिस तरह के बयान दिए उससे सवाल पैदा हुए, आशंका हुई। जिले के अधिकारी लगातार झूठ पर झूठ बोले जा रहे थे। इसी झूठ की वजह से मुख्यमंत्री ने एसआईटी का गठन किया और एसपी समेत अन्य पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने का कदम उठाया। एसआईटी ने पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड करने की सिफारिश के अलावा, थाने के सभी पुलिस वालों का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की सिफारिश की है। पुलिस वालों के साथ-साथ लड़की के परिवारवालों का और हत्या के जो आरोपी हैं, उन सबका पॉलीग्राफ टेस्ट होगा।

पहले ही पुलिस की तरफ से गढ़े गए अधिकांश झूठ का पर्दाफाश हो चुका है और पुलिस झूठ भी ऐसा बोलती है कि तुरंत पकड़ा जाता है। कुछ दिनों में हाथरस की बेटी के साथ गैंगरेप और हत्या के आरोपियों को बचाने वालों का चेहरा भी सामने आ जाएगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद हाथरस की बेटी के परिजनों पर दबाव साफ तौर पर देखा जा रहा है। 

अच्छी बात ये है कि सीएम योगी आदित्यनाथ इस बात को समझ गए हैं और उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया है कि पुलिस का रोल भी सिस्टम की छवि को खराब करने वाला है। इसीलिए उन्होंने हाथरस के एसपी समेत कई पुलिसकर्मियों को शुक्रवार रात सस्पेंड कर दिया। ये बड़ा और सख्त फैसला है। योगी आदित्यनाथ के इस कदम से सिस्टम, सरकार और प्रशासन में लोगों का भरोसा बढ़ेगा। पुलिस की छवि को जो धक्का लगा है, उसे कुछ हद तक सही किया जा सकेगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 02 अक्टूबर, 2020 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement