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Deen Dayal Upadhyaya Jayanti: दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को अंत्योदय दिवस के रूप में क्यों मनाते हैं? जानें इस महान नेता के जीवन से जुड़ी बड़ी बातें

पंडित दीनदयाल के बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। जिसके बाद वह आजीवन संघ के प्रचारक रहे। वह जनसंघ के नेता भी रहे लेकिन मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई थी।

Written By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published : Sep 25, 2023 08:42 am IST, Updated : Sep 25, 2023 08:42 am IST
Deen Dayal Upadhyaya- India TV Hindi
Image Source : FILE दीनदयाल उपाध्याय

नई दिल्ली: गरीबों और दलितों के मसीहा और राष्ट्रवादी नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज जयंती है। इस मौके पर दिल्ली में आज उनकी 63 फीट ऊंची मूर्ति का पीएम मोदी अनावरण करेंगे। ये मूर्ति दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय पार्क में बनी है। इसे मिक्सड मेटल से बनाया गया है। दीनदयाल का जन्म 25 सितंबर 1916 को यूपी के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। 

उनके पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे। दीनदयाल के बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। पढ़ाई के बाद दीनदयाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और आजीवन संघ के प्रचारक के रूप में जीवन गुजारा। वह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। दिसंबर 1967 में वह जनसंघ के अध्यक्ष भी बने।

अंत्योदय दिवस क्या है?

पंडित दीनदयाल ने अंत्योदय का नारा दिया था। अंत्योदय का अर्थ होता है कि हम समाज में सबसे आखिरी व्यक्ति के उत्थान और विकास को सुनिश्चित करें। दीनदयाल कहते थे कि कोई भी देश अपनी जड़ों से कटकर विकास नहीं कर सकता। हमें भारतीय राष्ट्रवाद, हिंदू राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति को समझना होगा। 

दीनदयाल के इस विचार की वजह से ही उनकी जयंती (25 सितंबर) को अंत्योदय दिवस के रूप में मनाते हैं। मोदी सरकार ने 25 सितंबर, 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98 वीं जयंती के अवसर पर ये घोषणा की थी कि उनकी जयंती को ‘अंत्योदय दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। 

संघ से कैसे जुड़े और राजनीतिक जीवन कैसे शुरू हुआ?

1937 में दीनदयाल जब कानपुर से बीए कर रहे थे, तब अपने साथ पढ़ने वाले बालूजी महाशब्दे के कहने से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। इसके बाद उन्हें संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार का संरक्षण मिला और वह पढ़ाई के बाद संघ के आजीवन प्रचारक हो गए। 

संघ के प्रचारक रहने के दौरान दीनदयाल राजनीति में सक्रिय हुए और जब जनसंघ का 1952 में प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ तो दीनदयाल इस दल के महामंत्री बने। इस अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से 7 दीनदयाल उपाध्याय ने प्रस्तुत किए थे। इस दौरान डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि अगर मुझे 2 दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूंगा।

दीनदयाल महज 43 दिन जनसंघ के अध्यक्ष रहे थे। 10/11 फरवरी 1968 की रात में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद पूरे देश में शोक की लहर डूब गई थी।

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