सेबी ने सोमवार को निवेश सलाहकारों और शोध विश्लेषकों को एक साल तक अग्रिम शुल्क लेने की अनुमति देने का फैसला किया।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने 21 मार्च को समाप्त सप्ताह में 1,794 करोड़ रुपये (19.4 करोड़ डॉलर) के शेयर बेचे हैं।
रुपये में गिरावट ने एफपीआई के लिए रिटर्न को कम कर दिया है। वहीं, भारत का टैक्स स्ट्रक्चर भी एक कारण है, जिसमें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 12.5 प्रतिशत टौक्स और शॉर्ट टर्म पर 20 फीसदी टैक्स है।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि भारत में ऊंचे मूल्यांकन की वजह से एफपीआई बिकवाली कर रहे हैं। वे अपना पैसा चीन के शेयरों में लगा रहे हैं, जहां मूल्यांकन कम है।
ट्रंप की राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद अमेरिका बाजार में शेष दुनिया से भारी पूंजी का प्रवाह हो रहा है। उन्होंने कहा, चूंकि चीन के शेयर सस्ते हैं ऐसे में ‘भारत में बेचो और चीन में खरीदो’ का रुख अभी जारी रह सकता है।
पिछले साल यानी 2024 में भारतीय शेयरों में एफपीआई का निवेश सिर्फ 427 करोड़ रुपये रहा था। इससे पहले 2023 में उन्होंने भारतीय शेयर बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये डाले थे। इसकी तुलना में 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा आक्रामक तरीके से नीतिगत दर बढ़ाने के बीच एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये निकाले थे।
साल 2023 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध निवेश किया था। इसकी तुलना में, 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में आक्रामक वृद्धि के बीच एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी की थी।
जब तक डॉलर सूचकांक 108 से ऊपर रहेगा और 10 साल के अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 4.5 प्रतिशत से ऊपर रहेगा, तब तक बिक्री जारी रहने का अनुमान है।
डॉलर की मजबूती, अमेरिका में बॉन्ड यील में बढ़ोतरी और कंपनियों के तिमाही नतीजे कमजोर रहने की आशंका से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक लगातार बिकवाली कर रहे हैं।
निवेशकों में उम्मीद बनी है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में कटौती करेगा। वहीं, खुदरा महंगाई अक्टूबर के 6.21% से घटकर नवंबर में 5.48 प्रतिशत रह गई है। इससे बाजार को बल मिलेगा।
भारतीय शेयर बाजार में बड़ी गिरावट के बाद अच्छी तेजी लौटी है। ये तेजी विदेशी निवेशकों के दम पर आई है। उन्होंने फिर से शेयर बाजार में पैसा लगाना शुरू कर दिया है।
विदेशी निवेशक लगातार भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। विदेशी निवेशकों द्वारा पैसा निकालने का सिलसिल अक्टूबर के बाद नवंबर में भी जारी रहा। इसका असर मार्केट पर देखने को मिल रहा है।
भारतीय शेयरों के ऊंचे मूल्यांकन को लेकर चिंता बनी हुई है, जिससे एफपीआई अपना रुख अधिक आकर्षक मूल्यांकन वाले बाजारों की ओर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत की कीमत पर चीन विदेशी निवेशकों से अपने आकर्षक मूल्यांकन की वजह से प्रवाह प्राप्त कर रहा है।
अक्टूबर से एफपीआई की लगातार बिकवाली तीन कारकों के संयुक्त प्रभाव के कारण हुई है। ये कारक भारत में उच्च मूल्यांकन, आय में गिरावट को लेकर चिंताएं और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के कारण धारणाओं का प्रभावित होना है।
अगर तीसरी तिमाही के नतीजे और प्रमुख संकेतक आय में सुधार का संकेत देते हैं, तो यह परिदृश्य बदल सकता है और एफपीआई बिकवाली कम कर सकते हैं।
एफपीआई की बिकवाली की वजह से प्रमुख सूचकांक अपने शीर्ष स्तर से करीब 8% नीचे आ गए हैं। आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने समीक्षाधीन अवधि के दौरान बॉन्ड से सामान्य सीमा के माध्यम से 4,406 करोड़ रुपये निकाले हैं।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि एफपीआई की निरंतर बिकवाली के रुख में तत्काल बदलाव आने की संभावना नहीं है। चीन के प्रोत्साहन उपायों की वजह से एफपीआई वहां के बाजार का रुख कर रहे हैं।
आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर होने वाली गतिविधियां और ब्याज दर को लेकर स्थिति जैसे वैश्विक कारक भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी निवेश के प्रवाह को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) के आंकड़ों के अनुसार, 4 अक्टूबर तक FPI ने भारतीय इक्विटी में ₹27,142 करोड़ की बिकवाली की।
यह दिसंबर, 2023 के बाद सबसे अधिक शुद्ध प्रवाह है। उस समय एफपीआई ने शेयरों में 66,135 करोड़ रुपये का निवेश किया था। जून से एफपीआई लगातार निवेश कर रहे हैं।
संपादक की पसंद