Sunday, December 15, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: ज्ञानवापी केस का फैसला अब अदालत को ही करने दीजिए

Rajat Sharma’s Blog: ज्ञानवापी केस का फैसला अब अदालत को ही करने दीजिए

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नागेंद्र पांडे ने स्वागत किया।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : May 21, 2022 17:17 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Gyanvapi, Rajat Sharma Blog on Gyanvapi Case- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

ज्ञानवापी केस को निचली अदालत से जिला अदालत में ट्रांसफर करने के सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से साफ है कि निचली अदालत के सभी आदेशों और कार्यवाही पर रोक लगाने की अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी की अपील को नामंजूर कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत परिसर की धार्मिक प्रकृति का पता लगाने के लिए इसके सर्वे पर कोई पाबंदी नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि क्या हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी के अंदर पूजा करने की इजाजत दी जा सकती है, इससे जुड़े मामले की जटिलता और संवेदनशीलता को देखते हुए बेहतर होगा कि एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी इसे देखें, और इसी कारण यह केस अब जिला जज को ट्रांसफर कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालत को यह भी निर्देश दिया है कि वह परिसर के अंदर देवी श्रृंगार गौरी और अन्य देवताओं की पूजा की मांग करने वाली 5 हिंदू महिलाओं द्वारा दायर मुकदमे की सुनवाई को प्राथमिकता दे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि शिवलिंग जैसे स्ट्रक्चर को सुरक्षा देने का उसका 17 मई का आदेश बना रहेगा, और जिला मजिस्ट्रेट को नमाजियों के लिए 'वजू' की वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। 'वजुखाना' सील रहेगा, लेकिन मस्जिद में 'नमाज' जारी रहेगी। जब मुस्लिम पक्ष ने अदालत द्वारा नियुक्त आयुक्तों द्वारा सर्वे पर रोक लगाने की मांग की, तो जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि किसी स्थान के धार्मिक चरित्र की जांच पर कोई पाबंदी नहीं है, और अयोध्या और ज्ञानवापी के मामले में काफी अंतर है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नागेंद्र पांडे ने स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अदालत जो चाहे जांच करा ले, जिससे चाहे जांच करा ले, अगर मस्जिद में शिवलिंग मिला है, तो उसकी पूजा-अर्चना का हक हिंदुओं को दे। उन्होंने कहा कि अगर यह साबित होता है कि काला पत्थर शिवलिंग नहीं है, तो हिंदू अपना दावा छोड़ देंगे।

दूसरी ओर, AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का केस को निचली अदालत से जिला अदालत में ट्रांसफर करने का आदेश, और जिला अदालत को हिंदू महिलाओं द्वारा दायर मूल मुकदमे की मेंटेनेबिलिटी पर सुनवाई करने का निर्देश, यह साबित करने के लिए काफी है कि मुस्लिम पक्ष के वकील की दलीलों में दम है।

ओवैसी ने आरोप लगाया कि ज्ञानवापी मस्जिद में नमाजियों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि वजूखाना सील होने की वजह से नमाजी वजू नहीं कर पाए। लेकिन हकीकत यह है कि ज्ञानवापी मस्जिद से जुमे की नमाज पढ़कर निकले लोगों ने कहा कि नमाज बहुत अच्छे से हुई, किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हुई। प्रशासन ने ज्ञानवापी मस्जिद में वजू के लिए एक-एक हजार लीटर पानी के 2 ड्रम और 50 लोटों का इंतजाम किया था।

बनारस के शहर काजी अब्दुल बातिन नोमानी ने शुक्रवार को कहा कि जिसे लोग शिवलिंग बता रहे हैं, वह पुरानी तकनीक से बनाया गया एक फव्वारा ही है। वह पिछले 25 सालों से खराब पड़ा हुआ है और आजकल लोग इस तकनीक से वाकिफ नहीं हैं, इसलिए उसे चला नहीं पा रहे। नोमानी ने दावा किया कि बादशाह औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाने से कई साल पहले ही ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी थी। उन्होंने कहा कि इस मस्जिद को पहले अकबर ने ‘दीन-ए-इलाही’ के धर्मनिरपेक्षता के उसूलों पर बनवाया था, इसलिए मस्जिद की दीवारों पर डमरू, त्रिशूल, स्वास्तिग और शेषनाग जैसे हिंदू धार्मिक प्रतीक बने हुए हैं।

दावे और प्रतिदावे एक तरफ, इस मामले में जो दिख रहा है वह साफ दिख रहा है। उस हकीकत को हिंदू भी जानते हैं और मुसलमान भी। सच यही है कि काशी विश्वनाथ के मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी। मंदिर के शिखर पर मस्जिद के गुंबद रख दिए गए। कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट इस सच की तस्दीक करती है।

मुस्लिम पक्ष यह जानता है कि अगर केस मंदिर-मस्जिद के आधार पर चलता है तो इसमें हार निश्चित है। इसीलिए ओवैसी हों, शफीकुर्ररहमान बर्क हों या बनारस के शहर काजी अब्दुल बातिन नोमानी हों, कोई यह नहीं कहता कि जहां आज ज्ञानवापी मस्जिद है पहले वहां मंदिर नहीं था। सब कांग्रेस शासन के दौरान पारित धार्मिक पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का हवाला दे रहे हैं। इस ऐक्ट के तहत कहा गया है कि अयोध्या विवाद को छोड़कर देश के सभी धर्मिक स्थानों का चरित्र वही रहेगा जो आजादी के वक्त यानी 15 अगस्त 1947 को था। ओवैसी बार-बार यही कह रहे हैं कि इस ऐक्ट के रहते ज्ञानवापी मस्जिद को विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा कैसे बता सकते हैं।

हकीकत यह है कि हिंदू पक्ष यह दावा कर ही नहीं रहा है कि मस्जिद पर उसका मालिकाना हक है। हिंदू पक्ष ने सिर्फ श्रृंगार गौरी की पूजा करने की इजाजत मांगी है, और जो 15 अगस्त 1947 से लेकर 1991 तक जारी रही। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने शुक्रवार को कहा कि यह कोई मालिकाना हक का नहीं बल्कि पूजा से जुड़ा मामला है। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में हो रही कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। ओवैसी कुछ भी कहें, लेकिन कानून के लिहाज से उनकी दलीलें खरी नहीं हैं।

कुछ लोग कह रहे हैं कि मुस्लिम पक्ष के अड़ियल रवैये की वजह से यह मुद्दा इतना आगे बढ़ गया। यदि मुस्लिम पक्ष ने हिंदू वादियों को श्रृंगार गौरी की पूजा करने की इजाजत दे दी होती, तो मामला वहीं खत्म हो जाता। ऐसे में मामला न तो अदालत में जाता, न अदालत कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति करती, न सर्वे होता, न वीडियोग्राफी होती, न मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट दौड़ना पड़ता। लेकिन अब मामला हाथ से निकल चुका है और दूर तक जाएगा। अब कोर्ट को ही फैसला करने दीजिए। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 20 मई, 2022 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement